BCC को आतंकवादी हमास पर भी ड़ाक्यूमेंटरी बनानी चाहिए

BCC को आतंकवादी हमास पर भी ड़ाक्यूमेंटरी बनानी चाहिए

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

वर्ष 2023 के प्रारम्भ में बीबीसी ने भारत व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिए जिस प्रकार एक ड़ाक्यूमेंटरी बनायी थी उसी प्रकार बीबीसी को आतंकवादी संगठन हमास व उसके अंध भक्त समर्थकों के पर भी एक ड़ाक्यूमेंटरी बनानी चाहिए जिसमें 7 अक्टूबर 2023 की प्रातः सात बजे हमास ने किस प्रकार इजराइल में चुपचाप घरों में घुस कर आतंकवादी कार्रवाही की तथा महिलाओं, बच्चों व बृद्धों को अपना निशाना बनाया, वह इतिहास बन सके और आने वाली पीढ़ियां हमास की बहादुरी देख सके। हमास एक आतंकवादी संगठन है और फिलिस्तीन एक स्वतंत्र देश है. हालंकि फिलिस्तीन ने किसी भी मुद्दे पर भारत का समर्थन नहीं किया था परन्तु भारत इस हमास व इजराइल युद्ध में फिलिस्तीन की मानवीय आधार पर सब प्रकार से सहायता कर रहा है।

बीबीसी ने भारत के गुजरात दंगों पर ड़ाक्यूमेंटरी बनायी जो उसके भारत विरोधी प्रचार का हिस्सा है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि को नुकसान पहंचाने की कोशिश की गई है। इस पर भारत की अधिसंख्य जनसंख्या ने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। स्वंय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ड़ाक्यूमेंटरी के तथ्यों को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि निश्चित रुप से हम उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं कर सकते चाहे वह कहीं भी हो लेकिन मैं उस चरित्र चित्रण से कतई सहमत नहीं हूं जो माननीय नेता (पीएम मोदी) का दिखाया गया। भारत के तत्कालीन विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भी कहा कि 2002 के दंगों के दौरान ब्रिटेन उच्चायुक्त की तरफ से भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने पर चेतावनी दी गई थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिदंम बागची ने भी कहा कि यह दुष्प्रचार का हिस्सा है जो खास तरह के नजरिये को आगे बढ़ाता है। यह पक्षपातपूर्ण होने के साथ ही औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित है। ब्रिटेन ने हाउस आफ लार्ड़स के सदस्य लार्ड़ रामी रेंजर ने भी ट्वीट कर बीबीसी पर निशाना साधा और कहा कि बीबीसी ने भारत के करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया है और लोकतांत्रिक रुप से निर्वाचित भारत के पीएम, वहां की पुलिस और न्यायपालिका की बेइज्जती की है। हम दंगों की निंदा करते है लेकिन हम पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग की भी निन्दा करते है।

अक्टूबर 7, 2023 की प्रातः इजराइल में घरों में घुस कर जिस प्रकार हमास जैसे आंतकवादी संगठन ने मानवता से खिलवाड किया तथा बच्चों, बृद्धों तथा महिलाओं को बेइज्जत करके मारा व पीटा, हत्या की, बंधक बनाया व अपहरण करके ले गये, वह कृत्य किसी भी मायने में उचित नहीं है तथा उस मानसिकता का समर्थन करने वाले भी पक्षपातपूर्ण रवैया अपना कर धनी मुस्लिम कट्टरपंथियों की ही तरफदारी करते है। इजराइल व हमास में अगर दुश्मनी थी तो हमास को दो तीन महीने पूर्व से अपनी शिकायतों को इजराइल के सामने रख कर बातचीत की पेशकश करनी चाहिए थी। यदि इजराइल बातचीत से इंकार करता अथवा कोई समझौता करने को तैयार नहीं होता तो फिर संयुक्त राष्ट्र संघ में गुहार करता तो फिर इजराइल को चेतावनी देकर युद्ध करता। यह नहीं करता कि दबे पांव आकर सोते लोगों पर गोलियां चलाता।

अब उसके बाद हमास की कार्रवाही के विरोध में प्रतिक्रिया स्वरुप इजराइल भी सामने आ गया तो बमबारी में होने वाले जानमाल के नुकसान के लिए हमास को ही जिम्मेदार ठहराया जायेगा। इजराइल को हमास की सैन्य कार्रवाही का उत्तर देने व अपना बचाव करने का पूरा अधिकार है। इजराइल को अपने मान सम्मान व अपने देशवासियों की रक्षा व सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है। वह (इजराइल) अक्टूबर 7, 2023 के बाद आक्रामक हो गया जिसकी पूरी जिम्मेदारी हमास की है। इजराइल को अक्टूबर 7, 2023 के बाद हुए पूरे नुकसान की भरपाई हमास को तथा उसके समर्थको को करनी चाहिए। यह मानवता की बात है न कि किसी देश को समर्थन अथवा विरोध की।

