गौतम चौधरी
इसी वर्ष के 21 फरवरी को अमरीका का सिएटल शहर जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। इस शहर ने अपने भेदभाव-विरोधी कानूनों में जाति की श्रेणी को जोड़ने का ऐतिहासिक कदम उठाया, जिसका दूरगामी महत्व होगा। इस मामले को लेकर बहस छिड़ी हुई है लेकिन इस घटना के बाद अमेरिका और कुछ अन्य पश्चिमी देशों में कथित उच्च वर्ग माने जाने वालों पर नए तरीके का भेद-भाव प्रारंभ हो गया है।
इस घटना के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ही कुछ अन्य पश्चिमी देशों में एक अलग तरीके का जाति युद्ध हो प्रारंभ हो गया है। सामान्य अमेरिकी इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं और यहां तक कि भारतीय अमेरिकी भी अक्सर इस मामले को ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं। इस गतिरोध में मानवाधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम और सिख संगठनों के साथ मिलकर सामान्य रूप से भारत और विशेषकर हिन्दुओं को बदनाम करना प्रारंभ कर दिया है। उन्हें सामान्य अमेरिकी लोगों को यह विश्वास दिलाने में सफलता मिल रही है कि भारतीय प्रवासी संगठित रूप से जातिवादिता को संयुक्त राज्य ले कर आ रहे हैं।
मंदिर प्रबंधन में सक्रिय हिन्दू लोग ने के खिलाफ रॉबिंसविल, न्यू जर्सी मजदूरों के अधिकार को लेकर मामले दर्ज किए गए हैं। इस प्रकार की घटनाएं अमेरिका के अन्य प्रांतों में तेज से बढ़ रहा है। इसके कारण भारतीय हिन्दू प्रवासी, खास कर कथित उच्च वर्ग के बेहद परेशान होने लगे हैं। सीएटल में जब से यह जातीय भेद वाला प्रस्ताव पारित हुआ है तब से इस प्रकार की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।
विगत दिनों कई विश्वविद्यालयों में भी इस प्रकार की घटनाएं देखने को मिली। यहां हिन्दू विद्यार्थियों का अपमान का सामना करना पड़ा। अमेरिकी सोशल साइट कंपनियां इस मामले को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। गूगल पर फेक दलित अधिकार कथाएं गढ़ने वालों को प्रमोट करने का आरोप लग रहा है। अमेरिकी स्कूल पाठ्यपुस्तकों में विरोधात्मक हिन्दू प्रचार शामिल किया जा रहा है। कैलिफोर्निया के स्थानीय लोगों को यह बताया जा रहा है कि हिन्दू धर्म जातिवादि पर ही आधारित है और इसमें निम्न वर्ग के लोगों को प्रताड़ित किया जाता है। कुछ जानकारों का मानना है कि यह केवल कुछ लोगों का काम नहीं है। इस प्रचार अभियान को सरकार का समर्थन प्राप्त है।
इन सभी विवादों के केंद्र में एक आरोप है कि दलित भेदभाव हिन्दू धर्म की एक मौलिक विशेषता है। मुस्लिम और सिख संगठनों ने दलित अधिकारों का मुद्दा उठाया है, ताकि वे सामान्य अमेरिकी, अमेरिकी हिन्दू धर्म और अंततः पूरे भारत को सामान्य अमेरिकी और अमेरिकी मीडिया की नजर में बदनाम कर सकें। हाल के दिनों में अमेरिका के अंदर मुस्लिम-सिख-दलित गठजोड़ बना है, जो अपने को हिन्दू विरोधी के रूप में स्थापित कर अमेरिकी समाज में हिन्दुओं के प्रति नफरत भरने का काम कर रहा है।
इस व्यापक सांस्कृतिक संर्घष में, आपको एक अमेरिकी दलित अधिकार संगठन बहुत सक्रिय दिखेगा, जिसका नाम ‘इक्वॉलिटी लैब्स’ है। यह संगठन भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद और सिख संघ के साथ मिलकर यह सिद्धांत गढ़ रहा है कि भारत मे ंतो दलितों के खिलाफ भेदभाव है ही साथ ही वह वह भेदभाव का माहौल अमेरिका में भी पहुंच गया है और यहां भी उन्हें गहरे जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
ये तीनों शक्तियां नियमित रूप से एक 2016 के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के रिपोर्ट को दिखाकर इस प्रकार के प्रपंच रच रही है। इसमे बताया गया है कि विश्वभर में अब भी 250 मिलियन लोग जाति के आधार पर भयानक अमानवीय अपमान का शिकार हो रहे हैं। एक दावा जो एक बंद हो चुके वेबसाइट से प्राप्त किया गया है, उसमें कहा गया है कि दलितों को आज भी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
इक्वॉलिटी लैब्स के सर्वेक्षण में जवाब देने वाले दलितों में से कम से कम दो-तिहाई ने बताया है कि उन्हें अपने अमेरिकी कार्यस्थलों में जातिवादित भेदभाव का सामना करना पड़ता है। जब हम इस विवरण को देखते हैं तो यह भयानक लगता है। जबकि इसमें सच्चाई का घुर अभाव है। जिस सर्वेक्षण के आधार पर यह चिंतन गढ़ा गया है उसकी सत्यता पर भी थोड़ी नजर दौरानी चाहिए। यह सर्वेक्षण एक समर्पित अमेरिकी दलित सैंपल पर नहीं, बल्कि एक स्वयं-चयनित सैंपल पर आधारित है। जिसमें अमेरिकी दलित अधिकार समर्थकों को शामिल किया गया था।
ऐसा कहना कि अमेरिकी दलितों में दो-तिहाई जातिवादी भेदभाव का सामना कर रहे हैं, बेतुका है। कम उम्र अमेरिकी दलितों के बॉस होने की संभावना है जिन्हें जाति के बारे में जानकारी हो, या यह जानते हों कि दलित क्या है। बेशक, कुछ अमेरिकी दलित अन्य भारतीय अमेरिकियों के साथ काम कर सकते हैं। लेकिन वहां बहुत कम दलित – या भारतीय हैं जो ऐसा कर रहे हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अमेरिका में एक नए प्रकार का खेल चल रहा है। अब हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए अमेरिका में नए सिरे से गठजोड़ बना है। उस गठजोड़ा की छाया भारत में भी दिखने को मिल रही है। यहां। भी कुछ मुसलमान, ईसाई और सिख दलितों के साथ मिलकर उच्च वर्ग के खिलाफ माहौल बनाने की आड़ में हिन्दू धर्म को ही बदनाम करने में लग गए हैं। यह बेहद खतरनाक है। इस कहानी को गढ़ने में कही न कहीं विदेशी और राष्ट्र विरोधी शक्तियां काम कर रही है। यही नहीं इससे दलितों को भी कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। दलित उन साम्राज्यवादी ताकतों का शिकार हो रहे हैं, जिसने शोषण और दमन की नीति अपनाकर भारत को लंबे समय तक गुलाम बना कर रखा। इससे हमें सावधान रहना होगा साथ ही समाज में जो कुरीतियां व्याप्त है उसे भी समाप्त करने की कोशिश करनी होगी।
(यह आलेख विभिन्न वेबसाइटों पर चल रहे खबरों और आलेखों का संपादित अंश है।)