हरियाणा में भाजपा की जीत मोदी की नीतियों की हार है

हरियाणा में भाजपा की जीत मोदी की नीतियों की हार है

भाजपा की हरियाणा की जीत ऐतिहासिक है क्योंकि हरियाणा में अभी तक कोई भी पार्टी तीसरी बार सरकार नहीं बना सकी है। मुझे यह स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं है कि मुझे भी लगता था कि भाजपा सरकार वापिस नहीं आने वाली है। इसके पीछे दो वजह थी, पहली तो दस साल की सत्ता विरोधी लहर और दूसरी वजह हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन देर से करना था। लोकसभा चुनाव में भाजपा का पांच सीटों पर सिमट जाना दर्शा रहा था कि हरियाणा में मोदी का जादू अब चलने वाला नहीं है। मोदी जैसे नेता बहुत कम पैदा होते हैं जो कि सत्ता को बदलाव के लिए हासिल करना चाहते हैं। सत्ता उनके लिए साधन होती है क्योंकि लक्ष्य राष्ट्र निर्माण और व्यवस्था का बदलाव होता है।

गुजरात मॉडल के आधार पर मोदी जी देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार बने। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में किये गए उनके कार्याे के कारण बनी उनकी छवि के कारण ही भाजपा समर्थकों ने भाजपा और संघ पर ऐसा दबाव बनाया कि उन्हें 2013 में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के भारी विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। मुख्यमंत्री के रूप में ही उनको बड़े फैसले लेने वाले नेता के रूप में पहचान मिली है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री दोनों शीर्ष पद हैं लेकिन दोनों की जिम्मेदारियां और चुनौतियां अलग-अलग हैं। सवाल यह है कि मोदी एक व्यक्ति हैं जो पहले मुख्यमंत्री बने और अब प्रधानमंत्री हैं. इतनी सफलताओं के बाद उनकी असफलता क्या है। जब पूरे देश में उनकी हरियाणा विजय का डंका बज रहा है तो क्या वो व्यक्ति खुश है जो सत्ता को सिर्फ एक साधन के रूप में देखता है और उसका साध्य तो राष्ट्र निर्माण और व्यवस्था परिवर्तन है।

मोदी कोई साधारण नेता नहीं हैं. उनके लक्ष्य बहुत बड़े हैं लेकिन अब वो अपने लक्ष्यों से दूर जाने के लिए मजबूर दिखाई दे रहे हैं। ऐसा सिर्फ उनके साथ नहीं हो रहा है बल्कि गांधी जी, नेहरू जी और बाबा साहब के साथ भी हो चुका है। गांधी जी हिन्दू-मुस्लिम में समान रूप से लोकप्रिय नेता थे लेकिन वो देश का बंटवारा नहीं रोक पाए. एक झटके में मुस्लिमों ने उनको छोड़कर जिन्ना का दामन थाम लिया और वो बंटवारे के समय सिर्फ एक हिन्दू नेता बन कर रह गए। दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य को झुकाने वाला नेता अपने ही लोगों से हार गया। नेहरू की पहचान एक वैश्विक नेता की थी लेकिन वो तिब्बत की स्वतंत्रता को बचा नहीं पाए। चीनी आक्रमण से देश की रक्षा नहीं कर सके और चीन के हाथों देश का बड़ा भूभाग गवां दिया।

बाबा साहब से बड़ा कोई दलित नेता पैदा नहीं हुआ लेकिन उनके जीवित रहते दलित समाज उनको पहचान नहीं सका। उन्हें दलित समाज के बहुत छोटे से हिस्से का समर्थन प्राप्त हुआ जिसके सहारे उन्होंने दलितों का उद्धार किया। अगर दलित एकजुट होकर उनके पीछे खड़े हो जाते तो वो समाज और देश में बड़ा परिवर्तन कर सकते थे लेकिन उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार काम करने का मौका नहीं मिला। मोदी ने गुजरात में जो विकास किया वैसा विकास वो देश का नहीं कर सके हैं। देखा जाए तो उनके शासन में अद्भुत विकास हुआ है लेकिन जो राज्य पीछे छूट गए हैं उनमें विकास दिखाई नहीं दे रहा है। यह ठीक है कि देश में बुनियादी ढांचे का निर्माण बहुत तेजी से हो रहा है लेकिन गरीब आदमी तक इसका फायदा नहीं पहुंच पा रहा है। यही कारण है कि मोदी के खिलाफ काम करने वाला एको सिस्टम उनके खिलाफ माहौल बनाने में कामयाब रहता है। उनके कार्यकाल में दो राष्ट्रपति चुने गए जिसमें से पहले दलित समाज से आते थे और दूसरी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी हैं जो आदिवासी समुदाय से आती हैं। इसके अलावा उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में सभी समुदायों को समुचित प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। मोदी खुद भी पिछड़े समुदाय से आते हैं. इसके बावजूद विरोधी उनके खिलाफ दलित, आदिवासी और पिछड़ा विरोधी होने का नैरेटिव चलाने में कामयाब हो जाते हैं।

