नयी दिल्ली/ जलवायु संबंधी तनाव जैसे कि गर्मी, जंगल की आग, बाढ़, सूखा, बीमारियां और बढ़ते समुद्री जलस्तर ने शैक्षिक परिणामों पर विपरीत प्रभाव डाला है। इससे हाल के दशक में अर्जित शैक्षिक बढ़त पर पानी फिर जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। दरअसल, वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट (जीईएम) में इस प्रकार का दावा किया गया है।
वैश्विक रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को), मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएटिंग क्लाइमेट कम्युनिकेशन एंड एजुकेशन’ (एमईसीई) परियोजना और कनाडा के सस्केचेवान विश्वविद्यालय द्वारा संकलित किया गया है। रिपोर्ट में इंगित किया गया है कि अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हर साल जलवायु से संबंधित घटनाओं के कारण स्कूल बंद हो रहे हैं, जिस कारण पढ़ाई पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रभाव पहले से ही शिक्षा प्रणालियों और परिणामों को बाधित कर रहे हैं। प्रत्यक्ष प्रभावों में शिक्षा के बुनियादी ढांचे के विनाश के साथ-साथ छात्रों, अभिभावकों और स्कूल कर्मचारियों का मौत और चोट की चपेट में आना शामिल है।
इसमें कहा गया है कि विस्थापन और लोगों की आजीविका और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव के रूप में जलवायु परिवर्तन का अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 20 वर्षों में चरम मौसम की कम से कम 75 प्रतिशत घटनाओं में स्कूल बंद कर दिए गए, जिससे 50 लाख या उससे अधिक लोग प्रभावित हुए। बाढ़ और चक्रवात सहित लगातार प्राकृतिक आपदाओं के कारण छात्रों और शिक्षकों की मृत्यु हुई है और इसने स्कूलों को क्षतिग्रस्त और नष्ट कर दिया।
इसमें बताया गया कि गर्मी से पीड़ित बच्चों के शैक्षिक परिणामों पर महत्वपूर्ण हानिकारक प्रभाव पड़ता है। वर्ष 1969 और 2012 के बीच 29 देशों में जनगणना और जलवायु डेटा को जोड़ने वाले एक विश्लेषण से पता चला है कि प्रारंभिक जीवन काल के दौरान औसत से अधिक तापमान के संपर्क में आने का संबंध स्कूली शिक्षा के कम वर्षों से है खासकर दक्षिण पूर्व एशिया में।
जीईएम रिपोर्ट में औसत से ऊपर दो मानक विचलन वाले तापमान का अनुभव करने वाले बच्चों के औसत तापमान का अनुभव करने वाले बच्चों की तुलना में डेढ़ वर्ष कम स्कूली शिक्षा प्राप्त होने का अनुमान जताया गया है।
उच्च तापमान ने चीन में उच्च-स्तरीय परीक्षा में प्रदर्शन को कम कर दिया और हाई स्कूल, स्नातक और कॉलेज में प्रवेश दरों दोनों में कमी आई। संयुक्त राज्य अमेरिका में वातानुकलन (एयर कंडीशनिंग) के अभाव में एक स्कूली वर्ष एक डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म पाया गया जिससे परीक्षा के अंक में एक प्रतिशत कमी आई।
रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत गर्म स्कूल के दिनों ने अफ्रीकी अमेरिकी और हिस्पैनिक छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, खराब बुनियादी ढांचे की स्थिति के कारण नस्ल आधारित उपलब्धि अंतर लगभग पांच प्रतिशत रहा।
भारत में शिक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में विस्तार से बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जीवन के पहले 15 वर्षों पर वर्षा संबंधी झटकों के अध्ययन से पता चला है कि इनसे पांच साल की उम्र में शब्दावली और 15 साल की उम्र में गणित और गैर-संज्ञानात्मक कौशल नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है।
ये प्रभाव लड़कों और कम शैक्षिक योग्यता वाले माता-पिता के बच्चों के लिए अधिक गंभीर थे। सात एशियाई देशों में 140,000 से अधिक बच्चों द्वारा जीवन के शुरुआती दौर में अनुभव की गई आपदाओं के विश्लेषण में पाया गया कि विद्यार्थियों के 13-14 साल की उम्र तक पहुंचने पर इन आपदाओं का स्कूल में नामांकन (विशेष रूप से लड़कों के लिए) और गणित के प्रदर्शन (विशेष रूप से लड़कियों के लिए) के साथ नकारात्मक संबंध है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में चरम मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में से आठ निम्न या निम्न-मध्यम आय वाले देश थे। बच्चों के लिए अत्यधिक उच्च जलवायु जोखिम वाले 33 देशों में से, जहां लगभग एक अरब लोग रहते हैं, 29 को नाजुक देश भी माना जाता है।
इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से विस्थापन की आशंका बढ़ जाती है और यह एक कारण है कि आंतरिक विस्थापन रिकॉर्ड उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। वर्ष 2022 के दौरान आपदाओं के कारण 3.26 करोड़ लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए। पांच देशों बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, तुवालु और वियतनाम के विश्लेषण से पांच विस्थापन पैटर्न मिलते हैंरू अस्थायी विस्थापन, शहरी बस्तियों में स्थायी प्रवास, सरकार द्वारा नियोजित स्थानांतरण, सीमा पार प्रवास और फंसी हुई आबादी।
इसमें कहा गया है, ये विस्थापन परिदृश्य शिक्षा में वित्तीय संसाधनों के अभाव, दस्तावेजीकरण या निवास की जरूरतों से संबंधित विभिन्न बाधाओं को जन्म देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न व्यवधानों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों से निपटने के लिए बहु-क्षेत्रीय योजना, पाठ्यक्रम सुधार, शिक्षक प्रशिक्षण और सामुदायिक जागरूकता सहित जलवायु अनुकूलन पर व्यापक ध्यान देने की आवश्यकता है।