गौतम चौधरी
फिलहाल रमजान का पवित्र महीना चल रहा है। रमजान, दुनिया भर के मुसलमानों के लिए एक स्वागत योग्य उपहार है, जो उन्हें अच्छे काम करने और अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप करने का अवसर देता है। यही कारण है कि सभी सच्चे ईमान वालों को इस उदार और भलाई के महीने का इंतजार रहता है। वास्तव में, इस महीने में मुसलमान कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य करते हैं, जैसे-सुबह से शाम तक उपवास (खाने, पीने, झूठ बोलने और दूसरों को धोखा देने से तौबा), पांच बार सलाहा (नमाज) करने की कोशिश तथा जरूरतमंद लोगों को मदद कर अनगिनत आशीर्वाद और अनुग्रह प्राप्त करते है।
जैसा की हम जानते हैं, वर्तमान दौर कोरोना महामारी का है। कोरोना महामारी ने दुनिया को तबाह कर रखा है। इस बीमारी के कारण भारत का भी बहुत नुकसान हुआ है। इस दौर में भारत के प्रत्येक नागरिकों के लिए कुछ जिम्मेदारी तय की गयी है। जिम्मेदार नागरिकों के रूप में कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने में हर हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाइयों की बराबर की भूमिका है। इस महामारी के खिलाफ संघर्ष और उसपर फतह केवल सरकारी स्तर पर संभव नहीं है। हम नागरिकों को भी इसमें योगदान करना होगा। हालांकि बड़े पैमाने पर लोगों ने अपना योगदान देना प्रारंभ भी कर दिया है। इस काम में हमारे मुसलमान भाई बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।
इन विशेष परिस्थितिय में, मुसलमानों को समूह में तरावीह की नमाज अदा करने, बड़े पैमाने पर इफतार पार्टी या सभाएं करने, मस्जिदों और किसी भी अन्य स्थान पर सामोहिक नमाज अदा करने आदि से बचना चाहिए। 2020 की तरह ही इस बार भी रमजान का महीना अलग है। क्योंकी इस बार भी कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपने घेरे में ले लिया है। रमजान मुसलमानों के लिए महामारी के दौरान एक आशीर्वाद है क्योंकि इस महीने में मुसलमानों को स्वच्छता की देखभाल करने के लिए बाध्य किया जाता है, जैसे कि हर दिन स्नान करना, दिन में पांच बार हाथ, चेहरा, पैर और कान धोना और पूरी उपवास के अवधि के दौरान खुद को साफ रखना आदि। यह निश्चित रूप से कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में मददगार साबित होगा। यह धार्मिक अनुशासन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहतर प्रभाव देने वाला है।
अल्लाह के रसूल ने कहा है, ‘‘अल्लाह ने कहा- आदम के बेटों (लोगों) के सभी कर्म उनके लिए हैं, सिवाय उपवास के जो मेरे लिए है, और मैं इसके लिए इनाम दूंगा।’’ मुसलमानों को इस पवित्र महीने में सर्वशक्तिमान से अधिकतम इनाम पाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अनावश्यक रूप से घूमने से बचना चाहिए। अच्छे कर्म करने चाहिए और घर के अंदर ही रहना चाहिए।
वैसे तरावीह की नमाज (रमजान के दौरान विशेष नमाज) मण्डली में पेश की जाती है लेकिन यह याद रखना चाहिए कि तरावीह की नमाज अनिवार्य नहीं है। अगर कोई इसे करने की इच्छा रखता है, तो वह इसे घर पर परिवार के सदस्यों के साथ या खुले स्थान पर प्रशासन द्वारा सुझाए गए दिशानिर्देशों का पालन करते हुए किया जाना चाहिए। कोरोना महामारी काल में तरावीह की नमाज, अपने ही लोगों की जान को जोखिम में डालकर की जाए, तो बेशक खुदा इससे खुश नहीं होगा।
इस कोरोना काल में, देश एवं देशवासियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों को कोविड-19 दिशा निर्देश का पालन अनिवार्य है। सच्चा मुसलमान वही है जो अपना और अपने अगल-बगल की सुरक्षा के लिए हर समय प्रस्तुत रहता है। इस्लाम की पवित्र किताब कुरान मजीद में कई स्थानों पर इस बात की मुकम्मल व्याख्या की गयी है। सच्चे ईमान वालों से यही अपेक्षा की जाती है कि खुद भी सुरक्षित रहें और अपने लोगों को भी सुरक्षित रखें। साथ धर्म के नाम पर ऐसा कुछ न कर बैठें जिससे अपने और अपने समाज का बुरा हो जाए। मसलन, अपने धर पर रह कर धार्मिक कार्यों को अंजाम दें क्योंकि सर्वशक्तिमान ईश्वर सर्वव्यापी और सर्वज्ञ हैं, जो अपने बनाए लोगों की प्रार्थना को स्वीकार करता है चाहे वो किसी भी स्थान से किया गया हो।
इस महामारी काल में भारत के मुसलमानों ने कई मिसाल पेश किए हैं। है। कोरोना की दूसरी लहर काल में भारतीय समाज के अंदर जबरदस्त आपसी सौहार्द देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ वर्षों में जो आपसी दूरियां बढ़ी थी वह धीरे-धीरे कम होने लगी है। इसे और कम करने की जरूरत है। भारत के हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर कई समस्याओं का समाधान किया है। फिरंगियों के खिलाफ जंगें भी लड़ी है। वर्तमान जंग महामारी के खिलाफ है। इस जंग को यदि जीतना है तो हमें मिलकर लड़ना होगा। यदि भगवान चाहे तो इस युद्ध को हम जरूर जीतेंगे। फिर मस्ती से ईद भी मनाएंगे और दिवाली भी, सरहुल भी मनाएंगे और क्रिसमस भी, वैसाखी भी मनाएंगे और पोंगल भी। तो आइए मिलकर महामारी के खिलाफ जंग में सहयोग करें और प्रशासनिक दिशानिर्देशों का पालन करें।