वापमपंथ/ भाजपा नीत केन्द्रीय सरकार ने आखिर आँकड़ा कमेटी को भी भंग कर दिया

वापमपंथ/ भाजपा नीत केन्द्रीय सरकार ने आखिर आँकड़ा कमेटी को भी भंग कर दिया

वर्ष 2019 में प्रणब सेन की अगुवाई में 14 सदस्यों वाली स्थाई आँकड़ा कमेटी (एस.सी.ओ.एस.) बनाई गई थी, जिसे सितंबर महीने में भंग कर दिया गया है। ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण दफ़्तर’ (एन.एस.एस.ओ.) की डायरेक्टर-जनरल गीता सिंह राठौड़ द्वारा सदस्यों को एक ईमेल भेजी गई, जिसमें लिखा था कि कमेटी को भंग किए जाने का कारण यह है कि इसका काम देश के लिए हाल ही में बनाई गई स्टीयरिंग कमेटी से मिलता है, इसलिए अब एस.सी.ओ.एस. की ज़रूरत नहीं है।

वर्ष 2019 में एस.सी.ओ.एस. को बनाया गया था और साल 2023 में इसमें विस्तार किया गया था। इस कमेटी को बनाने का मुख्य कारण यूनियन सरकार को आँकड़ा जुटाने और उनका सर्वेक्षण करने के सही तौर-तरीक़ों से अवगत करवाना और आँकड़ों के बारे में सही सलाह-मशवरा देना था।

इस कमेटी के प्रमुख और दूसरे सदस्यों ने इस कमेटी को भंग किए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इस कमेटी को भंग करने का कारण यह है कि ‘यह कमेटी सरकार से लगातार 2021 से, लटकती आ रही जनगणना की माँग बार-बार कर रही थी।’

पुरानी जनगणना के आधार पर ग़रीबी, बेरोज़गारी आदि की नई रिपोर्टे देना और निष्कर्ष निकालना ग़लत है। परंतु सरकार द्वारा इस बात पर ग़ौर करने की बजाय यह माँग उठाने वालों के ही मुँह बंद कर दिए गए हैं। कई विशेषज्ञों ने बार-बार इस बात की तरफ़ इशारा किया है कि आबादी के बारे में नए आँकड़े ज़रूरी हैं, इनके बिना सरकारी योजनाओं और नीतियों को सही ढंग से लागू करने पर असर पड़ रहा है।

यह बात सही है कि पूँजीपतियों की चाकर सरकार को भी देश चलाने के लिए, नीतियाँ बनाने के लिए, आँकड़ों की ज़रूरत होती है। इसके लिए सरकारी आँकड़ा विभाग भी होता है और देश के स्तर पर आर्थिक मामलों, सामाजिक मामलों आदि के बारे में आँकड़े इकट्ठे किए जाते हैं और रिपोर्टें तैयार करके सार्वजनिक की जाती हैं।

परंतु यह बात भी सही है कि ये आँकड़े पूरी तरह से सही नहीं होते, लेकिन इसके साथ कम से कम अंदाज़ा ज़रूर हो जाता है कि देश में कितने लोग ग़रीबी रेखा से नीचे हैं, कितने बेरोज़गार हैं, कितने खेती-बाड़ी क्षेत्र में काम करते हैं, कितने फ़ैक्टरियों में काम करते हैं, कितने लोगों को सरकारी सहूलियतें मिलती हैं और कितने वंचित हैं आदि। इन सारे आँकड़ों के लिए भी कुल आबादी कितनी है, यह पता होना लाज़ि‍मी है, परंतु बीजेपी सरकार की जनगणना करवाने की कोई इच्छा नहीं है, बल्कि वह बेरोज़गारी की दर, ग़रीबी की दर आदि के आँकड़े भी छिपाना चाहती है, ताकि सरकार की घटिया कारगुज़ारी छिपी रहे। आँकड़ों के हेर-फेर से सरकार अपना अक्स बचाकर रखना चाहती है।

परंतु सच यह है कि आँकड़ा कमेटी भंग करना, जनगणना ना करवाने से सरकार की घटिया कारगुज़ारी छिपी नहीं रह सकती। ज़मीनी सच्चाइयाँ जिन्हें लोग जी रहे हैं, उन्हें किसी भी तरीक़े से तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता। ग़रीबों के आँकड़े काग़ज़ों पर लिखे जाने से ग़रीब लोगों की जिं़दगी नहीं सुधर जाती और ना ही गिनती बदल जाती है। कितने लोग किस बीमारी से मरे, इसके आँकड़े मरने वालों के परिवार का दुख कम नहीं कर सकते। लुटेरों को तो मज़दूर, काम करने वाले लोग चाहिए होते हैं, बूढ़े हो रहे, मर रहे मज़दूरों की जगह लेने के लिए नए मज़दूर चाहिए होते हैं। कितने मज़दूर फ़ैक्टरियों में मरते हैं, कितने लोग सड़क हादसों का शिकार होते हैं, कितने टी.बी. की बीमारी से मरते हैं, कितने नौजवान टीका लगाकर मरते हैं, इससे लुटेरे पूँजीपतियों की नुमाइंदगी करती पार्टियों, सत्ता पर विराजमान सरकार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

देश की बेरोज़गारी के आँकड़े जब सामने आते हैं, तो गोदी मीडिया उन आँकड़ों को झुठलाता है। सरकारी सर्वेक्षणों में इकट्ठे किए गए आँकड़े सत्ताधारियों के लिए कई बार गले की हड्डी बन जाते हैं। इसलिए वे इन आँकड़ों को झुठलाते हैं, परंतु आँकड़ों के पार और भी आँकड़े होते हैं, जो सच्चाई बयान करते हैं।

बिना शक सही आँकड़े, सही रिपोर्टें सार्वजनिक होनी चाहिए। बुद्धिजीवियों का एक हिस्सा, व्यवस्था में काम करता एक हिस्सा जो सरकार पर सही ढंग से काम करने के लिए दबाव डालता है, उनकी माँगें जायज़ हैं। जिस तरह इस कमेटी को भंग किया गया, यह सबूत है कि सरकार सवाल करने वालों को ही निशाना बनाती है।

(लिखक के विचार निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »