कोरोना की चैथी लहर : भारत पर पड़ने वाले प्रभाव की जमीनी रपट

कोरोना की चैथी लहर : भारत पर पड़ने वाले प्रभाव की जमीनी रपट

कमलेश पांडेय

लीजिए, देश-दुनिया पर कोरोना संक्रमण का खतरा एक बार फिर से मंडराने लगा है। लेकिन भारत के लिए यह ज्यादा चिंता की बात नहीं है। वैसे तो चीन में लगातार बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार कोविड 19 के ओमीक्रोन स्वरूप के सब-वेरिएंट बीएफ-7 के कई मामले भारत के गुजरात और उड़ीसा आदि में भी सामने आए हैं। लेकिन विशेषज्ञ बता रहे हैं कि भारतीयों को इससे ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

विशेषज्ञों का कहना है कि प्राकृतिक और टीकाकरण से प्राप्त हाईब्रीड इम्यूनिटी के चलते भारत को खतरा सबसे न्यूनतम होगा। यह बात अलग है कि यदि कोई नया वेरिएंट जन्म लेता है तो फिर भारत में भी चुनौती बढ़ सकती है। यही वजह है कि दुनिया में कोरोना का संक्रमण बढ़ने से भारत में इसके संभावित खतरे को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। बता दें कि भारत अब तक कोरोना की तीन लहरों का सामना कर चुका है, जिसके लिए अल्फा, डेल्टा और ओमीक्रोन वेरिएंट जिम्मेदार थे।

बता दें कि चीन में कोरोना के तेजी से बढ़ते नए मामलों के लिए ओमीक्रोन के सब-वेरिएंट बीएफ-7 को जिम्मेदार माना गया है। अभी चीन में तेजी से कोरोना के फैलने की एक वजह यह है कि उनकी जीरो कोविड नीति के चलते पूर्व में बहुत कम लोगों को संक्रमण की वजह से प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो सकी है। टीकाकरण से उतपन्न प्रतिरोधक क्षमता अब एक साल बाद घटने लगी है। ऐसे में चीन को इस चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, चीन के साथ अमेरिका, जापान, अर्जेंटीना, दक्षिण कोरिया और ब्राजील जैसे देशों में भी कोरोना के केस बढ़ने लगे हैं। यह एक ऐसी स्थिति है, जो चिंता का सबब बनती जा रही है।

चीन में मिले इस नए वेरिएंट यानी ओमीक्रोन के सब-वेरिएंट बीएफ.7 के बारे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि यह अब तक का सबसे तेजी से फैलने वाला वेरिएंट है। यह कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में आर346टी म्यूटेशन से बना है। इसी की वजह से बीएफ-7 पर एंटीबॉडी का असर नहीं होता। बीएफ-7 एंटीबॉडी को भी हराकर शरीर में घुसने की क्षमता रखता है। वहीं, इससे बचने के लिए टीकाकरण को अब भी सबसे अच्छा हथियार माना जा रहा है। इसलिए ब्रिटेन ने हाल में मॉडर्ना के टीके बायवैलेंट बूस्टर्स को मंजूरी दी है। यह कोरोना के सभी सब-वेरिएंट को खत्म करने में कारगर है।

चिकित्सकों के मुताबिक, बीएफ-7 के लक्षण भी ओमीक्रोन के पहले मिले वेरिएंट के लक्षण के जैसे ही हैं। इनमें बुखार, गले में खराश और सिरदर्द शामिल हैं। यह इंसान के श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से को प्रभावित करता है। कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए काफी घातक है।

यूँ तो भारत में भी केंद्र सरकार सतर्क हो चुकी है। उसने देश में कोरोना की स्थिति की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को सजग रहने और अपने निगरानी तंत्र को मजबूत करने को कहा है। देश में दिल्ली समेत सभी राज्यों में सतर्कता बढ़ा दी गई है। भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भले ही देश में लगातार कोरोना मामलों में गिरावट का रुझान है और गत सप्ताह रोजाना औसतन 158 संक्रमण के मामले दर्ज किए गए हैं। लेकिन कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है। इसलिए आप घबराएं नहीं, क्योंकि सरकार किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। उसने लोगों को सुझाव दिया है कि भीड़ में मास्क पहनें और कोरोना टीके की तीसरी यानी एहतियाती खुराक जरूर लें। उल्लेखनीय है कि देश की सिर्फ 27-28 फीसदी आबादी ने ही एहतियाती खुराक ली है।