बीबीसी ने भारत जैसे मानवतावादी व शान्ति प्रिय देश के विरुद्ध एक प्रतिकूल दृष्टिकोण अपना रखा है जो कि बीबीसी के पवित्र पत्रकारिता के पेशे को शोभा नहीं देता । बीबीसी ने 2023 के पूर्व भी 1965 तथा 1971 के भारत पाक युद्ध तथा बाद में हुई खालिस्तानी आतंकवाद के संबंध में प्रसारण भी भारत व हिन्दू विरोधी रहा है। 2015 में बीबीसी ने एक ड़ाक्यूमेंटरी ‘इंड़ियाज ड़ाटर’ बनायी थी जो विवादों में रही थी। इस ड़ाक्यूमेंटरी में वे अंश शातिर तरीके से हटा दिये गये थे जो भारत के अनुपात के पश्चिमी देशों में महिला यौन उत्पीड़न के अधिक आंकड़ों को उद्धत करते थे। भारत में 2008 में मुम्बई में आंतकवादी हमला हुआ था उसमें भी आतंकवादियों को बीबीसी के द्वारा केवल गनमैन कह दिया था। अलेस्डर पिंकर्टन ने अपने लेख ए न्यू कांइड़ आफ इंपीरियज्म में कहा था कि भारत के प्रति बीबीसी का दृष्टिकोण सदैव एक नव-उपनिवेशवादी ताकत जैसा रहा है।

भारत की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1970 में बीबीसी पर प्रतिबंध लगा दिया था इस प्रतिबंध पर पिंकर्टन ने सहानुभूतिपूर्वक चर्चा की है। भारत के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय नई दिल्ली में जिस प्रकार वामपंथी लोगों ने जबरदस्ती बीबीसी की ड़ाक्यूमेंटरी को देखा क्या उसी मानसिकता से यदि बीबीसी हमास पर एक ड़ाक्यूमेंटरी बनाता है तो वे इसको भी उतने ही उत्साह से देखेंगे।! ड़ाक्यूमेंटरी पर भारत के विपक्ष के राजनीतिक दलों ने भी अति उत्साह दिखाया था उनकी उन्मत प्रतिक्रिया भी भारतीय न्याय व्यवस्था पर उनका अविश्वास ही दिखाता है।

भारत गत 40 वर्ष से अधिक से आतंकवाद, साम्प्रदायिक दंगे, सिख दंगों, कश्मीर में हिन्दू नरसंहार व मुस्लिम आंतकवाद तथा नक्सली आतंकवाद जैसी त्रासदियों को झेल रहा है। कश्मीर से 5 लाख से अधिक हिन्दुओं को मुस्लिम आतंकवादियों ने निकाल दिया और वे 35 वर्षों से शरणार्थियों का जीवन जीने के लिए मजबूर हो गये तो किसी मौलाना अथवा मौलवी ने कुछ भी नहीं कहा था। यह अनदेखी वास्तव में भारत के लिए खतरनाक थी। गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम बार बार न्यायालयों में घसीटे जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी कार्रवाही की चेतावनी भी दी है। अब बीबीसी अथवा किसी भी संस्था अथवा व्यक्ति के द्वारा प्रधानमंत्री को गुजरात के दंगों में घसीटे जाने की मानसिकता दूषित मानसिकता ही कही जायेगी जबकि सब जानते है कि गोधरा में 80 के लगभग रेल यात्रियों को मुसलमानों की एक भीड़ के द्वारा जिन्दा जलाये जाने की प्रतिक्रिया स्वरुप गुजरात में दंगे हुए थे जिसकी पूरी जिम्मेदारी मुसलमानों एक कट्टर वर्ग की ही थी।

बीबीसी को किसी देश व संगठन के प्रति दुराग्रही नहीं होना चाहिए क्योंकि आम जनता बीबीसी को अंतिम सच मान कर देखती है व सुनती है। वह दिन भी दूर नहीं जब ब्रिटेन में बढ़ती मुस्लिम आबादी एक समस्या के रुप में खड़ी होकर वहां रह रहे मूल निवासियों के लिए सिरदर्द साबित होगी. अभी तो वहां की लेबर पार्टी ने मुस्लिम आबादी को वोट बैंक समझ रखा है परन्तु अधिकांश आतंकवादी घटनाओं में मुस्लिमों की संलिप्तता सम्पूर्ण मानव जाति के लिए प्रतिकूल ही रहेगी। भारत में भी जो राजनीतिक दल मुसलमानों को वोट बैंक बना कर राजनीतिक खेल खेल रहे है, वे भी भारत देश की अख्ंड़ता व एकता के लिए ही खतरा ही उत्पन्न कर रहे है। सीरिया व मिश्र गाजा पट्टी के फिलिस्तीनियों को शरणार्थियों के रुप में क्यों नहीं स्वीकार कर रहे है, यह भी एक विचारणीय प्रश्न है क्योंकि दोनों (जाने वाला व आने वाला) ही मुस्लिम देश है।

यदि बीबीसी के द्वारा पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का पालन करने के लिए दम भरा जाता है तो उसको हमास पर ड़ाक्यूमेंटरी जरुर बनानी चाहिए जिसमें अक्टूबर 7, 2023 की घटनाओं को भी विस्तृत तरीके से दिखाया जाये वरना तो यह समझा जायेगा कि पश्चिमी देशों के लिए बीबीसी के द्वारा अलग मानदंड़ रखे जाते है और शेष देशों के लिए अलग। वह विकासशील और निर्धन देशों को केवल अपने अलग चश्मे से ही नहीं देखता, बल्कि उनके नेताओं और वहां की जनता को भी अलग कसौटी पर कसता है।

(आलेख में व्यक्त लेखक के विचार निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई निजी सरोकार नहीं है।)

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