मोदी की सबसे बड़ी नीति सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास है। मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि जब सभी एक साथ मिलकर चलेंगे तो ही देश का वास्तविक विकास होगा और विकास का फायदा हर व्यक्ति तक पहुंचेगा। जब सबका विश्वास होगा, तब सबका साथ मिलेगा और जब सब साथ आएंगे तो सबके प्रयास से सबका विकास होगा। मोदी चाहते हैं कि सभी राज्य और केंद्र मिलकर एक टीम के रूप में काम करें लेकिन देश की राजनीति इसके विपरीत जा रही है। केंद्र और राज्यों का टकराव बढ़ रहा है। सिर्फ गरीब राज्यों की नहीं बल्कि अमीर राज्यों की भी अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है क्योंकि वोट पाने के लिए मुफ्तखोरी की राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है। हरियाणा में भाजपा सहित सभी दलों ने ऐसी घोषणाएं की हैं जो राज्य की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ेंगी। इसका सीधा मतलब है कि मोदी बेशक जीत गए हैं लेकिन ऐसी घोषणाएं भाजपा द्वारा करना उनकी हार के समान है।

हरियाणा के सबसे बड़े किसान नेता चढूनी को चुनाव में सिर्फ 1170 वोट मिले हैं। इसका मतलब साफ है कि ऐसे लोगों को सरकार ने उनकी वास्तविक हैसियत से ज्यादा महत्व दिया है। ऐसे ही लोगों के दबाव के कारण किसानों के लिए सरकार महत्वपूर्ण फैसले नहीं कर पा रही है। किसानों के लिए मोदी जो करना चाहते हैं वो नहीं कर पा रहे हैं, यही उनकी हार है। सत्ता तो मिल रही है लेकिन मोदी की नीतियां और कार्यक्रम लागू नहीं हो पा रहे हैं। मोदी सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में किसानों के लिए बहुत काम किया है लेकिन पंजाब और हरियाणा में उसकी छवि किसान विरोधी की रही है और हरियाणा जीत के बावजूद इसमें कोई बदलाव आएगा, ऐसी उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। सिर्फ दो राज्यों के किसानों के कारण मोदी सरकार ने पूरे देश के किसानों के हितों की अनदेखी की है।

मोदी ने अपनी लाभार्थी योजना को बिना भेदभाव के लागू किया जिसके कारण गरीबों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया है। मुस्लिम समुदाय को अपनी जनसंख्या के अनुपात से दुगुना लाभ हुआ है क्योंकि इस समुदाय में गरीबी बहुत ज्यादा है। यही हाल दलित समाज का है, उसे भी इन योजनाओं का जबरदस्त लाभ हुआ है और उनका जीवन आसान हुआ है। इतने प्रयास के बावजूद मुस्लिम समाज भाजपा का कट्टर विरोधी बन कर सामने आ रहा है। मुस्लिम समुदाय न केवल भाजपा को वोट नहीं दे रहा है बल्कि वो एकजुट होकर भाजपा को हराने के लिए वोट कर रहा है। हरियाणा और कश्मीर के चुनाव में एक बार फिर साबित हो गया है कि मुस्लिम समाज का वोट भाजपा के विरोध में पड़ रहा है। कई उम्मीदवार खड़े करने के बावजूद भाजपा का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत नहीं सका है। यही कारण है कि अब भाजपा हिंदुओं को एकजुट करने के प्रयास में जुट गई है। मोदी पर सबका साथ, सबका विकास नीति को छोड़ने का दबाव बढ़ता जा रहा है क्योंकि इस नीति के कारण हिन्दू समुदाय का भी समर्थन कम होता जा रहा है। भाजपा नेताओं को यह बात समझ आ गई है कि मुस्लिम समाज किसी भी हालत में उनको वोट करने वाला नहीं है। भाजपा अब अपना ध्यान हिंदू वोटों को एकजुट करने पर लगाना चाहती है।

हरियाणा में बेशक मोदी जीत गए हैं लेकिन उनकी सबका साथ सबका विकास नीति एक बार फिर असफल साबित हो गई है। हरियाणा चुनाव के बाद लग रहा है कि भाजपा सबका साथ सबका विकास को छोड़कर जातियों को जोड़कर हिन्दू समाज को एकजुट करने की तरफ जा सकती है। मेरा मानना है कि राजनीतिक मजबूरियों के कारण मोदी को अपनी सोच और नीतियों को बदलना पड़ेगा। आने वाले विधानसभा चुनावों में मोदी की नीतियों में बड़ा बदलाव दिखने वाला है और केंद्र सरकार की नीतियां भी बदलने वाली हैं। मोदी के नेता के रूप में हरियाणा जीत से खुश हो सकते हैं लेकिन वो व्यक्ति खुश नहीं होगा जो देश में बड़ा बदलाव करने आया था। सबको साथ लेकर चलने की उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पाई है। अपनी लाख कोशिशों के बाद भी वो मुस्लिम समुदाय का विश्वास हासिल नहीं कर सके हैं। धारा 370 समाप्त करके जम्मू-कश्मीर को विकास के रास्ते पर ले जाने वाले मोदी को घाटी के मुस्लिमों ने पूरी तरह नकार दिया है। मोदी सफल हो रहे हैं लेकिन उनकी नीतियां असफल हो रही हैं।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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