इस्लामिक शिक्षाओं में विविधता व बहुसंस्कृतिवाद

इस्लामिक शिक्षाओं में विविधता व बहुसंस्कृतिवाद

गौतम चौधरी

सांस्कृतिक विविधता मानव सभ्यता का हिस्सा है। मानव की प्रगति ने एक दूसरे के प्रति आपसी सम्मान के बुनियादी सिद्धांत के साथ शांतिपूर्वक एक साथ रहने और बातचीत करने के लिए सांस्कृतिक रूप से विविध लोगों के बीच प्रशासन और समालोचना को महत्व देता रहा है। इससे इस बात की भी पुष्टि हो जाती है कि अतीत में समाज और धर्म विविधता के अनुकूल बहुसांस्कृतिक संरचना ग्रहण करता रहा है। अब वर्तमान समय में समझने वाली बात यह है कि आखिर वह कौन-सा तत्व है जो लोगों को एक दूसरे से अलग बनाता है। ऐतिहासिक रूप से यह अंतर जातीयता, जनजातीय मतभेदों और विश्वास प्रणाली से उत्पन्न हुई धार्मिक मान्यता है। इन्हीं तत्वों का उपयोग कर व्यापार करने वाले व्यापारी संसाधनों पर कब्जा जमाते हैं और राजनीतिक व्यक्ति अपनी राजनीतिक शक्ति को एकत्रित करता है। यहीं से मान्यता और धार्मिक शत्रुता प्रारंभ होती है। हाल के दिनों में धार्मिक विभाजन और पहचान के दावे एक मानदंड बन गए हैं, क्योंकि अनुयायियों ने धर्म को केवल एक पहचान चिह्न तक सीमित कर दिया है।

सच पूछिए तो वर्तमान दौर इतना असहिष्णु हो गया है कि चरमपंथी और हिंसक विचारधाराओं के उद्भव ने अन्य धर्मों को उनके जीवन शैली के लिए खतरा और विरोधी घोषित कर दिया है। समाचार और अन्य माध्यमों ने आग में घी का काम किया है। मीडिया में इसके नकारात्मक चित्रण और इसके आधुनिकीकरण के लिए लगातार हस्तक्षेप को देखते हुए इस संबंध में इस्लाम सबसे दुर्भाग्यपूर्ण धर्म रहा है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि इस्लाम बहुसंस्कृतिवाद और विविधता को हतोत्साहित करता है। हालाँकि, मामला सिर्फ इतना है कि इस्लाम और उसके अनुयायियों को आधुनिक जीवन शैली में खुद को अभिव्यक्त करने और एकीकृत करने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है। इतिहास गवाह है कि इस्लाम या मुसलमानों ने जहां भी प्रवेश किया, वे स्थानीय संस्कृति में एकीकृत हुए और उन राष्ट्रों के राष्ट्रीय विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया, इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारतीय उपमहाद्वीप और इंडोनेशिया है।

हम इस्लाम में बहुसंस्कृतिवाद और सांस्कृतिक विविधता की केंद्रीयता के सवाल पर वापस आते है। पवित्र कुरान हमें बताता है कि हम विभिन्न धर्मों के व्यक्तियों के साथ शांति और सद्भाव में सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बनाए रखने के लिए इस्लाम क्रॉस-सांस्कृतिक संचार और साझा हितों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है। इस्लाम, बहुआयामी सूचना, विभिन्न संस्कृतियों से प्राप्त ज्ञान और बहुसंस्कृतिवाद, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का समर्थन करता हैं। इस्लामिक धार्मिक साहित्यों में इसकी व्याख्या कई स्ािानों पर मिलती है। चुनांचे, इस्लामिक धार्मिक पुस्तकों के अनुसार, ईश्वर ने विविधता को हमारे लाभ के लिए बनाया है। पुस्तक विभिन्न धर्मों के व्यक्तियों को इस आधार पर पहचानती है कि सभी मानव जाति ईश्वरीय सार में बनाई गई है। इस्लामिक साहित्यों में भी मतभेद को महत्व दिया गया है। बताया गया है कि ईश्वर जो  सर्वशक्तिमान है, उसके द्वारा बनाया गया है, ताकि हम एक दूसरे के बारे में सीख सकें और सच्चाई तक पहुंच सकें। इस संबंध में इस्लामिक विद्वान मुफ्ती अब्दुल्ला अजहर कासमी साहब पवित्र कुरान का हवाला देते हुए बताते हैं, ‘‘हे मानव जाति, वास्तव में हमने तुम्हें नर और मादा से बनाया है और तुम्हें विभिन्न जनजातियों में बनाया है ताकि तुम एक दूसरे को जान सको’’ (कुरान 49ः13)। ‘‘और यदि तुम्हारा रब चाहता तो मनुष्य जाति को एक ही समुदाय बना देता, परन्तु उनमें अन्तर न रहेगा’’ (कुरआन 11ः118)। पैगंबर मुहम्मद ने जिस तरह से खुद को संचालित किया, उसमें विनम्रता और सहिष्णुता का उदाहरण दिया। दुनिया भर में प्रेम, सद्भाव और शांति फैलाने के लिए इस्लाम की शिक्षा मानव जाति को दी गई थी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए।

