गौतम चौधरी की खास रपट
(फिलहाल आगामी विधानसभा चुनाव तक प्रदेश की राजनीति पर लगातार अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करता रहूंगा।)
रांची/ झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने आसन्न विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति लगभग तय कर ली है। इसके तहत वर्तमान अध्यक्ष, दीपक प्रकाश विधानसभा चुनाव संपन्न होने तक अध्यक्ष बने रहेंगे। लिहाजा, भाजपा की ओर से चुनाव प्रचार अभियान की कमान पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी संभालेंगे। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया है कि विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित नहीं किया जाएगा। यदि पार्टी जीत गयी तो चुनाव बाद आलाकमान प्रदेश के मुख्यमंत्री का चयन करेंगे।
हालांकि, कुछ प्रेक्षकों का मानना है, इधर के दिनों में बाबूलाल मरांडी और प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के बीच गतिरोध विकसित हुआ है, जो विगत दिनों देवघर में संपन्न प्रदेश कार्यकारी मंडल की बैठक में साफ दिखा। इस मामले में भाजपा की राजनीति पर पैनी नजर रखने वालों का दावा है कि विगत दिनों संपन्न पार्टी प्रदेश कमेटी की बैठक में जो दोनों नेताओं के बीच दूरी और तल्खी दिखी, वह बाबूलाल की सोची-समझी चाल थी। बाबूलाल और दीपक प्रकाश यह साबित करना चाहते थे कि दोनों के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं। इस चाल ने दोनों की रणनीति को परवान चढ़ाया। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि बाबूलाल मरांडी को फिर से भाजपा में शामिल करने के लिए दीपक प्रकाश ने बड़ी भूमिका निभाई और पूर्व झारखंड प्रदेश महामंत्री संगठन, धर्मपाल सिंह को राजी किया। दीपक के द्वारा किए गए उस उपकार का बदला बाबूलाल मरांडी लगातार चुका रहे हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि जब कभी भी दीपक के बारे में आलाकमान नराज होते हैं तो सबसे बड़ी पैरवी बाबूलाल मरांडी की ही होती है।
दिल्ली स्थित भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ने बताया कि दीपक प्रकाश के तीन सशक्त पैरवीकार हैं। एक बाबूलाल मरांडी, दूसरा राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जगत प्रकाश नड्डा और तीसरा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेहद निकटस्थ निजी सचिव जो प्रकाश के स्वजातीय भी हैं और झारखंड, संथाल परगना के रहने वाले बताए जाते हैं। ऐसे में दीपक प्रकाश की लॉबी झारखंड के अन्य किसी दूसरे नेता से ज्यादा मजबूत हो जाती है। जानकार सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि दीपक प्रकाश ने ही पूर्व संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह को झारखंड से जाने के लिए मजबूर कर दिया था। यदि धर्मपाल सिंह खुद मजबूत नहीं होते तो पंजाब भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री दिनेश कुमार वाला हाल धर्मपाल सिंह का भी होता।
इधर दीपक और बाबूलाल की रणनीति में फिलहाल रघुवर दास और अर्जुन मुंडा को भी अपने लिए कोई चुनौती नहीं दिख रहा है। इन दोनों को तो इस बात के लिए संतोष है कि केन्द्रीय नेतृत्व किसी को मुख्यमंत्री घोषित कर चुनाव में उतरने का फैसला त्याग दिया है। इससे चुनाव बाद दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की दावेदारी बरकरार रहेगी और परिस्थिति अनुकूल रही तो इन दोनों को भी प्रदेश का नेतृत्व का मौका मिल सकता है।
कुल मिलाकर, फिलहाल प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की कोई संभावना नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेतृत्व बाबूलाल मरांडी को अपना स्वाभाविक नेता मानता है और भाजपा संगठन के आधे से अधिक नेता बाबूलाल में अपना भविष्य तलाशते हैं। बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश के इतर किसी अन्य अध्यक्ष पर उतना भरोसा नहीं कर सकते। बाबूलाल के लिए दीपक परिक्षित घोड़ा हैं। इसलिए आसन्न प्रदेश विधानसभा चुनाव तक के लिए दीपक प्रकाश कुर्सी को कोई खतरा नहीं है।