डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल
भारतीय राजनीति के इतिहास में पंचायती राज और ग्राम स्वराज के प्रोत्साहक, प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी, 1896 को हुआ था। उनकी जयंती के इस मौके पर, हम उनके योगदान को याद और उनके विचारों को याद करते हैं जिन्होंने राष्ट्र को समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान किया। मोरारजी देसाई ने अपने जीवन को सामाजिक न्याय, समाज सेवा, और राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित करते हुए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मोरारजी देसाई भारत के स्वाधीनता सेनानी, राजनेता और देश के छठे प्रधानमंत्री (सन् 1977 से 79) थे। वे ही एकमात्र व्यक्ति रहे हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया था। मोरारजी 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की परंतु वे असफल रहे। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के काबिल नहीं थे। वस्तुतः वे दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावजूद उन्हें पंडित नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मोरारजी का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। चैधरी चरण सिंह से राजनीतिक मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।
मोरारजी देसाई ने 1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में कूद पड़े। इसके बाद उन्हें 1931 में गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया। मोरार जी ने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा की स्थापना की और सरदार पटेल के निर्देशा पर उन्हें इस संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। मोरारजी को 1932 में दो वर्ष तक जेल की सजा भुगतनी पड़ी। 1937 तक वे गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। इसके बाद वे बंबई राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में शामिल किये गये। इस दौरान यह माना जाता था कि उनके व्यक्तित्व में कई जटिलताएं देखने को मिली। वे हमेशा अपनी बात को ऊपर रखते थे और सही मानते थे। लोग बताते हैं कि मोरारजी देसाई में महत्वाकांझा थी और थोड़ा अधिनायकवादी सोच भी था।
मोरारजी देसाई की विचारधारा जय जवान, जय किसान थी, जिससे उन्होंने भारतीय गांवों और किसानों के विकास को महत्व दिया। उनका सपना था कि भारत गांवों के विकास के माध्यम से ही समृद्ध हो सकता है। मोरारजी देसाई का नाम गरीबों के हक की लड़ाई में हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए अपने कठोर प्रयासों से लोगों को एक समृद्ध और समान भविष्य की दिशा में आगे बढाने का प्रयास किया। स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के कारण मोरारजी देसाई के कई वर्ष जेलों में ही बिताये। देश की आजादी के समय राष्ट्रीय राजनीति में इनका नाम वजनदार हो चुका था लेकिन मोरारजी की प्राथमिक रुचि राज्य की राजनीति में ही थी। यही कारण है कि 1952 में इन्हें बंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस समय तक गुजरात तथा महाराष्ट्र बंबई प्रोविंस के नाम से जाने जाते थे और दोनों राज्यों का पृथक गठन नहीं हुआ था।
वर्ष 1967 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन वह इस बात को लेकर कुंठित थे कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता होने पर भी उनके बजाय इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। यही कारण है कि इंदिरा गांधी द्वारा किए जाने वाले क्रांतिकारी उपायों में मोरारजी निरंतर बाधा डालते रहे। दरअसल, जिस समय कामराज ने सिंडीकेट की सलाह पर इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की घोषणा की थी तब मोरारजी भी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल थे। जब वह किसी भी तरह नहीं माने तो पार्टी ने इस मुद्दे पर चुनाव कराया और इंदिरा गाँधी ने भारी मतांतर से बाजी मार ली। इंदिरा गाँधी ने मोरारजी को उप प्रधानमंत्री का पद दिया था।
मोरारजी देसाई ने अपने जीवन में न्याय, समर्पण, और सेवा के मूल्यों को बखूबी अपनाया। उन्होंने देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया और विभिन्न क्षेत्रों में सक्रियता के साथ भूमिका निभाई। उनका नेतृत्व एक संघर्षशील और संवेदनशील समय में आया था, जब देश के सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को समझने की आवश्यकता थी। मोरारजी देसाई ने अपनी निष्ठा और संवेदनशीलता के साथ इस चुनौती का सामना करते हुए अपने नेतृत्व के माध्यम से देश को एकता और प्रगति की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास किया।
उनकी नेतृत्व के दौरान, भारत ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जो समाज को समृद्धि और समानता की दिशा में आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। मोरारजी देसाई ने विचारशीलता, संवेदनशीलता, और सर्वसाधारण के प्रति समर्पण के साथ अपने कार्यकाल में एक अद्वितीय पहचान बनाई। उन्होंने राष्ट्रीय एकता और विकास के लिए कठिन परिस्थितियों में भारत को नेतृत्व किया। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जयंती पर, हम उनके योगदान को स्मरण करते है। हमें उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प ग्रहण करने के साथ उनकी स्मृति करते हुए एक सशक्त और समृद्ध भारत के दिशा में अग्रसर होने का प्रण लेना चाहिए।
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