मदीना के संविधान की तुलना में इस संबंध में कुछ भी अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, जो सहिष्णुता, विविधता और मानव सुरक्षा के सिद्धांतों का प्रतीक है। अपने प्रवास के बाद, पैगंबर मुहम्मद ने मदीना पैक्ट का मसौदा तैयार किया, जिसे ऐतिहासिक रूप से मानव गरिमा, अधिकार, नागरिकता, विविधता और सह-अस्तित्व को विश्वास, जातीयता, लिंग और रंग में असमानताओं के बावजूद स्थापित करने के लिए पूरे विश्व में सबसे मौलिक नियामक दस्तावेजों में से एक माना जाता है। सुन्नत साहित्य इस्लाम के पैगंबर द्वारा बनाए गए बहु-विश्वास समाजों में सहवास के उदाहरणों से भरा पड़ा है। उदाहरण के लिए, पैगंबर के अपने यहूदी नौकर की कथा है। वह जब मृत्यु को प्राप्त हुआ तो स्वयं साहब उसकी अंतिम संस्कार में शामिल हुए। गैर-मुसलमानों के साथ उनका वाणिज्य व्यवहार उस बिंदु तक संबद्ध था कि पैगंबर की मृत्यु के बाद भी उनका कवच एक यहूदी व्यक्ति के पास किराए पर था। इस्लाम के चार ख़लीफ़ाओं ने भी पैगंबर मुहम्मद के आचरण को अपने व्यवहार का अंग बनाया। ईमान लाने वालों को अन्य धर्मों का सम्मान करना अनिवार्य बताया। यही नहीं अपने अनुयायियों को उस पर न केवल आक्रमण करने से परहेज करने को कहा अपितु उनकी रक्षा का संदेश दिया।

अब मुसलमानों को दुनिया को यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि इस्लाम एक बहुलतावाद में विश्वास करने वाला पंथ है। जो वैश्विक संदर्भ में इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ उभरी रूढ़ियों की लहरों के जवाब में विविधता का स्वागत करता है। इन हानिकारक भ्रांतियों को दूर करने के लिए संवाद सबसे प्रभावी औजार है। यह समझने की जरुरत है कि अब मुसलमानों को आपसी मतभेदों और विवादों से न तो डरना चाहिए और न ही उसे अस्वीकार करना चाहिए। अपनी अच्छाइयों को दुनिया के बिना किसी आक्रामकता के प्रस्तुत करना चाहिए। विभिन्न धर्मों के सदस्यों के बारे में जानने, उनके साथ जुड़ने और गले लगाने के लिए संवाद एक  महत्वपूर्ण मार्ग है। भारतीय मुसलमान इस दिशा में अग्रणी उदाहरण बन सकते हैं। वैसे अरब देशों के इस्लामिक विद्वानों ने भी इस दिशा में पहल की है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बांग्लादेश और इंडोनेशिया है। भारत में भी कुछ इस्लामिक विद्वान इस दिशा में तसल्ली से पहल कर रहे हैं, जो स्वागत योग्य है।

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