अरविंद केजरीवाल : एक राजनीतिक प्रतिभा का असमय अवसान

अरविंद केजरीवाल : एक राजनीतिक प्रतिभा का असमय अवसान

एक बार ये पुनः सिद्ध हो गया हैं कि आईआईटी जैसे विश्व के श्रेष्ठतम शिक्षा संस्थानों से निकले छात्रों की बुद्धि, मेधा, ज्ञान और कौशल का कोई मुकाबला नहीं हैं। यहाँ से निकले छात्रों ने अपनी बुद्धिमत्ता, पांडित्य और प्रज्ञता के बलबूते देश ही नहीं अपितु दुनियाँ मे अपने नाम की छाप छोड़ी हैं। श्री चेतन भगत (विश्व प्रसिद्ध लेखक और साहित्यकार), रघुरामन (पूर्व गवर्नर, आरबीआई), मनोहर पर्रिकर (पूर्व मुख्य मंत्री, गोवा), नन्दन नीलकेणी (आधार कार्ड के जनक और इन्फोसिस के संस्थापक) जैसे अनेक छात्रों ने अपनी सकारात्मक सोच और ऊर्जा का उपयोग, समाज और देश के विकास और कल्याण हेतु कर अपने नाम की सार्थकता को साबित किया, इसके विपरीत इन्ही आईआईटी से निकले छात्र अरविंद केजरीवाल ने संस्थान से प्राप्त बुद्धिबल और मेधा का उपयोग विध्वंस और विनाश मे करने के कारण, प्रवर्तन निदेशालय ने दिनांक 22 मार्च 2024 को लंबी लुका-छुपी के खेल के बाद अंततः भ्रष्टाचार के आरोप मे गिरफ्तार कर लिया। आईआईटी जैसे, एक ही संस्थान से निकले दो विपरीत सोच और संस्कारों के व्यक्तियों की गति कैसी होती? श्रीमद्भगवत गीता के संदेश ष्जैसे कर्म करेगा, बैसे फल देगा भगवानष् को सही चरितार्थ कर दिया।

बैसे राजनीति के पंडितों को अनिल केजरीवाल की इस दुर्गति के बारे मे जान कर कोई बहुत ज्यदा आश्चर्य या विस्मय नहीं हुआ क्योंकि अरविंद केजरीवाल के राजनैतिक जीवन की बुनियाद ही झूठ, फरेब, कपट और मिथ्या पर खड़ी हुई है। 5 अप्रैल 2011 को समाजसेवी श्री अन्ना हजारे द्वारा एक सशक्त लोकपाल विधेयक के निर्माण की मांग को लेकर दिल्ली मे अमरण अनशन की शुरुआत की गयी। भ्रष्टाचार के विरुद्ध श्री अन्ना हजारे की इस मुहिम मे अरविंद केजरीवाल का शामिल होना उनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत थी। एक बड़ा आंदोलन चलाया गया। श्री अन्ना हजारे के लोकपाल विधेयक की मांग और भ्रष्टाचार के विरुद्ध, आंदोलन को सारे देश मे मिले जनसमर्थन के कारण ही अरविंद केजरीवाल जैसे नाचीज इंसान को भारत के राजनैतिक पटल पर पहचान मिली। श्री अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजे, अरविंद केजरीवाल ने अब तक देश मे मिली पहचान से अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को अमली जामा पहनाने की राह मे श्री अन्ना हजारे का अनुशासन सबसे बड़ा अवरोध था। अन्ना हजारे और उनके आंदोलन मे शामिल सभी आंदोलनकारियों का राजनीति मे प्रवेश के निषेध की सख्त अनुपालना के चलते केजरीवाल जैसे तैसे चेहरे पर छद्म मुखैटा लगा कर अन्ना हजारे के आंदोलन की समाप्ति का इंतजार करते रहे। अरविंद केजरीवाल को अन्ना हजारे के आंदोलन से अब तक मिली ख्याति के चलते अब अन्ना के आंदोलन की सफलता और असफलता से कोई विशेष प्रयोजन नहीं था अपितु जैसे ही अन्ना हजारे का आंदोलन राजनीति के भंवरजाल मे उलझ कर अपना अस्तित्व की आधी अधूरी जीत हांसिल कर 28 अगस्त 2011 को आंदोलन की समाप्ति हुई, बैसे ही अरविंद केजरीवाल ने अपने मन मे दवी ललक-लालसा को धरातल पर लाने मे एक क्षण की भी देरी नहीं की और अन्ना हजारे के आंदोलन की नीति नियमों को तिलांजलि देकर अन्ना हजारे के विश्वास पर आघात किया और 2 अक्टूबर 2012 को ष्आपष् नामक राजनैतिक दल का गठन कर राजनीति मे प्रवेश किया। अब अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल की राहें अलग-अलग थी। यहाँ यह कहने मे कोई अतिशयोक्ति नहीं कि अरविंद केजरीवाल का राजनीति मे प्रवेश ही विश्वासघात की बुनियाद पर आधारित था।

