गौतम चौधरी
शब्दों में रिश्तों को प्रभावित करने बेहतर क्षमता होती है। यही नहीं शब्दों में लोगों की धारणा को बदलने और लोगों को एक साथ लाने या उन्हें अलग करने की भी अपार क्षमता होती है। आज हम एक ऐसे शब्द पर चर्चा करने वाले हैं, जिसकी न केवल गलत तरीके से व्याख्या की जाती रही है अपितु इस शब्द का व्यापक तौर पर दुरुपयोग भी होता रहा है। यह शब्द ‘काफिर’ है। बहुत से लोग सोचते हैं कि यह शब्द सभी गैर-मुस्लिमों के लिए उपयोग किया जाता है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। इस्लामी शिक्षाओं पर जब हम सकारात्मक नजर डालेंगे तो इस शब्द की वास्तविकता स्वतः ध्यान में आएगी। मुफ्ती तुफैल खान कादरी बताते हैं कि काफिर शब्द का उपयोग ऐतिहासिक रूप से पैगंबर मुहम्मद के समय के दौरान लोगों के एक विशेष समूह को संदर्भित करने के लिए किया गया था, जो पूरी तरह से परिस्थितिजन्य था और जिसे सामान्यीकृत नहीं किया जा सकता है। काफिर शब्द की निकट जांच आवश्यक है क्योंकि आधुनिक प्रवचनों में इसके लापरवाह अनुप्रयोग ने अनावश्यक रूप से अलगाव और संघर्ष को जन्म दिया है।
मुफ्ती कादरी बताते हैं कि अरबी भाषा में ‘काफिर’ शब्द का अर्थ है ‘कवर करना या फिर इनकार करना होता है। कुरान में, ‘काफिर’ का उपयोग सभी गैर-मुस्लिमों को संदर्भित करने के लिए नहीं किया गया है। पैगंबर मुहम्मद के समय, इसका उपयोग विशेष लोगों के लिए किया गया था। विशेष रूप से कुरैश जनजाति के उन लोगों को काफिर कहा गया जिन्होंने सच्चाई के अचूक साक्ष्य को देखने के बावजूद इस्लामी संदेश को अस्वीकार करने से मना कर दिया था। यह समझना अनिवार्य है कि ‘काफिर’ शब्द किसी भी नस्ल, समुदाय या धर्म के लिए कतई उपयोग नहीं किया गया है। व्यापक रूप से यह गलतफहमी है कि सभी गैर-मुस्लिम ‘काफिर’ हैं। मुफ्ती तुफैल बताते हैं कि कुरान में पाए गए दृष्टिकोण के साथ यह मेल नहीं खाता है। उदाहरण के लिए, बाइज़ेन्टाइन को पवित्र ग्रंथ में ‘काफिर बाइज़ेन्टाइन’ नहीं कहा गया है, अपतु केवल ‘बाइज़ेन्टाइन’ कहा गया है। जबकि हम जानते हैं यह समूह ईसाइयों का था। इसी तरह, यमन के गैर-मुस्लिम शासक अब्राहा को ‘यमन के काफिर शासक’ के बजाय सूरा अल-फ़िल में ‘हाथियों का आदमी’ के रूप में चिंहित किया गया है।
इंटरफेथ संबंधों के लिए इस्लाम के दृष्टिकोण को शब्दावली के इस सावधानीपूर्वक उपयोग द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जो दूसरों को अलग किए बिना मतभेदों को स्वीकार करता है। शब्द काफिर के उपयोग से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सभी गैर-मुसलमानों के खिलाफ युद्ध छेड़ना, इस्लाम के पवित्र ग्रंथ के छंदों की गलत व्याख्या है। कुरान स्पष्ट रूप से बताता है कि पवित्र युद्ध केवल आत्मरक्षा में उचित है और यह निश्चित रूप से पूरे समुदायों को नष्ट करने वालों के खिलाफ ही किया जा सकता है। कुरान के सूरा अल-बक़रा (1ः190) ने स्पष्ट रूप से घोषणा की कि ‘जो लोग तुमसे युद्ध करते हैं, उनसे केवल अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो, किन्तु सीमा का उल्लंघन न करो।’ इससे पता चलता है कि मुसलमानों को सिर्फ इसलिए लोगों से लड़ने के लिए नहीं कहा जाता है क्योंकि वे गैर-मुस्लिम हैं, बल्कि कुरान धैर्य और इस्लाम की शिक्षाओं के बुद्धिमत्तापूर्ण प्रसार के साथ अहिंसक संचार को बढ़ावा देता है। थोड़ी बहुत जो विसंगतियां दिखती है वह निहायत नकारात्मक व्याख्या के कारण ही संभव हो पायी है।
