गौतम चौधरी
यह घटना इसी साल की है। नए साल के अवसर पर कुछ लोग जश्न मना रहे थे कि अचानक एक ट्रक उस जश्न के माहौल को मातम में बदल दिया। ट्रक उस समय तक जश्न मना रहे लोगों को रौंदता रहा जबतक पुलिस ने ट्रक चालक की हत्या नहीं कर दी। यह घटना संयुक्त राज्य अमेरिका के लुसियाना प्रांत स्थित न्यू ऑर्लियंस, बॉर्बन स्ट्रीट की है। इस भीषण हादसे में 15 लोगों की जान चली गयी और 35 लोग बुरी तरह घायल हो गए। बाद में अमेरिका की जांच एजेंसी ने इस घटना को एक आतंकवादी हमला बताया। हमलावर की पहचान, 42 वर्षीय शम्सुद्दीन जब्बार के रूप में हुई है, जो टेक्सास का निवासी पूर्व सैनिक था। उसके वाहन से आईएसआईएस का झंडा और विस्फोटक उपकरण बरामद हुए, जिससे उसकी इस्लामिक स्टेट से संबंधों की आशंका जताई जा रही है। शम्सुद्दीन जब्बार न्यू ऑर्लियंस में नए साल के अवसर पर हुए आतंकी हमले का मुख्य आरोपी, इस्लामिक स्टेट का कट्टर समर्थक बताया जा रहा है। उसकी पृष्ठभूमि और गतिविधियों की जांच से पता चलता है कि वह कट्टरपंथी इस्लामी साहित्य और विचारधारा से प्रभावित था। जब्बार ने हमले से पहले सोशल मीडिया मंचों पर कई ऑडियो रिकॉडिंग्स पोस्ट कर चुका था। उन पोस्टों में उसने संगीत, ड्रग्स और शराब की निंदा की थी। इन रिकॉडिंग्स में कट्टरपंथी विचारधारा के संकेत मिलते हैं। एफबीआई की जांच में पाया गया कि जब्बार आईएसआईएस के ऑनलाइन प्रचार से प्रभावित था और उसने हमले से पहले आईएसआईएस के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा ली थी। उसकी गाड़ी से आईएसआईएस का झंडा मिलना इस बात का संकेत देता है कि जब्बार इस्लाम की गलत व्याख्या और प्रचार के कारण खूंखार चरमपंथी बन चुका था।
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया यानी आईएसआईएस एक कट्टरपंथी आतंवादी संगठन है, जिसने इस्लाम की विकृत व्याख्या के माध्यम से अपने हिंसक एजेंडे को आगे गढ़ाया है। इसका लक्ष्य ‘‘खिलाफत’’ स्थपित करना है लेकिन इसके कार्य और विचारधारा इस्लाम की मुख्य धारा वाले चिंतन से पूरी तरह अलग और विवादास्पद हैं। आईएसआईएस जैसे संगठन इस्लामिक शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं। आईएसआईएस के एजेंट इस्लामिक पवित्र ग्रंथों की गलत व्याख्या करके तथा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैगंबर मुहम्मद के संदेशों और संदर्भों को संदर्भ से बाहर निकाल कर हिंसा को सही ठहराते हैं, जो इस्लाम का अंग ही नहीं है। उदाहरण के लिए वे ‘‘जिहाद’’ की विकृत व्याख्या के माध्यम से अपने कुत्सित मंसूबों के लिए संवेदनशील मस्तिष्कों को अपना शिकार बना रहे हैं। इस्लाम में ‘‘जिहाद’’ का अर्थ ‘‘संघर्ष’’ है, जो आत्म-सुधार और धार्मिक कर्तव्यों के लिए हो सकता है, जबकि आईएसआईएस ने इसे हिंसक युद्ध और आतंकवाद के पर्याय के रूप में प्रचारित किया। इसी प्रकार आईएसआईएस के एजेंट अधर्मियों के खिलाफ हिंसा का बहाना बना गैरकानूनी