गौतम चौधरी
संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी जे ब्लिंकन ने 2021 की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट (आईआरएफ) जारी करते हुए टिप्पणी कहा कि ‘‘भारत में धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में है’’। ब्लिंकन ने स्वीकार किया कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और विभिन्न प्रकार की आस्थाओं का घर है, लेकिन साथ ही यह कह कर भारत पर दोष मढ़ा कि हमने भारत में लोगों और पूजा स्थलों पर बढ़ते हमले देखे हैं। ब्लिंकन ने आईआरएफ 2021 रिपोर्ट के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। इसकी पड़ताल जरूरी है। भारत अपनी विविधता और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए जाना जाता है। अमेरिका लंबे समय से भारत का मित्र और रणनीतिक साझेदार है। यदि अमेरिका के विदेश मंत्री कुछ कहते हैं तो उसका विश्वव्यापी महत्व हो जाता है। कुछ रिपोर्ट के आधार पर भारत में धार्मिक सहिष्णुता पर यदि वे सवाल खड़ा कर रहे हैं तो इसका आलोचनात्मक विश्लेषण की जरूरत हो जाता है।
आईआरएफ रिपोर्ट में 84 वर्षीय जेसुइट लिबरेशन थिओलॉजी के समर्थक फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु पर प्रकाश डाला गया है, ताकि यह साबित हो सके कि भारत की सरकार ने सरकार के खिलाफ उठ रही आवाजों का दमन किया था। तो यहां बता दें कि स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगांव हिंसा में उनकी भूमिका के लिए यूएपीए के तहत राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) ने गिरफ्तार किया था। आईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि स्वामी की न्यायिक हिरासत में मृत्यु हुई, बावजूद इसके कि उनके स्वास्थ्य के बारे में बार-बार चिंता व्यक्त की गई थी। इस रिपोर्ट में (जाने-अनजाने) कुछ महत्वपूर्ण तथ्यात्मक त्रुटि है। उदाहरण के लिए, उच्च न्यायालय के आदेश पर, तालुजा जेल के अधिकारी स्वामी को कोविड परीक्षण के लिए और अन्य आयु संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए सर जेजे अस्पताल ले गए। स्वामी ने ही न्यायमूर्ति, एस जे कथावाला से कहा था कि वह जेजे अस्पताल में भर्ती होने के बजाय जेल में मरना पसंद करेंगे। कुछ दिनों बाद, स्वामी को होली फैमिली अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसमे उन्हें सर्वोत्तम उपचार उपलब्ध कराए गए।
आइए अब हम यह जानते हैं कि एनआईए के द्वारा पकड़े गए फादर की पृष्ठभूमि क्या है। एनआईए की चार्जशीट के अनुसार, स्वामी एक सीपीआई (माओवादी) कैडर थे और उनसे धन प्राप्त करते थे। वह सीपीआई (माओवादी) के लिए एक फ्रंटल संगठन- सताए गए कैदी सॉलिडेरिटी कमेटी के संयोजक भी थे। यह उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है कि अब तक सीपीआई (माओवादी) के कार्यकर्ताओं द्वारा सैकड़ों सुरक्षा बलों और नागरिकों को बेवजह मारा गया है। इसके अलावा, एनआईए द्वारा छापेमारी के दौरान उसके पास से कई आपत्तिजनक दस्तावेज, साहित्य और प्रचार सामग्री बरामद की गई थी। यहां एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या देश और अपने समाज की सुरक्षा करना आलोचनात्मक आवाज को दबाना हैै?
दूसरा वाकया भी है। तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी और मुकदमे का हवाला आईआरएफ रिपोर्ट द्वारा भारत में धार्मिक उत्पीड़न की अपनी बात को साबित करने के लिए दिया गया है। रिपोर्ट आश्चर्यजनक रूप से इस तथ्य का उल्लेख करने में विफल रही है कि खुर्रम को अन्य लोगों के साथ आतंकवादी फंडिंग और आतंकवाद के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया था, जिसका भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ता है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख नहीं है कि एक आईपीएस अधिकारी अरविंद दिग्विजय नेगी (पहले एनआईए के साथ तैनात) को भी एनआईए ने खुर्रम और अन्य आरोपियों के साथ भारत में खूंखार आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा (एलईटी) के ओवर ग्राउंड नेटवर्क का हिस्सा होने के लिए गिरफ्तार किया था। यहां भी वही प्रश्न खड़ा है।
तीसरा वाकया। यह एक खुला रहस्य है कि पिछले साल की त्रिपुरा हिंसा से संबंधित सोशल मीडिया पर कई फर्जी खबरें प्रसारित की गईं। त्रिपुरा पुलिस ने 68 ट्विटर अकाउंट, 31 फेसबुक अकाउंट और 2 यूट्यूब चैनलों को कथित त्रिपुरा हिंसा के बारे में फर्जी खबरें प्रसारित करते हुए पाया। आईआरएफ रिपोर्ट ने त्रिपुरा में यूएपीए के तहत मामले दर्ज करने का उल्लेख किया था, लेकिन फिर से इस तथ्य का उल्लेख करने में विफल रहा कि एक अन्य गैर-भाजपा शासित राज्य महाराष्ट्र ने त्रिपुरा हिंसा से संबंधित सोशल मीडिया पर नकली संदेश साझा करने वाले 36 सोशल मीडिया पोस्ट पाए थे। इन फर्जी संदेशों ने न केवल त्रिपुरा में बल्कि पूरे देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब कर दी। अब, अगर पुलिस ऐसे दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, तो यह भारत में धार्मिक उत्पीड़न का मामला कैसे हो कसता है?
