आर्थिक समीक्षा/ हवाई यातायात क्षेत्र में भारत की लम्बी छलांग

आर्थिक समीक्षा/ हवाई यातायात क्षेत्र में भारत की लम्बी छलांग

राज सक्सेना

विमान यातायात का तीव्रतम किंतु मंहगा संसाधन है मगर भारत जैसे विशाल भौगोलिक भूभाग तथा व्यापक जलवायविक व भू-प्रादेशिक विविधता वाले देश में वायु परिवहन का महत्व काफी है। भारत के प्रमुख वाणिज्यिक एवं औद्योगिक केंद्र एक-दूसरे से अत्यधिक दूरी पर स्थित हैं। वायु परिवहन आंतरिक सम्पर्क के अतिरिक्त दूसरे देशों के साथ सम्पर्क जोड़ने की दृष्टि से भी आवश्यक हो जाता है। ऐसे कई कारक हैं जो भारत में वायु यातायात के विकास हेतु अनुकूल स्थिति बनाते हैं।

भारत का मौसम वर्ष के अधिकांश भाग में साफ रहता है। विस्तृत मैदानी भाग वायुयान उतरने के लिए उपयुक्त समतल भूमि उपलब्ध कराते हैं। इन कारणों से भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला नागरिक वैमानिक बाजार है। वह अपने छोटे विमानों के बेड़े को बढ़ाना चाहता है। इसका कारण हवाई अड्डों की सीमित क्षमता है। सरकार इस माध्यम के जरिये पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ दूर दराज के इलाकों में सम्पर्क चाहती है। यात्री एवं माल परिवहन के अलावा देश की रक्षा के लिए भी वायु यातायात का विकास अनिवार्य है।

पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में उठाये गये कदमों से लगता है कि सरकार ने देश के कोने कोने तक हवाई सेवाएं देने की ठान ली है। इसके लिए देश में ही छोटे प्लेन बनाने की योजनाओं पर भी तेजी से काम चल रहा है। इसके लिए कई वैश्विक कंपनियों से सरकार की बातचीत भी चल रही है। इनमें एम्ब्रेयर और सुखोई भी हैं। सूत्रों के मुताबिक, इसके लिए स्थानीय स्तर पर एक कंपनी का गठन किया जाएगा। इसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी होगी। विदेशी पार्टनर कंपनी को तकनीक हस्तान्तरण के लिए कहा जाएगा। विमानों में 100 से कम सीटें होंगी। गुजरात में इनकी मैन्यूफैक्चरिंग सम्भावित है।

भारत का पूर्ववर्ती सरकारी एयर इंडिया, जो बड़े घाटे में चल रहा था, 2022 की शुरुआत में टाटा द्वारा नियंत्रण हासिल करने के बाद उसके परिचालन में बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है। विस्तारा के साथ विलय के बाद एयर इण्डिया देश की सबसे बड़ी एयरलाइन के रूप में उभरा है। अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर और इंडिगो के बाद घरेलू बाजार में दूसरे सबसे बडे टाटा समूह के पास 218 विमान हैं और विगत ऑर्डर से पहले वह 52 घरेलू और 38 अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों के लिए उड़ान भर रहा था। 80 से 100 अरब डॉलर के बीच 470 विमानों के लिए एयर इंडिया के दुनिया के इस क्षेत्र में सबसे बड़े ऑर्डर ने, अपने विशाल आकार और एयर इंडिया, विमानन उद्योग और कुछ सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर इसके प्रभाव के कारण दुनिया को चैंका दिया है।

यह सौदा, भारत के प्रमुख विमान खरीदने वाले देशों में से एक के रूप में प्रवेश का प्रतीक है। एयर इंडिया ने एयरबस से 40 चैड़ी बॉडी वाले ए 350 विमान और 210 छोटी बॉडी वाले ए 320 नियो फैमिली विमानों का आदेश दिया है। बोइंग के आदेश में 10 वाइड-बॉडी बी 777एक्स विमान, 20 वाइड-बॉडी बी 787 विमान और 190 नैरो-बॉडी बी 737एमएएक्स विमान शामिल हैं। बताया जाता है कि इंडिगो भी 500 विमान खरीदने की ऐसी ही योजना बना रहा है। टाटा समूह के चेयरमैन ने कहा कि विमान के कुछ हिस्सों का विनिर्माण भारत में किया जा सकता है, इससे घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।

भारत में 18 फरवरी, 1911 को पहली वाणिज्यिक उड़ान भरी गई जो इलाहाबाद व नैनी के मध्य 10 किलोमीटर की थी। इसमें 6500 डाक, वायुयान द्वारा भेजी गई थी। यह दुनिया की पहली एअरमेल सेवा और भारत में नागरिक उड्डयन के प्रारम्भ के रूप में मानी जाती है। दिसम्बर 1912 में भारतीय राज्यवायुसेवा ने यूनाइटेड किंग्डम स्थित इम्पीरियल वायु सेवा के साथ मिलकर लंदन, कराची-दिल्ली विमान सेवा शुरू की जो भारत से पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान थी। 1915 में टाटा सन्स लिमिटेड ने कराची और मद्रास के मध्य नियमित एयर मेल सेवा की शुरुआत की तथा 24 जनवरी, 1920 को रॉयल एयरफोर्स ने कराची और बॉम्बे के मध्य नियमित एयरमेल सेवा की शुरुआत की।

