राजेश कुमार पासी
जब से ईरान ने इजराइल पर हमला किया है, तब से पूरे मुस्लिम जगत में खुशी की लहर दौड़ गई है। जैसा कि ईरान की सत्ता ने कहा है कि उन्होंने इजराइल से हानिया और हिज़्बुल्लाह चीफ हसन नसरुल्ला की मौत का बदला ले लिया है. ऐसा ही पूरा मुस्लिम जगत सोच रहा है। वास्तव में सच्चाई यह है कि ईरान अच्छी तरह से जानता है कि इसे बहुत मजबूरी में ऐसा करना पड़ा है। इजराइल कई सालों से ईरान को उकसाता आ रहा है कि वो सीधे इजराइल से आकर भिड़ जाए । इसकी बड़ी वजह यह है कि इजराइल ईरान द्वारा खड़े किये गए आतंकवादी संगठनों से लड़ने में मुश्किल महसूस कर रहा है। हमास को इजराइल ने ही खड़ा किया था ताकि वेस्ट बैंक इलाके में स्थापित फिलिस्तीनी संगठन फतह को गाज़ा से बाहर निकाला जा सके । इजराइल इसमें कामयाब रहा क्योंकि हमास ने फतेह को गाज़ा से बाहर कर दिया लेकिन हमास इजराइल के हाथ से निकलकर ईरान के कब्जे में चला गया।
हमास इजराइल के लिए भस्मासुर साबित हुआ जब उसने उस पर 7 अक्टूबर 2023 में एक घातक आतंकवादी हमला किया। इसके बाद से इजराइल लगातार हमास पर हमले कर रहा है लेकिन उसे पूरी तरह खत्म नहीं कर सका है लेकिन इस चक्कर में गाजा में 40000 लोग मारे जा चुके हैं । इजराइल इतने बड़े नरसंहार के बाद भी अपने बंधकों को छुड़ा नहीं पाया है । दूसरी तरफ लेबनान से हिज्बुल्लाह इजराइल पर लगातार हमले कर रहा है और अब इजराइल उसके पीछे पड़ गया है । इजराइल ने हिज्बुल्लाह का लगभग पूरा नेतृत्व खत्म कर दिया है. इसके बाद पूरे पश्चिम एशिया में जबरदस्त आग लग गई है और ईरान ने 200 मिसाइलों से इजराइल पर हमला कर दिया। इजराइल ने इस हमले का जवाब देने की धमकी दी है और ईरान अब उसके हमले से डरा हुआ है।
वास्तव में ईरान अच्छी तरह से जानता है कि वो इजराइल से सीधी लड़ाई में जीत नहीं सकता, जैसे पाकिस्तान जानता है कि वो सीधी लड़ाई में भारत से जीत नहीं सकता। इसलिये ईरान ने इजराइल के खिलाफ उसके आसपास के देशों में अपने प्रॉक्सी खड़े कर दिए हैं जो कि आतंकवादी संगठन हैं। इसमें तीन संगठन हमास, हिज़्बुल्लाह और हूती बेहद खतरनाक हैं। इसके अलावा उसने इराक और सीरिया में भी ऐसे संगठन खड़े किए हुए हैं। हमास की ताकत को इजराइल समाप्त कर चुका है लेकिन हिज़्बुल्लाह और हूती बेहद खतरनाक और शक्तिशाली आतंकवादी संगठन हैं। इजराइल अच्छी तरह जानता है कि ईरान इनके पीछे खड़ा है और जब तक ईरान पर कार्यवाही नहीं होगी, तब तक ईरान के इन प्यादों पर काबू पाना संभव नहीं है । हूती तो ऐसा संगठन है जिसने पूरी दुनिया की नाक में दम कर रखा है. उसके कारण स्वेज़ नहर से होने वाला पूरा व्यापार ठप्प हो गया है जिसके कारण सामान ढुलाई की लागत बहुत बढ़ गई है। हूती ने कितने ही देशों के कंटेनर शिप और आयल टैंकर बर्बाद कर दिए हैं जबकि उसका मुख्य निशाना इजराइल के शिप हैं । यही कारण है कि इजराइल के अलावा अमेरिका और यूरोपीय देशों की नौसेना कई बार हुतियो के खिलाफ कार्यवाही कर चुकी है।
यह बात न केवल इजराइल बल्कि अमेरिका भी अच्छी तरह से जानता है कि बिना ईरान के खिलाफ कार्यवाही किये ईरान के इन प्यादों पर काबू नहीं पाया जा सकता। इजराइल और अमेरिका ईरान पर हमला करने का बहाना ढूंढ रहे हैं और ईरान के हमले ने उन्हें वो बहाना दे दिया है। जहां इजराइल ने ईरान पर हमला करने की कसम खाई है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका ने उसे पूरी मदद देने का वादा किया है। वैसे भी अमेरिका और इजराइल के रिश्ते ऐसे हैं कि कोई भी सरकार हो, अमेरिका इजराइल को अकेला नहीं छोड़ सकता। इजराइल ने अभी तक जो लड़ाई लड़ी है उसमें भी उसे अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का पूरा साथ मिला है क्योंकि जितने हथियार इजराइल ने इस्तेमाल किये हैं, वो इजराइल में नहीं बनाए जा सकते।