जहां तक दुनिया के अन्य देशों की बात है तो यहां पर यह बताना जरूरी है कि वैश्विक स्तर पर पिछले 6 सप्ताहों के दौरान इनमें लगातार वृद्धि हो रही है। विश्व में रोजाना औसत संक्रमण 5.9 लाख है। अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में चीन में 80 करोड़ लोग संक्रमित हो सकते हैं।जबकि मात्र तीन माह में 10 लाख लोगों के मौत की आशंका जताई गई है। यही वजह है कि भारत के हवाई अड्डों पर चीन और अन्य देशों से आने वाले यात्रियों की औचक कोरोना जांच शुरू कर दी गई है।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक अध्ययन से पता चलता है कि जब भी कोई कोरोना लहर देश में आई तो लगभग 65-70 फीसदी लोग उससे प्रभावित हुए। वहीं कई राज्यों में यह आंकड़ा 90 फीसदी तक रहा है। ऐसे में मोटे तौर पर देश में आज 80-90 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो कोरोना का सामना कर चुके हैं। यानी कि उनमें प्राकृतिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता आ चुकी है। इसी प्रकार 102 करोड़ से अधिक लोग कोरोना टीके की पहली खुराक और 95 करोड़ लोग दूसरी खुराक ले चुके हैं। इसका अभिप्राय यह है कि यदि 5 साल से छोटे बच्चों को छोड़ दिया जाए तो तकरीबन 95 फीसदी आबादी का टीकाकरण हो चुका है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना संक्रमण के बचाव में प्राकृतिक रूप से हासिल प्रतिरोधक क्षमता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वहीं कुछ अलग-अलग अध्ययन में यह दावा किया गया था कि प्राकृतिक और टीके दोनों की मिली-जुली हाइब्रीड प्रतिरोध क्षमता लम्बे समय तक टिकाऊ रहती है। भारतीय आबादी ने दोनों तरीकों से यह क्षमता हासिल की है। इस हिसाब से भारतीयों में कोरोना के नए संक्रमणों का खतरा न्यूनतम हो सकता है।

हालांकि चुनौती की बात यह है कि प्राकृतिक और टीकाकरण की इम्यूनिटी महत्वपूर्ण है। लेकिन यह कितने समय तक रहेगी, इसे लेकर कोई ठोस अनुसंधान नहीं हुए हैं। इसलिए एक-दो साल के भीतर इसके कमजोर पड़ने की आशंका है। जिन लोगों ने वर्ष 2021 के शुरू में टीके लिए होंगे, उनकी इम्यूनिटी अब कमजोर होने को होगी। ऐसी स्थिति में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए तीसरी खुराक लेने की जरूरत है। हमारे देश में जहां 95 करोड़ लोग दोनों खुराक ले चुके हैं और वह तीसरी खुराक लेने के योग्य हैं, लेकिन उनमें से महज 22.19 करोड़ लोगों ने ही तीसरी खुराक ली है।

अब यदि कोई नया वेरिएंट आता है और वह पहले के वेरिएंट से काफी अलग होता है तो चैथी लहर का खतरा बढ़ सकता है। यदि चीन की अनदेखी भी कर दें तो अमेरिका व फ्रांस में कोविड के मामलों का बढ़ना चिंताजनक है क्योंकि वहां पहले अधिक लोग संक्रमित हुए थे। इन देशों में ज्यादातर फाइजर के टीके इश्तेमाल हुए थे।जो एमआरएनए तकनीक पर था। यह तकनीक टीके में पहलीबार प्रयुक्त हुई, इसलिए इसकी प्रभावकारिता को लेकर भी पूराने अध्ययन नहीं हैं। वहीं भारतीय टीकों में समूचे निष्क्रिय वायरस का इस्तेमाल किया गया है जो सबसे पुरानी व प्रभावी टीका पद्धति है।