जम्मू और कश्मीर में यूएपीए के उपयोग को आईआरएफ रिपोर्ट में उजागर किया गया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा राज्य में एकतरफा कार्रवाई की जा रही है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि यह यह हिंदू बहुल राष्ट्र में मुस्लिम बहुल केंद्र शासित प्रदेश है। यहां भी आईआरएफ कुछ तथ्यों को बुरी तरह छुपा लिया है। इस रिपोर्ट में इस बात की कहीं चर्चा तक नहीं की गयी है कि जम्मू-कश्मीर में पिछले 3 दशकों से अधिक समय से आतंकवाद के गंदे खेल खेले जा रहे हैं। हाल की सरकारी रिपोर्ट पर ध्यान दें तो विगत दो महीनों में जम्मू-कश्मीर के अंदर कम से कम 25 हिन्दुओं की टारगेटेड हत्या की गयी है। कई सुरक्षा बल के जवान मारे गए और कई आतंकवाद विरोधी कश्मीरियों की हत्या कर दी गयी। इन नई हत्याओं के कारण सैकड़ों कश्मीरी पंडित एक बार फिर से घाटी छोड़ गए। कश्मीर में आतंकवाद की घटनाओं के बारे में बहुत सारी सामग्री नेट पर उपलब्ध है, छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। यह आश्चर्यजनक है कि आईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट में केवल एक पक्ष का ख्याल रखा।
अपने आरोपों को सही ठहराने के लिए, आईआरएफ रिपोर्ट ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी जैसे धार्मिक संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस को रद्द करने का हवाला दिया। बता दें कि ऐसा कुछ भी नहीं है कि एमओसी पर पूर्वाग्रह से कार्रवाई की गयी है। दरअसल, भारत सरकार ने करीब 6000 गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस रद्द की है। आईआरएफ रिपोर्ट ने एमओसी मामले को चयनात्मक लक्ष्यीकरण के रूप में प्रस्तुत किया है लेकिन तथ्य कुछ और है। इस मामले में भारत सरकार के विभिन्न सुरक्षात्मक अभिकरणों ने कई संगठनों के बारे में जानकारियां उपलब्ध की और जिन संगठनों को सही पाया उन्हें फिर से एफसीआरए जारी कर दिया। एमओसी का भी एफसीआरए लाइसेंस फिर से बहाल कर दिया गया है। बता दें कि एमओसी के लोगों के बारे में सरकार की जांच एजेंसियों के पास नकारात्मक तथ्य भी सामने आए बावजूद इसके सरकार ने लाइसेंस नवीनीकृत कर दिया। इससे पता चलता है कि अधिकारियों की ओर से की गई कार्रवाई का धर्म से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि यह तकनीकी पहलुओं पर आधारित था। पड़ोसी पाकिस्तान या फिर चीन में एक धर्म आधारित (गैर-मुस्लिम) संगठन के लिए भी इसी तरह की कार्रवाई की कल्पना नहीं की जा सकती है।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों के संबंध में, जबरन धर्म परिवर्तन मामले में उमर गौतम की गिरफ्तारी ने प्रलोभन या दबाव के माध्यम से अवैध धर्मांतरण की सीमा का खुलासा किया। अनुच्छेद 25 सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन अपने स्वयं के धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति का धर्म परिवर्तन और वह भी प्रलोभन और दबाव में, निश्चित रूप से नैतिकता के मानदंड के खिलाफ है। सभी धर्म परिवर्तन कानून संबंधित राज्यों में अवैध धर्मांतरण पर रोक लगाते हैं। ये कानून केंद्रीय कानून नहीं हैं और संबंधित राज्यों द्वारा तैयार किए गए हैं। कानूनी रूप से धर्म परिवर्तन करने वालों को ऐसे कानूनों से डरने की कोई बात नहीं है। आईआरएफ ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रिपोर्टिंग करते समय इन तथ्यों को छोड़ दिया है।
यूएससीआईआरएफ ने भारत को विशेष चिंता का देश (सीपीसी) बनाने की सिफारिश की। बता दें कि इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएसएमसी) के संस्थापक शेख उबैद ने अंगना चटर्जी के साथ गठबंधन की स्थापना की, जो बदले में यूएससीआईआरएफ कमिश्नर नादिन मेंजा से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। आईएएमसी ने भारत को सीपीसी घोषित करने के लिए यूएससीआईआरएफ को प्रभावित करने के लिए लॉबिंग फर्म फिदेलिस गवर्नमेंट रिलेशंस को काम पर रखा है। आईएएमसी ने भारतीय मुद्दों जैसे हिजाब, समान नागरिक संहिता आदि पर कई वेबिनार आयोजित किए हैं और यूएससीआईआरएफ आयुक्त नादिन मेंजा इस तरह के आयोजनों में एक नियमित भागीदार रही हैं। आईएएमसी ने उत्तरी अमेरिका के इस्लामिक सर्किल (आईसीएनए) के साथ संबंध साबित कर दिए हैं, जो लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन (सभी पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन) और सिमी (भारत में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन) से जुड़ा है। यह भारत पर यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट की तटस्थता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। ब्लिंकन जैसे समझदार कूटनीतिकों को ऐसे हल्के बयान से बचना चाहिए। इस प्रकार के बयान न केवल भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों को नए सिरे से प्रभावित कर सकते हैं अपितु दुनिया भर में फैले इस्लाम के नाम पर बनाए गए खतरनाक नेटवर्क को भी बल प्रदान करेगा, जिससे खुद अमेरिका सहित पश्चिम के कई देश बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।