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पाणिनि (500 ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। महर्षि पाणिनि के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। हालांकि उनके जन्म के स्थान को लेकर कई प्रकार के विवाद हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि वे मूलतः ग्रिक थे लेकिन कुछ विद्वान यह मानते हैं कि उनका जन्म पाटलीपुत्र के आसपास हुआ था। कुछ विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि वे दक्षिण भारतीय ब्राह्मण थे। इनके द्वारा विरचित व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं।
संस्कृत भाषा को व्याकरण को सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। इनका जीवनकाल 520-460 ईसा पूर्व माना जाता है। एक रुशताब्दी से भी पहले प्रिसद्ध जर्मन भारतिवद मैक्स मूलर (1823-1900) ने अपने साइंस आफ थाट में कहा, ‘‘मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी, लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं, जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके। इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 2,50,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है। अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800 धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक वेश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके।’’
वर्ष 1993 के एक इंडोलोजिकल बेवियोग्राफी के अप्रैल वाले न्यूज लेटर में महर्षि पाणिनि को बिना हार्डवेयर के साफ्टवेयर मैन बताया था। उसी आलेख में बताया गया कि प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके है। हालाँकि उस समय इस तथ्य का उपयोग किस प्रकार और कहाँ करते थे यह तो नहीं कह सकते, पर आज भी दुनिया भर में रुकंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है।
व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ में पाणिनि ने विभक्ति प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत किए हैं। नासा के वैज्ञानिक डत.त्पबा ठतपहहे ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पाणिनि व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की। प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाना बहुत मुस्किल कार्य था जब तक कि डत.त्पबा ठतपहहे द्वारा संस्कृत के उपयोग की खोज न गयी। उसके बाद एक प्रोजेक्ट पर कई देशों के साथ करोड़ों रुडॉलर खर्च किये गये।
महर्षि पाणिनि शिव जी बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र का ज्ञात हुआ। उन्होंने शिव जी द्वारा संध्या रुतांडव नृत्य के समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि से संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी।
वह सूत्र पाणिनि के आष्टाध्यायी का प्रथम सुत्र है –
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्।।
अर्थात- ताण्डव की समाप्ति पर नटराज शिव ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना की पूर्ति के लिये नौ और पांच अर्थात कुल चौदह बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी। इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ। इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है। महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण ष्अष्टाध्यायी का आधार बना।
श्रावण मास में शिव के डमरू से प्राप्त 14 सूत्रों को एक श्वास में बोलने का अभ्यास किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र से कई बीमारियों का इलाज कर सकते हैं तथा कोई भी कार्य सिद्ध कर सकते हैं। इनकी एक माला (108 मंत्र) का जप सावन में अवश्य करने का प्रयास करें, अच्छा रहेगा इसके बाद भी प्रतिदिन करें।
पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर दुनिया के कई विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी कहते हैं, ‘‘पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है।’’ कोल ब्राक कहते हैं, ‘‘पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं। सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर कहते हैं, ‘‘संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है… यह मानवीय रुमष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है। प्रो. मोनियर विलियम्स कहते हैं कि पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा।
(इस आलेख को विभिन्न सोशल माध्यमों से संकलित विषय से तैयार किया गया है। इसलिए तथ्यों से संबंधित कुछ गलतियां हो सकती है। यदि किसी सुधी पाठक को इस विषय पर कुछ कहना हो तो निचे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।)
अद्भुत