गौतम चौधरी
ऐसे भुगोल मानव सभ्यता के साथ जुड़ा विषय है लेकिन एक अध्ययन के तौर पर आधुनिक दुनिया परिचय कराने का श्रेय जर्मन भूगोलवेत्ता कार्ल रिटर को जाता है। विश्वविख्यात जर्मन ने ही आधुनिक भूगोल की आधारशिला रखी। उन्हें आधुनिक भूगोग का जनक भी कहा जाता है।
कार्ल रिटर का जन्म 7 अगस्त, वर्ष 1779 को जर्मनी (उस समय का प्रशिया देश) के प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र स्नेप्फेन्थल के निकट क्वेडलिनबर्ग नामक स्थान पर हुआ। रिटर के पिता एक चिकित्सक थे और उनकी मृत्यु तभी हो गयी जब कार्ल रिटर की उम्र मात्र पांच साल की थी। स्नेप्फेन्थल में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद रिटर को फ्रैंकफर्ट के एक बैंकर होल्वेग के यहाँ प्राइवेट ट्यूटर की नौकरी मिली। वे इस नौकरी के दौरान ही हाले विश्वविद्यालय में शिक्षा भी ग्रहण कर सके और बाद में 1819 में वहीं इतिहास के प्राध्यापक के रूप में पढ़ाने लगे। साल भर बाद 1820 में उन्हें बर्लिन विश्वविद्यालय में आचार्य के पद पर नियुक्त किया गया और 1821 में उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। तत्पश्चात 1825 में उन्हें विशिष्ट आचार्य का पद मिला और रिटर आजीवन, लगभग चालीस वर्षों तक, बर्लिन विश्वविद्यालय में पढ़ाते रहे। की सेवा की।
बर्लिन विश्वविद्यालय में ही कार्ल रिटर की मृत्यु 28 सितम्बर 1859 को हुई। इनके पहले के भूगोल में दर्शन का प्रचुर प्रभाव था और भूगोल संबंधी मान्यताएँ तथा सिद्धांत बिना प्रेक्षण के ही स्थापित कर लिए जाते थे। ये पहले भूगोलवेत्ता थे, जिन्होंने इस प्रकार की भौगोलिक मान्यताओं को प्रस्थापित करने वाले विद्वानों का घोर विरोध किया। इनके दृष्टिकोण से भूगोल को पृथ्वी के विज्ञान के रूप में होना चाहिए तथा उसकी मान्यता एव सिद्धांत परीक्षण द्वारा निर्धारित होने चाहिए। इनका दृष्टिकोण भूगोल में मानव केंद्रित था, किंतु ये अतिवादी न थे। मानव तथा प्रकृति के परस्पर प्रभावकारी तथ्यों का वैज्ञानिक अध्ययन एवं विवेचन इनका मूलभूत उद्देश्य थे।
कार्ल रिटर साहब ने ही भूगोल को आधुनिक आधार प्रदान किया। पहले भूगोल को अन्य विषयों की उपशाखा के तौर पर पढ़ा पढ़ाया जाता था लेकिन कार्ल रिटर के बाद भूगोल एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थापित हो गया। दरअसल, भूगोल के बारे में आज भी कई प्रकार की भ्रांतियां है कि भूगोल संपूर्ण पृथ्वी का अध्ययन है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। यहां यह बता देना जरूरी है कि आधुनिक भूगोल केवल पृथ्वी के क्रस्ट यानी ऊपरी भाग का अध्ययन करता है। यह अध्ययन भी स्थलाकृतियों तक ही सीमित है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर जलवायु और पृथ्वी के आंतरिक भाग का अध्ययन भूगोल का विषय क्यों हो जाता है? इसके जवाब में इतना ही कहा जा सकता है कि चूकि पृथ्वी के सतह पर स्थलाकृतियों के निर्माण में धरती की आंतरिक और वाह्य शक्तियों की भूमिका अहम होती है। इसलिए ये दोनों विषय भी भूगोल के साथ जुड़ जाते हैं। सतही तौर पर कहा जाए तो जब हम एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाते हैं और रास्ते में जो स्थलाकृति बनी हुई दिखती है बस वही भूगोल के अध्ययन का विषय है। बनावट के आधार पर ये स्थलाकृतियां दो भागों में विभाजित हो जाती है। एक भौतिक और दूसरा आर्थिक। आर्थिक भूगोल में मानव के द्वारा बनाए गए स्थलाकृतियों का अध्ययन करते हैं जबकि भौतिक भूगोल में प्रकृति के द्वारा बनाई गयी स्थलाकृतियों का अध्ययन किया जाता है। कार्ल रिटर, अपने जीवन के अंतिम क्षण तक इन्हीं तथ्यों को साबित करने और भौगोलिक खोजों में व्यस्त रहे।