सेराज अनवर
नीतीश कुमार को पसंद-नापसंद कर सकते हैं। जदयू नेता ने देश भर के विपक्षी नेताओं को जमा कर जो समा बांधा था, लालू प्रसाद ने सब तबाह कर दिया। इंडिया गठबंधन से नीतीश के निकलने की एक वजह लालू प्रसाद भी हैं। आज स्पष्ट दिख रहा है कि लालू कैसे बिहार में महागठबंधन के रास्ते कांटे डाल रहे हैं और साम्प्रदायिक ताकतों के लिए कालीन बिछा रहे हैं। विगत दिनों उन्होंने बिना किसी घटक दलों के पूछे एकतरफ़ा सिम्बल बंट दिया। न अखिलेश की सुनी न खड़गे साहब की मानी। भारतीय काम्युनिस्ट पार्टी यानी माले मौन है, कांग्रेस सकते में है। लालू से सहमति लेकर पप्पू यादव ने अपनी पार्टी को कांग्रेस में विलय कर दिया, चुनाव के लिए पूर्णिया को चुना। उनके साथ धोखा हो गया। बीमा भारती को राजद ने वहां से टिकट दे दिया। अब पूर्णिया सीट पर महागठबंधन आपस में टकरा रहा है। यह सब लालू की वजह से हो रहा है। नीतीश यह देख मुस्कुरा रहे होंगे।
लालू प्रसाद की बैटिंग संदेह उत्पन्न कर रही है। वैसा ही, जैसा एक वायरल विडियो में बैटिंग कर रहा बल्लेबाज़ धोखे से अपने ही साथी को रन आउट करा देता है। लालू भी गठबंधन के साथियों को रन आउट करा रहे हैं। लालू यादव आखिर यह किसके इशारे पर करा रहे हैं, क़लई खुलती जा रही है। लोगों के ज़बान पर है, लालू यादव ने साम्प्रदायिक ताकातों के साथ हाथ मिला लिया है। कभी न झुकने का दावा धूल-धूसरित हो रहा है। महागठबंधन के लिए लालू बैटिंग नहीं कर रहे यह भी साफ दिख रहा है। अन्यथा, सीट शेयरिंग के बिना सिम्बल बांटते चला जाना गठबंधन धर्म से इतर है। इससे किसको फ़ायदा हो रहा है?
यह सत्य है लालू कभी नहीं झुके, झुकाने का ख़ूब प्रयास हुआ। अब झुकाव की दिशा ख़तरनाक है। महागठबंधन से कोई तालमेल नहीं है। पूरे गठबंधन को लालू खा गये। पहले नीतीश को निकलने पर विवश किया, नीतीश के रहते लालू की नहीं चलती थी। लालू ने नीतीश को प्रधानमंत्री उम्मीदवार और संयोजक बनने की राह में चतुराई से बाधा उत्पन्न किया। कभी सात-आठ संयोजक की बात की गयी तो कभी खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे कराया गया। सारा खेला लालू खेलते रहे। कांग्रेस लालू के इशारे पर नाचती रही क्योंकि बिहार कांग्रेस का वर्तमान अध्यक्ष भी भी कभी लालू यादव के बेहद निकट हुआ करते थे। नतीजा यह हुआ कि पहले नीतीश गठबंधन से निकले और बाद में ममता बनर्जी भी गठबंधन में नहीं रही। आज गठबंधन नाम की कोई चीज़ रह नहीं गयी है। ऐसा कौन चाहता होगा? किसके इशारे पर लालू ऐसा कर रहे हैं? लालू परिवार पर कई मुक़दमे हैं। तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनना है। राजनीति में सब चलता है। दोस्त भी, दुश्मन भी। लालू गठबंधन तोड़ने पर आमादा हैं। यदि कांग्रेस सूझ-बूझ से काम नहीं लेती तो गठबंधन टूट गया होता। अपमान का घूंट पी कर कांग्रेस-वाम उनके साथ है। बे-इज़्ज़ती की हद तक कर दी है।
बेगूसराय से कन्हैया कुमार को चुनाव लड़ना था। कन्हैया फाइटर है। पिछले लोकसभा चुनाव में राजद-कांग्रेस से अलग रह कर गिरिराज सिंह को टफ मुक़ाबला दिया था। कन्हैया इस बार गठबंधन के उम्मीदवार होते तो नज़ारा कुछ और होता। बेगूसराय की सीट सीपीआई को दे दी गयी। बेगूसराय अब लेनिनग्राद नहीं है। कह सकते हैं कि गिरिराज सिंह को वाक़ओवर मिल गया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि हालिया दिनों में दिल्ली जाने के दौरान गिरिराज से फ़्लाइट में तेजस्वी से मुलाक़ात हुई थी। उसी तरह पूर्णिया से पप्पू यादव की उम्मीदवारी एनडीए पर भारी पड़ रही थी। पूर्णिया से पप्पू यादव तीन बार सांसद रह चुके हैं। प्रणाम पूर्णिया में हज़ारों लोग जुटे थे। लालू-तेजस्वी से पप्पू यादव मिले भी। कहते हैं उनकी सहमति के बाद ही पप्पू यादव ने अपनी पूरी पार्टी को कांग्रेस में मर्ज़ कर दिया। अब पप्पू के साथ भी लालू खेल गये। उनके ख़िलाफ़ बीमा भारती को उतार दिया। यह गठबंधन की कौन सी राजनीति है? किससे लड़ रहे हैं लालू प्रसाद? लालू को तो भाजपा से लड़ते देखा गया है। सीवान में आज भी मोहम्मद शहाबुद्दीन परिवार का प्रभुत्व क़ायम है। हिना शहाब को टिकट देना चाहिए था। मरहूम सांसद ने राजद को ख़ून-पसीना से सींचा था। हिना शहाब या ओसामा निर्दलीय भी लड़ेंगे तो मुक़ाबला उसी से होना है। नवादा में श्रवण कुमार को टिकट दे कर राजद ने अलग बखेड़ा खड़ा कर दिया है। राजबल्लभ परिवार खफ़ा है। यदि विनोद यादव चुनाव में उतर गया तो किसको फ़ायदा होगा? एक तेजस्वी की ख़ातिर कन्हैया कुमार, पप्पू यादव, ओसामा शहाब को लालू प्रसाद अपने जीते जी कभी उभरने नहीं देंगे और न ही नेता बनने देंगे। यह एक कटु सत्य है और सत्य यह है कि लालू महागठबंधन के लिए बैटिंग तो नहीं ही कर रहे हैं अपितु अपने ही सह खिलाड़ी को आउट करवाने की रणनीति बना रहे हैं।
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