भारत में नागरिक हवाई अड्डों का निर्माण 1924 में शुरू किया गया। हवाई अड्डों का निर्माण तत्कालीन कलकत्ता में दम-दम, इलाहाबाद में बमरौली और मुंबई में गिल्बर्ट हिल पर किया गया।

1932 में टाटा संस लिमिटेड का एक प्रभाग टाटा एयरलाइन्स के रूप में अस्तित्व में आया। 15 अक्टूबर को कराची, अहमदाबाद, बॉम्बे, बेल्लारी, मद्रास के बीच विमान सेवा चालू की गई। इसी को डाक ले जाने का कार्य भी सौंपा गया। 1933 और 1934 के मध्य भारतीय विमान सेवाएं, इण्डियन ट्रांस कॉन्टीनेंटल एयरवेज, मद्रास एयर टैक्सी सेवा, इण्डियन नेशनल एयरवेज, इत्यादि के रूप में शुरू की गयीं। 1945 में डेक्कन एयरवेज स्थापित किया गया जिस पर टाटा और हैदराबाद के निजाम द्वारा संयुक्त रूप से स्वामित्व था। 1946 में टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर एयर इण्डिया कर दिया गया।

मार्च 1953 में भारतीय संसद ने एयर निगम अधिनियम पारित किया और वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया जिसके द्वारा सभी विमान कपनियों को दो नव-निर्मित निगमों में शामिल कर दिया गया। एक निगम का नाम इण्डियन एयरलाइंस रखा गया, जिसका काम देश के भीतरी भागों में वायुसेवाएं चलाने का था । इसे पड़ोसी देशों से भी वायु संपर्क स्थापित करने का भार सौंपा गया। दूसरे निगम का नाम एयर इण्डिया इन्टरनेशनल रखा गया जिसे लंबी दूरी के अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर वायु सेवाएं प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

अमेरिका से इस नये सौदे के बाद एयर इंडिया के बेड़े का आकार दो गुना से अधिक बढ़ जाएगा और यह अब इंडिगो के 300 विमानों के बेड़े को पीछे छोड़कर घरेलू मार्गों पर भी सबसे बड़ी एयरलाइन बन जाएगी। एयर इंडिया ने जिस तरह के विमानों का ऑर्डर दिया है, उससे पता चलता है कि वह अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर अपनी उपस्थिति बढ़ाने के साथ-साथ घरेलू बाजार के बड़े और छोटे शहरों में भी उड़ान भरने की योजना बना रही है।

इससे भारत के विमानन क्षेत्र में उछाल आ जायेगा। भारत से अंतरराष्ट्रीय हवाई वाहकों में एक बड़ी छलांग के साथ, यह सौदा भारत को हवाई यात्रा का एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र भी बना देगा। आईबीईएफ के अनुसार, भारत 10 वर्षों में नागरिक उड्डयन में अपनी स्थिति में सात बड़े सुधार कर घरेलू विमानन बाजार में 2024 तक ब्रिटेन को पछाड़कर तीसरा सबसे बड़ा बाजार बनने के लिए तैयार है। भारत की जनसंख्या और बढ़ती क्रय शक्ति को देखते हुए, घरेलू हवाई यातायात निश्चित रूप से बढ़ेगा।

एयरलाइनों के लिए कम व्यस्त रूटों पर अपनी कुल क्षमता का 10 फीसदी ऑपरेट करना जरूरी है। इनमें कश्मीर और पूर्वात्तर के राज्य शामिल हैं। कम सीटों वाले प्लेन इसके लिए ज्यादा कारगर होंगे। वे सीटों के अनुपात में ज्यादा सवारियां लेकर जा पाएंगे। बड़े विमान में ज्यादा सीटें खाली रह जाती हैं। एयरबस एसई का अनुमान है कि भारत को 2040 तक करीब 2,210 विमानों की जरूरत होगी। इनमें से 80 प्रतिशत छोटे होंगे। एयरबस आ रही है, लॉकहीड मार्टिन आ चुका है, बोइंग आ चुका, बॉम्बार्डियर आ गया है, जीई एरोस्पेस आ गया है। अब एम्ब्रेयर के आगे पीछे सुखोई भी आ रहा है। सब कुछ भारत में बन रहा है, बनने वाला है। कुल मिलाकर इस क्षेत्र में भारत अनुकरणीय काम कर रहा है।

(आलेख में व्यक्ति विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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