इजराइल के बारे में दो बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं, पहली तो यह है कि वो अपने अस्तित्व की लड़ायी लड़ रहा है इसलिये वो किसी भी हालत में पीछे नहीं हट सकता। उसके पीछे हटने का मतलब है, खुद को समाप्त कर लेना। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इजराइल यहूदियों का एकमात्र देश है और पूरी दुनिया में यहूदियों की लॉबी बहुत मजबूत है। पूरी दुनिया में बड़ी कंपनियों में यहूदियों का पैसा लगा हुआ है इसलिये इजराइल को पैसों और हथियार की कमी कभी नहीं होने वाली है। वास्तव में हम इजराइल की अर्थव्यवस्था की ताकत को जानते हैं लेकिन यहूदियों की आर्थिक ताकत का अनुमान किसी को नहीं है। कुछ मुस्लिम देशों को गलतफहमी है कि इजराइल लंबे युद्ध को ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकता और एक दिन वो उसे हराने में कामयाब हो सकते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो इस समय इजराइल सिर्फ अपनी लड़ाई नहीं लड़ रहा है बल्कि दुनिया की लड़ाई लड़ रहा है। कल्पना करिए कि अगर इजराइल अपनी हार मान लेता है तो क्या जो आतंकवादी संगठन उसके खिलाफ लड़ रहे हैं वो शांति के रास्ते पर चल पड़ेंगे। क्या हूती और हिज़्बुल्लाह खत्म हो जाएंगे। ये संगठन फिर दूसरे देशों के खिलाफ खड़े हो जाएंगे और इनका पहला निशाना अरब देश ही होंगे । इसलिये कोई अगर इस लड़ाई को सिर्फ यहूदी बनाम मुस्लिम समझ रहा है तो वो बड़ी गलतफहमी में है।
इजराइल के खिलाफ ईरान की जंग फिलिस्तीनी लोगों पर हो रहे जुल्म के कारण नहीं है बल्कि मुस्लिम देशों का नेतृत्व हासिल करने की जंग का हिस्सा है। जो ईरान फिलिस्तीनी लोगों के लिए आंसू बहाता है और मुस्लिम जगत को संदेश देता है कि वो ही इस्लाम की जंग लड़ रहा है, वही ईरान बलोच और कुर्दाे पर कोई रहम नहीं करता है। ईरान के हाथ बलोच और कुर्द मुस्लिमों के खून से रंगे हुए हैं लेकिन वो किसी को दिखाई नहीं देते। ईरान की तानाशाह सरकार ने अपनी जनता पर कितना जुल्म किया है ये तो अभी दुनिया के सामने आना शेष है।
ईरान ने इजराइल पर हमला करके उसे खुद पर हमला करने का वाज़िब कारण दे दिया है। अब इस मामले में संयुक्त राष्ट्र भी कुछ नहीं बोल सकता क्योंकि ईरान ने पहला वार कर दिया है जिसका जवाब देने का इजराइल को पूरा हक है। अब इस हक को कोई भी इजराइल से छीन नहीं सकता। अमेरिका भी इस मौके की तलाश में बहुत दिनों से था। इजराइल अभी ईरान पर हमला करने की जल्दी में नहीं लग रहा है क्योंकि उसका पूरा ध्यान हिज़्बुल्लाह की शक्ति का दमन करने में लगा हुआ है। दूसरी तरफ अमेरिका हुतियो के खिलाफ कार्यवाही कर रहा है और इजराइल ने भी हुतियो पर कुछ हमले किए हैं। मुझे लगता है कि ईरान के लिए ये सब देखना भी आसान नहीं है। उसने एक हमला तो इजराइल पर कर दिया है, अगर इजराइल हिज़्बुल्लाह के खिलाफ ऐसे ही कार्यवाही करता रहता है तो ईरान दूसरा हमला भी कर सकता है। ईरान के समर्थित आतंकवादी संगठनों में ईरान की इजराइल नीति को लेकर आवाजे उठने लगी हैं। ईरान के प्रॉक्सी संगठनों के खिलाफ इजराइल और अमेरिका की कार्यवाही पर ईरान की चुप्पी मुस्लिम देशों में उसकी छवि खराब कर सकती है।
एक तरफ ईरान इजराइल के खिलाफ मुस्लिम देशों को एकजुट होने की अपील कर रहा है तो दूसरी तरफ अरब देश ईरान के समर्थित आतंकवादी संगठनों से भयभीत हैं। देखा जाए तो ईरान इस लड़ाई में अकेला है. चीन सिर्फ तेल खरीदकर उसकी मदद कर सकता है और रूस इसलिये उसकी मदद कर रहा है क्योंकि वो दुनिया का ध्यान यूक्रेन से हटाना चाहता है। ईरान इजराइल को दूसरे हमले की धमकी दे रहा है लेकिन वो इजराइल की जवाबी कार्यवाही से डरा हुआ है। ईरान अच्छी तरह जानता है कि इजराइल के पास ईरान में कहीं भी कैसी भी कार्यवाही करने की क्षमता है। वास्तव में सच्चाई यही है कि ईरान इजराइल और अमेरिका के ट्रैप में फंस गया है और वो जानता है कि इस ट्रैप से उसका निकलना बहुत मुश्किल है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)