नयी दिल्ली/ गाजा को संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थन से इजरायल द्वारा भूखा रखा जा रहा है। दुनिया की आंखों के सामने एक मानव निर्मित अकाल सामने आ रहा है – जिसे पूरी तरह से नाकाबंदी, सहायता से वंचित करने और भूख को हथियार बनाने के माध्यम से तैयार किया गया है। बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं, अस्पतालों में दवा नहीं है और पूरे समुदाय को खत्म किया जा रहा है। यह केवल मानवीय संकट नहीं है – यह मानवता के खिलाफ अपराध है, युद्ध के रूप में जातीय सफाई की एक क्रूर रणनीति है। वैश्विक समुदाय को दिनदहाड़े फिलिस्तीनी लोगों पर किए जा रहे भयावहता के प्रति अपनी आंखें और कान खोलने चाहिए।
भारत मुंह नहीं फेर सकता। भारतीय और फिलिस्तीनी लोगों के बीच का बंधन नया नहीं है – यह उपनिवेशवाद और कब्जे के खिलाफ हमारे साझा संघर्ष में निहित है। महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू तक, भारत ने लंबे समय से फिलिस्तीनी मुद्दे को न्यायोचित माना है। सीपीआई पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों के लिए एकजुटता जुटाने में सबसे आगे रही है। हमने उनकी लड़ाई को सम्मान, आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता के लिए वैश्विक आंदोलन के हिस्से के रूप में देखा। फिलिस्तीन के प्रति हमारी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता को धोखा नहीं दिया जा सकता।
हम भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि वह न्यायोचित फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपनी स्थिति को बनाए रखे और युद्ध के हथियार के रूप में भुखमरी के इस्तेमाल की निंदा करे तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून की रक्षा में दृढ़ रहे। चुप रहना सहभागिता है। भारत को मूकदर्शक के रूप में नहीं, बल्कि ऐसे राष्ट्र के रूप में याद किया जाना चाहिए जो न्याय के पक्ष में तब खड़ा रहा जब इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी।