‘हमारे बारह’ पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं, फिल्मी के खिलाफ मुस्लिम महिलाएं आएं आगे 

‘हमारे बारह’ पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं, फिल्मी के खिलाफ मुस्लिम महिलाएं आएं आगे 

लंबे अरसे से विवादों में रही ‘हमारे बारह’ फिल्म को आखिरकार सिनेमाघरों तक पहुंचने की हरी झंडी मिल गई। हालांकि इस फिल्म के तीन महत्वपूर्ण संवाद बदल दिया गया है लेकिन अब यह फिल्म दर्शकों के लिए तैयार हैं। फिल्म बनाने वालों का दावा है कि इसे महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से देखा जाना चाहिए लेकिन मजहब के पाबंदों का आरोप है, यह फिल्म इस्लामिक मान्यताओं को लक्ष्य कर बनाया गया है। जो भी हो लेकिन अब फिल्म सिनेमाघरों में है। 

फिल्म की कहानी एक प्रगतिशील मुस्लिम युवा लड़की द्वारा न्यायालय के दरवाजे से प्रारंभ होती है। फिल्म में देश के कानून और इस्लामिक मान्यताओं में साफ तौर पर गतिरोध दिखाया गया है। एक परंपरिक मुस्लिम परिवार में 11 बच्चे पहले से होते हैं। घर का मुखिया जो 60 की उम्र का है, वह अपनी आधी उम्र की दूसरी पत्नी से 12वां बच्चा चाहता है। पत्नी गर्भवती तो है लेकिन उसकी शारीरिक स्थिति बच्चा जनने लायक नहीं है। चिकित्सकों की राय है कि वह अबॉर्शन करवा ले लेकिन उसका पति इसके लिए तैयार नहीं है। वह वहां धर्म की दुहाई देता है। फिल्म की पटकथा कुछ इसी तरह है। इस बीच घर के मुखिया की बेटी आगे आती है और अपनी सौतेली मां को लेकर कोर्ट चली जाती है। फिल्म इसी के चारों ओर घूमता रहता है। 

इस फिल्म ने मुस्लिम समुदाय और विद्वानों के बीच चिंता पैदा कर दी है। फिल्म को लेकर मुस्लिम समुदाय नाराज दिख रहा है। मामले को लेकर कई स्थानों पर प्रदर्शन भी हो रहे हैं। उनका आरोप है कि इस फिल्म में इस्लामी शिक्षाओं को नकारात्मक रूप से चित्रित किया गया है। फिल्म के आलोचकों का तर्क है कि इसमें कुरान और हदीस की शिक्षाओं को नकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। साथ ही मुसलमानों को प्रगतिशीलता के खिलाफ बताया गया है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। 

फिल्म में उठाए गए मुद्दों, जैसे मुस्लिम महिलाओं का उत्पीड़न, जनसंख्या विस्फोट, पितृसत्ता आदि को बेहतर तरीके से दिखाया गया है। फिल्म में यह भी बताया गया है कि मुस्लिम समाज में महिलाओं की शिक्षा को तवज्जो नहीं दिया जाता है। इसे समस्या के रूप में चिन्हित किया गया है। सच पूछिए तो भारतीय मुस्लिम समाज में इस प्रकार की समस्या तो है लेकिन मूल इस्लाम का वास्तविक रूप ऐसा नहीं है। मूल इस्लाम में महिलाओं को शिक्षित होना अनिवार्य बताया गया है। सामान्य-सी बात है, कोई सभ्यता या समूह तभी मजबूत होता है, जब वहां की महिलाएं सशक्त होती है। महिलाएं तभी सशक्त होगी जब उसे शिक्षित किया जाए। इस्लाम में भी ऐसा ही है। यदि महिलाओं को शिक्षित बनाया जाए तो वही महिला  आगे चलकर इस्लाम की ताकत बन जाएगी। इस फिल्म पर हंगामा करने के बजाय, मुस्लिम समुदाय की विद्वान महिलाओं को आगे आना चाहिए और अपने ज्ञान व तर्क-बुद्धि से ऐसे आख्यानों का खंडन करना चाहिए, जो उनके धर्म के खिलाफ है। प्रभावशाली या शक्तिशाली पद पर आसीन एक मुस्लिम महिला यदि ऐसा करती है, तो उसका प्रभाव दूर तक पड़ेगा।

इस्लाम हिंसा से घृणा करता है। यह अपने अनुयायियों से देश के कानून का पालन करने के लिए भी कहता है। इस मामले में लाभ कमाने वाले प्रोडक्शन हाउसों की रणनीति में फंसने के बजाय, मुसलमानों को राजनीतिक कौशल का परिचय देना चाहिए। फिल्म के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़ी जा सकती है। कोई भी हिंसक दृष्टिकोण केवल ऐसी कहानियों को बढ़ावा देगा और समुदाय को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करेगा। 

इस्लाम, पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए शिक्षा को उच्च महत्व देता है। इस्लाम के अंतिम नवी ने साफ तौर पर कहा है कि ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान का दायित्व है। ‘हमारे बारह’ जैसी फिल्मों द्वारा सामने लाए गए मुद्दों के प्रकाश में, मुसलमानों के लिए खुद को और दूसरों को इस्लाम के सच्चे सिद्धांतों के बारे में बताना चाहिए। इसपर एक मीडिया कैंपेन भी चलाया जा सकता है। गलत सूचना और पूर्वाग्रह से निपटने के लिए शिक्षा एक शक्तिशाली उपकरण है। अपने विश्वास के मूल मूल्यों को समझकर और उनका अभ्यास करके, मुसलमान इस्लाम के सच्चे सार को प्रदर्शित कर सकते हैं। मुस्लिम समुदाय को रचनात्मक बातचीत में शामिल होना चाहिए और मीडिया में गलत बयानी का तर्क के साथ खंडन करना चाहिए। इस लड़ाई के बीच देश के लोकतांत्रिक ढंचे व कानून का सम्मान भी जरूरी है। 

मामला चाहे जो भी हो, हिंसा का सहारा लेने के बजाय शांतिपूर्ण और वैध तरीकों से ऐसे आख्यानों का मुकाबला करना और इस्लामी शिक्षाओं की सटीक समझ को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना आधुनिकता का मापदंड बन गया है। ऐसे में सड़कों पर उतरने से ज्यादा बढ़िया न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा। इसके अलावा, महिलाओं की शिक्षा का समर्थन करके और उनकी उपलब्धियों को समुदाय के सामने बोलने की अनुमति देकर, मुसलमान अपने विश्वास के सच्चे सिद्धांतों का प्रदर्शन कर सकते हैं।

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