दुर्गा पूजा विशेष/ यूनान में प्राचीन काल से होती रही है शक्ति स्वरूपा दुर्गा की उपासना

दुर्गा पूजा विशेष/ यूनान में प्राचीन काल से होती रही है शक्ति स्वरूपा दुर्गा की उपासना

अयोध्या प्रसाद ’भारती‘

शक्ति स्वरूपा दुर्गा देवी की पूजा भारत के लगभग सभी भागों में होती है मगर बंगाल में दुर्गा पूजा सबसे बड़ा त्यौहार है। श्रीलंका, नेपाल, थाइलैंड, जावा, सुमात्रा, बाली, फिजी, ट्रिनीडाड एंड टोबेगो, मलेशिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश आदि तमाम देशों में दुर्गा के उपासक हैं। यूनान में प्राचीनकाल से दुर्गा पूजा होती आ रही है। वहां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के नाम दूसरे हैं। वहां महाकाली दुर्गा को ’डायना‘, लक्ष्मी को ’एथेना‘ और विद्या की देवी सरस्वती को ’म्यूज‘ कहा गया है।

यूनान के महाकवि होमर की दो विश्व प्रसिद्ध काव्यकृतियां हैं-’ओडिसी‘ और ’इलियड‘। ओडिसी में पर्वतों और सागरों से घिरे ’क्रीट‘ नामक द्वीप का उल्लेख है। यूनान को प्राचीन काल में ’पेलास्गी‘ नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि यह पुराणकालीन लक्ष्यद्वीप था। इस द्वीप पर मिनास नामक राजा राज करते थे। मिनास को यूनानी देवी दुर्गा ’डायना‘ के पुत्र जीयस का संरक्षण और आशीर्वाद प्राप्त था। जीयस वहां का प्रमुख देवता रहा है जिस तरह भारत में दुर्गा के दूसरे रूप पार्वती का पुत्रा गणेश पूजे जाते हैं, ठीक उसी तरह वहां भी जीयस की पूजा होती थी।

क्रीटवासी मातृशक्ति डायना की पूजा मनोयोग से करते थे। उनका मानना था कि डायना उन्हें मुसीबतों से बचाती है, धन-धान्य प्रदान करती है। क्रीटवासियों के अनुसार ’ईडा‘ नामक पर्वत पर डायना का निवास था। यह सर्वगुण सम्पन्न अत्यंत शक्तिशालिनी थी, धनुष-वाण, फरसा, ढाल-तलवार आदि अस्त्रों से लैस थी। वह सर्प और कबूतर भी धारण करती थी।

सर्प और कबूतर को यूनानवासी भी क्रमशः संहार और शांति के प्रतीक के रूप में मानते हैं। यूनानवासी मानते थे कि डायना वृक्ष के नीचे निवास करती है और शक्तिशाली पशु बैल की सवारी करती है। बैल उत्पादन और वृक्ष खुशहाली के प्रतीक हैं। डायना के वृक्ष और वृषभ प्रेम के कारण यूनान में पेड़ और बैल की पूजा भी की जाने लगी थी।

यूं तो वर्ष भर जहां-तहां-जब-तब दुर्गा पूजा के आयोजन होते रहते हैं पर वर्ष में एक बार दुर्गा (डायना) पूजा का त्यौहार मनाया जाता है। तब वहां छोटे-बड़े, अमीर गरीब पुरूष भी महिलाओं के साथ मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए प्रवेश करते हैं-स्त्राी वस्त्रा धारण किये हुए।

सेमेटिज्म के प्रभाव के कारण यूनान में मूर्तिपूजकों की संख्या कम तो हो गयी है लेकिन आज भी वे अपनी पुरानी आस्था को बचाकर रखने की कोशिश करते हैं। यही नहीं पूरा यूरोप पहले मूर्तिपूजक था लेकिन राम के राजा कस्टेंटाइन सेमेटिज्म को अंगीकार कर लिया और पूरा यूरोप बदल गया, बावजूद इसके मरियम और जीसस की पूजा आज भी उसी रूप में होती है, जिस रूप में यूरोप के लोग हजारों वर्ष पहले आकाश देवी एवं सूर्य की पूजा करते थे।

पुराने जमाने में यह यह यूनान का राष्ट्रव्यापी त्योहार होता था और आयोजन की व्यवस्था राजा के जिम्मे था। वहां डायना के सम्मानस्वरूप नारियों को सम्मान दिया जाता था। नारियां देवी डायना की कथा सुन उसकी तरह सबल, सर्वगुण संपन्न बनने की कोशिश करती थी।

(युवराज)

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