राजनैतिक परिदृश्य मे कुछ ऐसे बदलाब हुए कि अरविंद केजरीवाल ने 28 दिसम्बर 2013 को पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अपने नए पद और नई जिम्मेदारियों के जोश के चलते जिन केजरीवाल ने कहा था न बंगला लूँगा, न सुरक्षा, न गाड़ी, उन्ही केजरीवाल ने अपने गाड़ी और बंगले पर करोड़ो रूपये खर्च किए और अब आज करोड़ो रूपये के आबकारी घोटाले मे संलिप्तता के चलते ईडी की गिरफ्त मे हैं। 2015 और 2020 मे दिल्ली राज्य की सत्ता मे अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व मे आम आदमी पार्टी की पुनः वापसी ने उनके आत्मविश्वास को सातवे आसमान पर ला दिया। कदाचित इसी अति आत्मविश्वास ने आईआईटी के एक मेधावी छात्र को अपने कर्तव्य पथ से गुमराह कर पथभ्रष्ट कर दिया?

अपनी दूरंदेशी मेधा के बलबूते अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानने मे कोई बुराई नहीं लेकिन अपने आप को सर्वोत्तम मानते हुए शेष दुनियाँ को मूर्ख समझने की नीति ने ही शायद केजरीवाल को पथच्युत कर दिया अन्यथा न्यायालय अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के आबकारी घोटाले का मुख्य साजिशकर्ता बता कर प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्त मे न भेजता। अरविंद केजरीवाल की स्व्घोषित कट्टर ईमानदार की छवि को नकारते हुए उच्च और उच्चतम न्यायालय ने उन्हे गिरफ्तारी से बचने की कोई भी राहत देने से इंकार करते हुए प्रवर्तन निदेशालय की 7 दिन की अभिरक्षा मे भेज दिया। आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली की जनता द्वारा केजरीवाल को मिले जनादेश की अवेहलना और लोकतान्त्रिक अधिकारों का हनन बतलाना, क्या दिल्ली के नागरिकों के लोकतन्त्र का मखौल नहीं? दिल्ली के लोगो ने केजरीवाल को शासन की डोर क्या इसलिये सौंपी थी कि वह जनता की सेवा सुहुलियत के विपरीत जा कर करोड़ो रूपये के भ्रष्टाचार मे संलिप्त हों? जनता की भलाई के इतर जनता के पैसों की लूट खसूट करें? आम आदमी पार्टी द्वारा इसे जनादेश का अनादर बतलाना दिल्ली की जनता का घोर निरादर और अपमान हैं। क्या जनादेश की आड़ मे केजरीवाल को भ्रष्टाचार और घोटाला करने का संवैधानिक अनुमति मिल गयी।

केजरीवाल की गिरफ्तारी को आम आदमी पार्टी ऐसे परिभाषित कर रही है मानों केजरीवाल किसी देशभक्ति और समाजसेवा मे गिरफ्तार हुए है? वे कोई बहुत बड़े देशभक्त या राष्ट्रभक्त हैं? हमे ये नहीं भूलना चाहिए कि केजरीवाल की गिरफ्तारी करोड़ो रूपये के घोटाले और भ्रष्टाचार मे की गयी है। शराब के उपभोग के लिये उम्र मे कमी, शराब की दुकानों को रात तीन बजे तक खोलने, शराब की होम डिलिवरी करने, शराब व्यापारियों मे लाभ का प्रतिशत 5 से 12 करने की नीति की आड़ मे करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार क्या एक कल्याणकारी सरकार की नीतियाँ हो सकती है? क्या एक सरकार के मुखिया से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा कभी की जा सकती है?

जिस केजरीवाल सरकार के तीन-तीन मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप मे जेल मे पहले से ही बंद हैं और उस सरकार के मुखिया स्वयं अरविंद केजरीवाल सारी नैतिकताओं, सदाचार और शर्मो हया त्याग कर ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी पर जेल से सरकार चलाने कर कौन से उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं? अपने सारे जीवन मे राजनैतिक दलों के भ्रष्टाचार, परिवारवाद और नैतिकताओं पर कटाक्ष और कार्यवाही की मांग को लेकर अपनी ईमानदारी और नैतिकता की डींगे हाँकने वाले केजरीवाल जब स्वयं भ्रष्टाचार मे लिप्त हैं तो इनके पैमाने अलग कैसे हो सकते हैं? भ्रष्टाचार पर दूसरों से त्यागपत्र मांगने वाले, गिरफ्तारी पर जेल से सरकार चलाने पर नैतिकता की कौनसी कसौटी का पालन कर रहे हैं? ये तो वही बात हुई हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और, अर्थात पर उपदेश कुशल बहुतेरे?

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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