हिंसा को उचित ठहराते हैं। इस्लाम के पवित्र ग्रंथों में ‘‘अधर्मियों’’ का उल्लेख है, लेकिन यह संदर्भ विशेष एतिहासिक घटनाओं और परिस्थितियों से जुड़ा है। आईएसआईएस इस संदर्भ को हटा देता है और हर गैर-मुस्लिम या यहां तक कि हर असहमत मुस्लिमों को भी ‘‘अधर्मी’’ घोषित कर उनके खिलाफ हिंसा को उचित ठहराते हैं। खिलाफत इस्लामिक इतिहास का एक राजनीतिक और धार्मिक ढांचा था, जिसे सामूहिक सहमति और न्याय पर आधारित माना गया था। आईएसआईएस ने इस धारणा को विकृत से व्याख्या किया और अपने प्रचार माध्यम से उसे प्रचारित करना प्रारंभ किया है, जो आधुनिक दुनिया में संभव ही नहीं है। इसके लिए कई मुस्लिम राष्ट्रों के राजनीतिक ढांचे को ध्वस्त करना होगा। और ऐसा तभी संभव है जब लाखों की संख्या में लोग मारे जाएं। इसमें से कोई गैर-मुस्लिम नहीं होगा। सब के सब मुसलमान ही मारे जाएंगे। यहां एक बात यह भी बता दें कि जिहाद की घोषणा कोई प्रभुसत्ता संपन्न मुस्लिम राष्ट्र ही कर सकता है, जिसे इस्लामिक कायदों के अनुसार इस्लामिक राष्ट्र घोषित किया गया हो। अब सवाल यह खड़ा होता है कि आईएसआईएस को किसी इस्लामिक संस्था ने मान्यता तक नहीं दी है तो वह जिहाद की घोषणा कैसे कर सकता है?
मध्यपूर्व में कट्टरपंथ के बढ़ने के अनेक कारण हैं। इसमें सबसे प्रमुख है, सामाजि-राजनीतिक अस्थिरता। इराक और सीरिया जैसे देशों में राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध ने कट्टरपंथी समूहों को बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही इन क्षेत्रों में आर्थिक असमानता और हताशा भी चरमस्थिति में है। इन क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी ने युवाओं को कट्टरपंथी विचारधारा की ओर ढकेला है। दूसरी ओर, सोशल मीडिया और इंटरनेट ने कट्टरपंथी विचारधारा को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। धार्मिक ज्ञान की कमी और संदर्भ से काट कर धार्मिक अवधारणाओं की व्याख्या के कारण लोग आसानी से कट्टरपंथी विचारधाराओं के शिकार बन जाते हैं। ऐसे में यह समय की मांग है कि इस्लाम का वास्तविक संदेश उसकी एतिहासिक और वास्तविक संदर्भों के अनुसार विश्व में प्रसारित किया जाए। लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि इस्लाम शांति, सहिष्णुता और दया का धर्म है, न कि हिंसा और कट्टरपंथी चिंतन का।
इस्लाम के पवित्र ग्रंथ में किसी भी निर्दाेष व्यक्ति की हत्या को मानवता के खिलाफ अपराध बताया गया है, ‘‘जिसने किसी निर्दाेष व्यक्ति की हत्या की उसने पूरी मानवता की हत्या की और जिसने किसी की जान बचाई, उसने पूरी मानवता को बचाया।’’ इस्लामिक चिंतन के विद्वान मुफ्ती तुफैल खान कादिरी कहते हैं कि इस्लामिक ग्रंथों को समझने के लिए इसके सदर्भगत ढ़ाचे को पहचानना आवश्यक है। इस्लामी व्याख्या के विद्वान इस बात पर जोर देते हैं कि प्रत्येक आयत एक विशेष स्थिति को संबोधित करती है और इसकी व्याख्या ग्रंथ की व्यापक कथा के भीतर की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए आयत 9ः111 को उस समय के रक्षात्मक युद्ध के संदर्भ से अलग नहीं किया जा सकता जब मुस्लिम समुदाय का अस्तित्व दव पर लगा था। इसके अलावा, इस्लामिक विद्वानों ने लगातार ऐसी आयतों के दुरुपयोग की निंदा की है। उनका तर्क है कि जिहाद, जिसे अक्सर पवित्र युद्ध के रूप में गलत समझा जाता है, मुख्य रूप से आत्म-सुधार और सामाजिक न्याय के लिए प्रयास करने को संदर्भित करता है। इस्लाम में अनुमत सशस्त्र संघर्ष को शक्ति से विनियमित किया जाता है और केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही इसकी अनुमति दी जा सकती है। जैसे-आत्मरक्षा के लिए या उत्पीड़न का विरोध करने के समय। चरमपंथियों द्वारा पवित्र ग्रंथ की आयतों का दुःखद दूरुपयोग न केवल हिंसा को बढ़ावा देता है, बल्कि इस्लाक के सच्चे संदेश को भी विकृत कर देता है। इस्लाम का पवित्र ग्रंथ की सभी आयतों की तरह आयत 9ः111 को भी इसके एतिहसिक और पाठ्य संदर्भ में समझा जाना चाहिए। सही ढ़ंग से व्याख्या किए जाने पर, यह नैतिकता और कानून की सीमाओं के भीतर बलिदान और न्याय के सिद्धांतों को दर्शाता है, न कि निरर्थक हिंसा को। इसलिए प्रासंगिक समझ को बढ़ावा देने बेहद जरूरी है। यही नहीं प्रमाणिक विद्वानों के साथ जुड़ कर ही चरमपंथी आख्यानों का मुकाबला किया जा सकता है। सच्चा संदेश महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोगों को पवित्र ग्रंथ की आयतों के एतिहासिक और पाठ्य संदर्भों के बारे में शिक्षित कर सकता है। यह ज्ञान हेरफेर और निहित स्वार्थों के लिए न होकर विशुद्ध रूप से आत्मयुद्धि के लिए होगा।
इस्लाम के नाम पर फैलती कट्टरपंथी भावनाओं के समाधार और रोकथाम के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा को रखा जाना चाहिए। साथ ही दीनी शिक्षा को आधुनिकता के साथ जोड़ना जरूरी है। अब खिलाफत किसी कीमत पर संभव नहीं है। हां मुस्लिम राष्ट्रों का एक संघ हो सकता है। इसकी समझ विकसित की जाने की जरूरत है। जिस प्रकार पोप का साम्राज्य समाप्त हो गया उसी प्रकार अब एक खलिफा पूरे मुस्लिम विश्व का शासक नहीं हो सकता है। इसी खिलाफत को लेकर इस्लामिक दुनिया में कई प्रभावशाली देश एक-दूसरे के खिलाफ लड़ाई के मैदान में हैं। ईरान, सऊदी अरब, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्किये, मिस्र आदि एक-दूसरे खिलाफ खिलाफत के लिए ही तो तलवारें ताने हुए हैं। खिलाफत एक प्रकार का राजनीतिक ढ़ांचा था उसे प्राप्त करने की जिद्द ने मुसलमानों का बहुत नुक्शान किया है। इसलिए कट्टरपंथ के खिलाफ समुदाय का समर्थन आवश्यक है। अतः धार्मिक और सामाजिक नेताओं को कट्टरपंथ के खिलाफ स्पष्ट रूप से आवाज उठानी चाहिए। उसके साथ ही साइबर सुरक्षा को देखते हुए ऑनलाइन प्लेटफार्म पर कट्टरपंथी सामग्री पर सख्त निगरानी होनी चाहिए। तभी शम्सुद्दीन हारेगा और इस्लाम जीतेगा।