वामपंथ/ दुनिया में असमानता को लेकर ऑक्सफै़म की चिंता

वामपंथ/ दुनिया में असमानता को लेकर ऑक्सफै़म की चिंता

हाल ही में ऑक्सफै़म और एक अन्य संस्था ने “असमानता सूचकांक को कम करने की प्रतिबद्धता” शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है, जिसमें वैश्विक स्तर पर बढ़ती असमानता के संबंध में “चिंता” व्यक्त की गई है। इसके अलावा ऑक्सफै़म ने इस रिपोर्ट में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा लोगों की बुनियादी सुविधाओं पर ख़र्च की जाने वाली राशि में कटौती के बारे में भी अपनी ‘चिंता’ जाहिर की है। रिपोर्ट के अनुसार, 164 देशों में से 90 देशों की सरकारें ऐसी नीतियाँ अपना रही हैं, जिनका नतीजा असमानता के बढ़ने में निकलेगा। रिपोर्ट में मुख्य रूप से तीन आँकड़ों पर ध्यान केंद्रित किया गया है –

1) समाज कल्याण की योजनाओं पर ख़र्चा।
2) टैक्सों का स्वरूप।
3) श्रम अधिकार और उजरतें।

2022 की रिपोर्ट के बाद, 81 प्रतिशत देशों में करों का अधिक बोझ लोगों पर डाल दिया गया है, 84 प्रतिशत देशों ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा पर ख़र्चा कम कर दिया है और 90 प्रतिशत देशों में श्रम अधिकारों पर सरकारों द्वारा अधिक डाका डाला गया है, न्यूनतम मज़दूरी और रोज़गार की गुणवत्ता में गिरावट आई है। रिपोर्ट के मुताबिक़, ये आँकड़े बताते हैं कि दुनिया के देशों में असमानता में तेज़ी से बढ़ौतरी हो रही है। इसी रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के क़र्ज़ों और उन क़र्ज़ों से जुड़ी सख़्त शर्तों को भी तीसरी दुनिया के देशों में असमानता बढ़ाने में अहम कारक बताया गया है। इसके अलावा रिपोर्ट में दो और अहम कारक जो असमानता बढ़ाने वाले बताए गए हैं, वे हैं – क़र्ज़ की किस्तों के भुगतान पर ख़र्च होने वाला सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा और दुनिया-भर में बढ़ रहा सैन्य ख़र्चा। विभिन्न सरकारों ने ख़ासकर कोरोना-लॉकडाउन के बाद पूँजीपतियों के मुनाफ़ों को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर क़र्ज़ विस्तार की नीतियों और भारी सब्सिडी का सहारा लिया। इसलिए इन सरकारों ने काफ़ी क़र्ज़ा उठा लिया है, जिसकी किस्तों पर न सिर्फ़ सरकारी बजट का बड़ा हिस्सा जाता है, बल्कि सरकारें यह ख़र्चा जनता पर करों का बोझ ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाकर वसूलना चाहती हैं। 2024 में इन क़र्ज़ों की मूल राशि पर ब्याज़ के भुगतान पर दुनिया-भर में सरकारों के ख़र्चे का औसतन 41.6 प्रतिशत हिस्सा जाता है। संस्था सिपरी (स्टॉकहोम इंटरनेशनल शांति खोज संस्था) के आँकड़ों के अनुसार, 2023 में दुनिया में सैन्य ख़र्च इतिहास में सबसे अधिक था (2.443 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर)। 2022 के आँकड़े से इस वर्ष की अवधि में 6.8 प्रतिशत से बढ़ा।