कोरोना त्रासदी से मिले दंश को दशकों तक भूला नहीं पाएंगे लोग स्पष्ट है कि देश-दुनिया को मौत का तांडव दिखाने वाली कोरोना महामारी के आहट मात्र से ही लोग अब बेचैन हो उठे हैं। क्योंकि इस अप्रत्याशित महामारी से वर्ष 2020 और 2021 में लोगों को जो शारीरिक, आर्थिक और मानसिक क्षति हुई, उसका निष्पक्ष आकलन करना बेमानी होगा, क्योंकि भरोसेमंद आंकड़े कभी सामने लाये ही नहीं गए लिहाजा, ऐसी जानलेवा महामारी से तबाह होकर बेपटरी हुई लोगों की जिंदगी अभी ठेल ढकेल कर वर्ष 2022 में किसी तरह से पटरी पर लौट रही रही थी, कि वर्ष 2023 के शुभागमन से 10 दिन पहले चीन समेत पश्चिमी व पूर्वी देशों में कोरोना के नए वेरियंट के पनपने और तेजी से पसरने की जो खबरें आ रही हैं, वह डराने वाली हैं।

कहना न होगा कि वैश्वीकरण और नई आर्थिक नीतियों से विगत तीन दशकों से कुलांचे मार रही देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था और उसकी भव्यता पर इतराती-इठलाती हुई समकालीन मानव सभ्यता-संस्कृति को जो कड़वे सबक कोरोना महामारी ने दिए हैं, वो दशकों तलक याद रखे जाएंगे। क्योंकि आम व खास लोगों को बेरोजगारी, महंगाई और अनचाहे युद्ध के उपहार से जीवन के प्रति असुरक्षा भाव विकसित करने के जो तजुर्बे कोविड-19 के विस्मयकारी दौर ने दिए, वो अबतक किसी भी विपरीत हालात ने नहीं दिए। चाहे वक्त वक्त पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएं हों या समय समय पर होने वाले युद्ध, किसी ने एक साथ पूरे संसार को इतना प्रभावित नहीं किया, जितना कि कोविड 19 की वैश्विक त्रासदी ने किया है। बहरहाल, कोविड 19 जैसी भयावह कोरोना महामारी और उससे निकल रहे नए नए स्वरूपों-उपस्वरूपों ने जिस तरह से पूरी दुनिया को अपने क्रूर पंजे यानी संक्रमण की जद में ले लिया, उससे पूरी सभ्यता-संस्कृति खुद को असहाय महसूस करने लगी।

उल्लेखनीय है कि साल 2019 में दिसंबर महीने में ही चीन में कोरोना वायरस नाम की नई महामारी ने दस्तक दी थी और उसके बाद पूरी दुनिया में इस वायरस ने तबाही मचाई। ऐसे में दुनिया को ये चिंता सताने लगी है कि क्या एक बार फिर से नए साल की खुशियों पर कोरोना वायरस नाम का ग्रहण लगने वाला है? याद दिला दें कि दिसंबर-जनवरी 2019 में कोरोना के बढ़े मामलों में क्रिसमस-न्यू ईयर पर होने वाली भीड़-भाड़ का भी अहम योगदान था, क्योंकि यह वायरस एक-दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है। वहीं, क्रिसमस-न्यू ईयर 2022 के समय कोरोना के मामले बढ़ने से वापस से हम उसी जगह आकर खड़े हो गए हैं जहां तीन साल पहले थे। एक्सपर्ट ने चिंता जताई है कि अगर दिसंबर के आखिरी सप्ताह और जनवरी में आने वाले फेस्टिवल पर सावधानी नहीं बरती गई और भीड़-भाड़ हुई तो कोरोना विस्फोट भी हो सकता है।

बहरहाल, कोविड-19 किस-किस नए स्वरूप में आ चुका है, और कहां-कहां पर छा चुका है, यह तो चिकित्सा विज्ञानी ही बताएंगे। लेकिन चिकित्सा जगत के बियाबान जंगलों में भटकाने वाली कोरोना महामारी अबकी बार किस किस को टारगेट करेगी, यह तो वक्त ही बताएगा।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

(युवराज)

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