समय के साथ ‘काफिर’ शब्द के दुरुपयोग के परिणामस्वरूप गंभीर नतीजे सामने आ रहे हैं। इसका उपयोग कुछ मुस्लिम शासकों द्वारा बहिष्करण के उपकरण के रूप में किया गया था, जिन्होंने भेदभाव और उत्पीड़न का बचाव करने के लिए कुछ समूहों के पदनाम का काफिरों के रूप में उपयोग किया। इंटरफेथ संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के साथ, इस अभ्यास ने मुस्लिम समुदाय के भीतर सांप्रदायिक संघर्ष को बढ़ा दिया है क्योंकि विभिन्न गुटों ने कुफ़र के एक दूसरे पर आरोप लगाया है। भारत जैसे देशों में शब्द के दुरुपयोग के परिणामस्वरूप हिंदू-मुस्लिम संबंधों को बहुत नुकसान हुआ है। शब्द ‘काफिर’ का उपयोग अपमानजनक रूप में किया गया है, दुश्मनी को बढ़ाता है और लोगों को विभाजित करता है। एक बात बता दें कि इस शब्द के गहन अक्रामक अर्थां के औपनिवेशिक युग के दौरान नस्लवाद और दासता के साथ जुड़ने के कारण, दक्षिण अफ्रीका ने कानूनी रूप से ‘काफिर’ के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
आधुनिक दुनिया में हमें शब्दों और कर्मों से सावधान रहना आवश्यक है, जहां कई धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान सह-अस्तित्व में हैं। पैगंबर मुहम्मद ने कहा ‘ओ लोगों’ या मानव जाति के लोगों। ऐसे स्थानों पर उन्होंने काफिर शब्द का उपयोग नहीं किया, जहां समूह की बात कही गयी है। वहां उन्होंने केवल समूह की ही बात कही है और उसके लिए उन्होंने कई अन्य शब्दों का उपयोग किया है। उसी प्रकार उन्होंने कुछ अधार्मिक या नास्तिक लोगों के लिए काफिर शब्द का उपयोग किया है। इस्लाम का कहना है कि किसी के विश्वास की परवाह किए बिना, हर कोई सम्मान के साथ व्यवहार करने के योग्य है, जो व्यक्तियों को वर्गीकृत या विभाजित करने के बजाय, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और एक दूसरे के लिए सम्मान पर होना चाहिए।
‘काफिर’ शब्द के दुरुपयोग ने पर्याप्त नुकसान किया है। इसके कारण समाज में विभाजन हुआ है और अलगाववाद जन्म लिया। यह विभाजनकारी शब्दावली को छोड़ने और समझ और करुणा की भावना को गले लगाने का समय है। शब्दों का वजन होता है और उनके लापरवाह उपयोग से गहरे घाव हो सकते हैं। शत्रुता पर बहिष्करण और सम्मान पर समावेशीता का चयन करके हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ सकते हैं जहां मतभेदों का कोई स्थान नहीं है। समाज को अच्छा बनाना है तो हमें ऐसे शब्दों के उपयोग को त्यागना होगा जिससे आपस में विभेद पैदा होता है। काफिर शब्द की सही व्याख्या करें और उसे समझे फिर हमारे बीच अलगाव नहीं होगा। यहां तो हर एक इस्लामिक समूह आज दूसरों को काफिर घोषित करने पर तुला है। बरेलवी दूवबंदी को काफिर कह रहा है तो देवबंदी अहले हदीस को काफिर घोषित करने पर तुला है। यह खाई तभी भरेगा जब इस शब्द की सही व्याख्या होगी।