इस रिपोर्ट और असमानता पर चर्चा करने से पहले थोड़ी बात ऑक्सफै़म संस्था के बारे में करना ज़रूरी है। ऑक्सफै़म चूँकि अपनी रिपोर्टों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, दुनिया-भर की पूँजीवादी सरकारों की नीतियों की आलोचना करता है और असमानता के आँकड़े उजागर करने के साथ-साथ इसे कम करने की बात करता है, तो कुछ विचारक, बुद्धिजीवी इसे जनपक्षधर संस्था घोषित करने की हद तक चले जाते हैं, जो लुटेरे साम्राज्यवादी-पूँजीवादी ढाँचे के ख़ि‍लाफ़ जनता का पक्ष लेती है। लेकिन क्या यह सच है? ऑक्सफै़म अपनी रिपोर्टों में लाज़िमी ही असमानता के आँकड़े प्रकाशित करके इस घटनाक्रम पर चिंता व्यक्त करती है और इसके समाधान का सुझाव देती है। लेकिन यह चिंता किसके लिए है? क्या यह लोगों की गुलामी वाली स्थिति को बदलने की चिंता है? असल में ऑक्सफै़म संस्था भी लुटेरी साम्राज्यवादी-पूँजीवादी व्यवस्था की ही एक सच्ची सेवक है। असमानता के आँकड़े प्रकाशित करके और जनता की बिगड़ती हालत को दिखाकर लुटेरे शासकों को चेतावनी देना चाहती है। सीधे शब्दों में कहें तो ऑक्सफै़म साम्राज्यवादियों और पिछड़े देशों के पूँजीवादी शासकों से कहती है कि लोगों को थोड़ा धीरे-धीरे, थोड़े धैर्य के साथ लूटते रहो, थोड़े-बहुत टुकड़े उनके सामने फेंकते रहो, ताकि इस बढ़ती असमानता की मौजूदा स्थिति में से ऐसी विस्फोटक स्थिति पैदा न हो जाए कि जनता इस दमनकारी व्यवस्था के ख़ि‍लाफ़ ही संघर्ष शुरू कर दे।

ऑक्सफै़म का दुनिया-भर के शासकों को संदेश है कि यदि आप शोषणकारी व्यवस्था जारी रखना चाहते हैं, तो शोषण की गति और तीव्रता को थोड़ा कम करो। इस दमनकारी साम्राज्यवादी-पूँजीवादी व्यवस्था का अस्तित्व बचाकर रखना ही ऑक्सफै़म की चिंता का मूल है। जहाँ पूँजीवादी शासकों के ऐसे समर्थक होते हैं, जो उनकी हमलावर नीति, ज़्यादा से ज़्यादा लूट-दमन-अन्याय का समर्थन करते हैं, वहीं ऐसे समर्थक भी होतें हैं जो थोड़ा धैर्य रखने की सलाह देते हैं, लेकिन कुल मिलाकर इसी व्यवस्था को सलामत रखना चाहते हैं। ऑक्सफै़म संस्था दूसरे किस्म के समर्थकों में शामिल है।

ऑक्सफै़म किस तरह असमानता को कम करना या हल करना चाहता है?

रिपोर्ट के अनुसार, पूँजीवादी सरकारें निम्नलिखित क़दमों को अमल में लागू करके असमानता को कम कर सकती हैं –

रिपोर्ट में लिखा गया है कि असमानता एक अपरिहार्य घटना नहीं है, बल्कि विभिन्न देशों की सरकारों की नीतिगत पसंद का मामला है। इस तरह यह संस्था इस ग़लत धारणा का प्रचार करती है कि पूँजीवादी व्यवस्था में असमानता इसका अभिन्न अंग नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से सरकारों की नीति पर निर्भर करती है।

असमानता के बारे में बात करने से पहले रिपोर्ट के बचकाना सुझावों के बारे में संक्षेप में बात करना ज़रूरी है। एकाधिकार के मौजूदा युग में विभिन्न एकाधिकारी पूँजीपतियों के अलग-अलग गुट अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों को अंधाधुंध पैसा देते हैं, ताकि सत्ता में आकर वे इन एकाधिकारियों के पक्ष में नीतियाँ बनाएँ। उन नीतियों में श्रम अधिकारों में कटौती करना, अमीरों पर करों के बोझ को कम करना और ज़्यादा से ज़्यादा टैक्सों का बोझ जनता पर डालना, सार्वजनिक सेवाओं में कटौती करके सरकारी ख़ज़ाने का मुँह अमीरों को सब्सिडी, क़र्ज़ा माफ़ी के लिए खोलना आदि जैसे जन-विरोधी क़दम शामिल हैं। इन्हीं सरकारों से, जो आमतौर पर एकाधिकारियों की दौलत के सिर पर सत्ता का सुख भोगती हैं, संस्था ऑक्सफै़म एकाधिकारी पूँजीपतियों के हितों के बिल्कुल विपरीत नीतियों को लागू करने की उम्मीद लगाने की बात करती है। अगर ये झूठे सपने दिखाना नहीं है तो और क्या है? हर साल ऑक्सफै़म ऐसी कई रिपोर्टें प्रकाशित करती है, सम्मेलन करती है, असमानता को कम करने के नुक्से बताती है, लेकिन अगले साल नई रिपोर्ट में फिर से लिखती है कि असमानता में फिर से बढ़ौतरी दर्ज की गई है! ऑक्सफै़म द्वारा बताए जाने वाले हवाहवाई सुझाव लुटेरी सरकारें लागू नहीं करतीं, क्योंकि ये उनके पूँजीपति आकाओं के हित में नहीं हैं।

