नयी दिल्ली/ अखिल भारतीय किसान सभा ने केन्द्र सरकार पर एक बार फिर से किसानों को धोखा देने का आरोप लगाया है। सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजन क्षीरसागर रावुला वेंकैया ने अपने हालिया बयान पर कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में औसतन 6-7 प्रतिशत की मामूली वृद्धि की घोषणा करके किसानों पर एक बार फिर से हमला किया है। भाजपा सरकार स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुसार लागत सी2+50% पर एमएसपी की कानूनी गारंटी देने में उपेक्षा एवं इनकार की नीति जारी रखे हुए है। 14 खरीफ फसलों के लिए घोषित एमएसपी किसानों के साथ एक निर्दयी मजाक है। जहाँ भाजपा सत्ता में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा करके आई, वहीं अब यह कॉर्पाेरेट मुनाफ़े को दोगुना करने पर केंद्रित है, जिससे किसान संकट में हैं! परिणामस्वरूप 1,20,000 से अधिक किसान आत्महत्याएँ हुई हैं।
सरकार का ‘उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत मार्जिन’ प्रदान करने का दावा झूठा और निराधार है। सीसीईए ने छिपे हुए एजेंडे के माध्यम से कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को पतित कर दिया है। भारतीय कृषि को अमेरिकी कृषि व्यवसाय कंपनियों के लिए खोलने के क्रूर इरादे से भाजपा सरकार ने सीएसीपी को अवैज्ञानिक, झूठे एमएसपी की सिफारिश करने के लिए मनमाने ढंग से प्रभावित किया।
उल्लेखनीय है कि सीएसीपी कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन काम करता है-वाणिज्य मंत्रालय के नहीं-फिर भी इसने जानबूझ कर वैज्ञानिक व्यापक लागत सी2 पद्धति को दफना दिया है। राज्यों की सिफारिशों को अनदेखा किया गया है, जो भारत की संघीय ढांचेका उल्लंघन है और संवैधानिक सिद्धांतों को कमजोर करता है। अन्य शीर्ष संस्थानों के विपरीत, भाजपा सरकारने तर्कसंगत कृषि नीति निर्माण को बर्बाद कर दिया है।
उन्होंने कहा, कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पिछले सीजन में सोयाबीन की गिरती कीमतों के चलते किसान असंतोष के कारण ने सोयाबीज कि आपातकालीन खरीद की घोषणा करनेको मजबूर किया था, तब उन्होंने इस अशांति को प्रत्यक्ष रूप से देखा। सीएसीपी की सिफारिशें (संदर्भ-रिपोर्ट पृ. 163) उर्वरक की कीमतों, बिजली शुल्क, उर्वरक सब्सिडी वापसी, कृषि उपकरणों पर जीएसटी तथा किसान कर्ज को गहरा करने वाले ₹25,000 करोड़के आवंटनमें कटौती के बावजूद मात्र 6-7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती हैं। यह वृद्धी किसानोन के हित में कम है। जो फसल के लागत मूल्य से भी कई राज्यो में काम है।
क्षीरसागर ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर ए2, ए2+एफएल और सी2 लागत प्रकाशित करते समय, इसने सी2-आधारित गणना से परहेज किया, जिससे पता चलता है कि घोषित एमएसपी आवश्यक स्तरों से 25-34 प्रतिशत कम हैं। उसी प्रकार प्रमुख उत्पादक राज्यों (60%+ उत्पादन हिस्सेदारी) के लिए राज्य-विशिष्ट लागतों को नजरअंदाज किया गया, धान-महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, केरल, कर्नाटक, झारखंड, असम, कपास-तिलहनरू महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक (50%+ उत्पादन हिस्सेदारी)।
रिपोर्ट की अन्य सिफारिशें खरीद प्रणालियों को खत्म करने तथा वैश्विक कृषि व्यवसाय को तरजीह देने के इरादों की पुष्टि करती हैं। यह विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु, झारखंड और पश्चिम बंगाल (सभी भाजपा-विरोधी राज्यों!) की आलोचना करती है, जो बोनस प्रदान करते हैं (धान के लिए ₹520-780/क्विंटल), और दावा करती है।
यह निजी व्यापार भागीदारी को सीमित करता है और संभावित रूप से प्रतिस्पर्धा को हतोत्साहित करता है, साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यह एक असंघीय, किसान-विरोधी रवैया है जो राज्यों के लागत आँकड़ों को खारिज करता है।
किसान नेता ने कहा कि अंततः, भाजपा कृषि आयात-निर्यात में कॉर्पाेरेट्स को फायदा पहुँचाने के लिए किसानों के खिलाफ डेटा में हेराफेरी हेतु सीएसीपी का दुरुपयोग करती है। आयात में उछाल ने पहले ही अरहर (तूर), सोयाबीन, मसूर, कपास और अन्य फसलों की कीमतों को गिरा दिया है।
सरकार द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) ऋण सीमा ₹3 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख करने की घोषणा के बावजूद, जिला-स्तरीय ऋण योजनाएँ अमल में नहीं लाई गई हैं। बैंकिंग प्रणालियाँ किसान-विरोधी कदम जारी रखे हुए हैं, जो लगभग 40ः किसानों को संस्थागत वित्त से बाहर करती हैं। ग्रामीण बैंकों के पुनर्गठन से बैंकिंग पहुँच और कम होगी तथा किसानों की ऋण तक पहुँच को अक्षम करेगी। इस बीच, कॉर्पाेरेट और बड़े व्यवसाय इस प्रणाली का शोषण करके कृषि के लिए नियत ऋण को डायवर्ट कर रहे हैं।
इस प्रकार, भाजपा की केन्द्र सरकार जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रही है। एआईकेएस स्वामीनाथन आयोग के अनुसार लागत (सी2)+50% पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की अपनी मांग को पुनः दोहराता है। हम सरकार से मांग करते हैं कि तत्काल एमएसपी को सी2+50% तक बढ़ाया जाए स्तर (नीचे तालिका में दर्शाए गए अनुसार), आगामी मानसून सत्र में संसद में कानूनी एमएसपी गारंटी अधिनियमित की जाए, सार्थक राज्य भागीदारी और किसान प्रतिनिधित्व के साथ सीएसीपी का पुनर्गठन किया जाए।
का. क्षीरसागर ने कहा कि अव्यवहारिक एमएसपी और अप्राप्त उत्पादन लागत के कारण, कृषि एक अलाभकारी आर्थिक गतिविधि बन गई है। जीवित रहने के लिए, किसानों को अपनी संपत्ति बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है। भाजपा के दशक लंबे शासन के तहत, 2 करोड़ से अधिक किसानों ने अपनी कृषि भूमि खो दी है और खेती छोड़ दी है। एआईकेएस सभी इकाइयों को हर गाँव में सरकारी आदेशों को जलाकर इस अन्याय के विरोध का निर्देश देता है। एआईकेएस संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और सहयोगी संगठनों से केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व में 9 जुलाई की राष्ट्रव्यापी हड़ताल और सत्याग्रह के लिए जुटने का आह्वान करता है। एआईकेएस किसानों और श्रमिकों से सरकार की कॉर्पाेरेट-पक्षधर, किसान-विरोधी और मजदूर-विरोधी नीतियों के विरुद्ध आंदोलन में शामिल होने की अपील करता है।