पंकज गांधी
अर्थव्यवस्था का कैसा भी दौर हो, अनिवासियों का निवेश हमेशा एक संजीवनी की तरह काम करता है। यह संजीवनी देश के लिए या उनके खुद के परिवार के लिए जहां वह पैसा भेजते हैं, बड़े काम का होता है। प्रवासी अनिवासी ज्यादातर अपने गृह जिले में भावनात्मक निवेश या शेयर मार्किट निवेश या रियल एस्टेट में निवेश की इच्छा रखते हैं हालांकि मौजूदा कर कानूनों के कारण अनिवासियों को भावनात्मक या रियल स्टेट निवेश में दिक्कतें आ रहीं हैं।
बहुत से नागरिकों ने बताया कि उनके मकान मालिक विदेश में रहते हैं और उनके मकान में रहने के कारण जो किराया उन्हें वह भुगतान करते हैं, उस भुगतान में से उन्हें 31.2 फीसदी टीडीएस काटकर बाकी 68.80 फीसदी ही उन्हें भुगतान करना पड़ता है। टीडीएस की यह दर बहुत ज्यादा है। वही यदि मकान मालिक अनिवासी भारतीय नहीं है तो वही किरायेदार और किराया 50 हजार से कम है तो उसे बिना टीडीएस काटे किराया हर माह मकान मालिक को भुगतान करना पड़ता और यदि किराया 50 हजार से ज्यादा है तो 5 फीसदी टीडीएस काट बचा 95 फीसदी मकान मालिक को भुगतान करता है।
अनिवासी मकान मालिक होने से उसे अतिरिक्त औपचारिकताएं भी करनी पड़ती हैं जैसे उसे ज्।छ लेना पड़ता है, हर माह की सात तारीख को इनकम टैक्स की वेबसाइट पर जाकर टीडीएस भुगतान करना पड़ता है और हर तिमाही उसी भुगतान किये गए टीडीएस का तिमाही रिटर्न भरना पड़ता है। इन सब झंझटों के कारण किरायेदार सोचता है कि अनिवासियों के मकान की जगह किसी निवासी भारतीय का मकान ही किराये पर लें।
इस कारण अनिवासियों को दोहरी कठिनाई हो रही है, पहला टीडीएस 31.2 फीसदी कटकर उन्हे सिर्फ 68.8 फीसदी ही हाथ में मिल रहा है दूसरा टीडीएस की औपचारिकताओं के कारण उन्हें किरायेदार मिलने में दिक्कत हो रही है। इस कारण अब अनिवासी रियल एस्टेट में निवेश करने में कठिनाई महसूस कर रहें हैं। अनिवासियों से अगर रियल एस्टेट में निवेश लेना है तो माननीय वित्तमंत्री को इस पर ध्यान देना पड़ेगा तथा टीडीएस की किराये से जुड़े धाराओं में उन्हें अनिवासियों को निवासियों के समकक्ष रखना पड़ेगा अन्यथा बड़े रियल इस्टेट निवेश प्रभावित हो सकते हैं।
अनिवासी वैसे भी भावनात्मक निवेश के कारण रियल एस्टेट इंडस्ट्री का आसान ग्राहक होता है और अगर इस कारण से निवेश प्रभावित हुआ तो इससे जुडी हुई सारा उद्योग इकोसिस्टम भी प्रभावित होगा चाहे वह स्टील हो सीमेंट हो या अन्य हो।
हाल ही में इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की 2024 की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में अनिवासी भारतीयों ने करीब 9.28 लाख करोड़ रुपये रेमिटेंस के रूप में अपने देश भेजे हैं, जिसके कारण भारत 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा रेमिटेंस पाने वाला अब दुनिया का पहला देश बन गया है। भारत में रेमिटेंस का इतिहास काफी पुराना है। लोग इसे मनी आर्डर इकॉनमी भो बोलते हैं। रेमिटेंस मतलब बाहर गया कोई प्रवासी जब अपने गांव या देश पैसा भेजता है तो उसे रेमिटेंस कहते हैं। रेमिटेंस आज भी देश के अलावा निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों के लिए आय का एक नियमित जरिया भी है। भारत में रेमिटेंस के मामले में खाड़ी देशों में बसे भारतीयों का योगदान अधिक रहता है। इसके अलावा अमेरिका, कनाडा, यूके और ऑस्ट्रेलिया से भी भारत में रेमिटेंस बड़ी मात्रा में आता है।
इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर मैक्सिको है, वहीं तीसरे नंबर पर चीन, चौथे नंबर पर फिलीपींस और पांचवें नंबर पर फ्रांस है। इससे पहले 2010 में 2015 में और 2020 में भारत विदेशी रेमिटेंस प्राप्त करने वाला टॉप देश था। इस क्षेत्र से पलायन के कारण साउथ एशिया के तीन देश भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश वर्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 की लिस्ट में टॉप-10 रेमिटेंस पाने वाले देश में शामिल हैं।
पलायन के लिहाज से देखा जाये तो भारत से श्रम पलायन की संख्या ज्यादा है और खाड़ी देश इन प्रवासी श्रमिकों के प्रमुख डेस्टिनेशन के रूप में उभर रहें हैं। खाड़ी देश हमेशा से प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रमुख डेस्टिनेशन है। भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश से बड़ी संख्या में श्रमिक खाड़ी देश में जा रहे हैं, जहां वह मैन्युफैक्चरिंग, हॉस्पिटैलिटी, सिक्योरिटी और घरेलू काम सहित अन्य क्षेत्रों में काम करते हैं। चूंकि खाड़ी देश अपने यहां नागरिकता नहीं देते इसलिए उनके मन में यही रहता है की भारत ही उनका अंतिम घर है। ऐसे में वह अपने जीवनकाल में यहां घर जरूर बनाने की सोचते हैं और पलायन अवधि तक उससे किराये की आय पाने की इच्छा रखते हैं. ऐसे में यदि उनके इस किराये की आय में बाधा आएगी तो इस निवेश पर ब्रेक लग सकता है।
हमने देखा कोरोना महामारी के दौरान भारतीय प्रवासी भी संकट में आ गए थे और उन पर कर्ज और असुरक्षा घर कर गई थी। उस समय के एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान वेतन नहीं मिलने, सामाजिक सुरक्षा के कम होने और नौकरियां जाने से बड़ी संख्या में अनिवासी भारी कर्ज और असुरक्षा में चले गए। और इससे श्रमिकों के माइग्रेशन और निवेश रेमिटेंस पैटर्न पर असर पड़ा। प्रवासी समुदाय द्वारा भारत में स्थायी घर लेने की पूछताछ भी बढ़ने लगी थी।
कोरोना का दौर तो चला गया लेकिन हालात सुधरने के साथ जैसे जैसे इनके निवेश बढ़ रहें हैं। ऐसे में आगामी बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को इस कठिनाई पर विचार कर इसे दूर करना चाहिए ताकि हर अनिवासी भारत में घर खरीदने को लेकर प्रोत्साहित हो। कुछ ही दिनों में बजट पर सुझाव आमंत्रित करने के लिए वित्तमंत्री रायशुमारी की प्रक्रिया शुरू करेंगी। आशा है इस प्रक्रिया में वह इस सुझाव पर भी ध्यान देंगी।
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