जैसा कि पहले बात की गई है, ऑक्सफै़म इस लुटेरी व्यवस्था को जीवित रखने के लिए असमानता को कम करना चाहती है, इसी इच्छा से ऐसे तर्क निकलते हैं कि असमानता पूँजीवादी व्यवस्था का लाजिमी नतीजा नहीं है, बल्कि यह सरकारों की नीतिगत पसंद का मामला है। जबकि हक़ीक़त इसके बिल्कुल उलट है। राजनीतिक अर्थशास्त्र का बुनियादी ज्ञान रखने वाले लोग जानते हैं कि पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों से लूटे गए अतिरिक्त मूल्य का अधिक से अधिक हिस्सा हासिल करने के मुक़ाबले में बड़ी मछली लाजिमी रूप से छोटी मछली और कभी-कभी अन्य बड़ी मछलियों को निगल जाती है। पूँजी के संचय का अपरिहार्य परिणाम पूँजी और उत्पादन के साधनों का कुछ हाथों में केंद्रीकृत होना और शेष आबादी का अधिक से अधिक मज़दूरों की क़तारों में शामिल होना निकलता है। इसका यह मतलब नहीं है कि पूँजीपतियों और मज़दूरों के बीच कोई वर्ग इस व्यवस्था में मौजूद ही नहीं है, बल्कि अपने अटल नियमों के कारण पूँजीवादी समाज अधिक से अधिक दो विरोधी वर्गों में बँट जाता है।

यह असमानता का मूल कारण है। पूँजीवादी व्यवस्था की सीमाओं के भीतर कोई भी सरकार नीतिगत विकल्प के ज़रिए इस प्रक्रिया को रोक नहीं सकती। अमीरों पर टैक्सों का बोझ बढ़ाना, जनता की सुविधाओं पर ख़र्चा बढ़ाना, मज़दूर-पक्षीय श्रम क़ानून लोगों के जीवन स्तर में ज़रूर सुधार करते हैं। लेकिन पहली बात, यह असमानता की प्रक्रिया को नहीं रोक सकते और दूसरा यह अधिकार मेहनतकश जनता को ख़ुद अपने संघर्षों से प्राप्त करने पड़ेंगे, यह लुटेरी सरकारें ऑक्सफै़म जैसी शासक वर्गीय संस्थाओं की सलाहों पर लोगों को नहीं देंगी। असमानता पूँजीवादी व्यवस्था की एक अनिवार्य विशेषता है, अधिक से अधिक लोगों का उत्पादन के साधनों से वंचित होकर मज़दूर बनना इसका अटल नियम है। यह प्रक्रिया जनता के अनेक कष्टों का कारण बनती है, लेकिन यही प्रक्रिया आबादी के एक बड़े हिस्से को संगठित होने और इस लुटेरी व्यवस्था के ख़ि‍लाफ़ अपने गुस्से को निर्देशित करने का आधार तैयार करती है। ऑक्सफै़म जैसी संस्थाएँ, जो लोगों की आँखों में धूल झोंकने का काम करती हैं, के पाखंड का पर्दाफ़ाश करके लोगों के सामने उनकी मुक्ति का असली रास्ता दृ पूँजीवादी व्यवस्था का अंत और समाजवादी व्यवस्था का निर्माण दृ पेश करना क्रांतिकारी आंदोलन के महत्वपूर्ण कार्यभारों में से एक है।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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