गौतम चौधरी
इस्लामिक चरमपंथी संगठन हमास के खिलाफ इजरायल की सैन्य कार्रवाई को लेकर भारत का राजनीतिक खेमा, साफ तौर पर दो भागों में विभाजित दिख रहा है। जहां एक ओर सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के नेता इजरायल का समर्थन करते दिख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वामदल सहित कई इस्लामी रूझान की पार्टियों ने फिलिस्तीन के बहाने हमास के प्रति हमदर्दी दिखाई है। इधर कांग्रेस इस मुद्दे पर भी मध्यम मार्ग को ही चुना है। हालांकि भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि हमास एक आतंकवादी संगठन है और फिलिस्तीन की आम जनता पर इजरायल की सैन्य कार्रवाई किसी कीमत पर उचित नहीं है।
इस पूरे प्रकरण में अभी तक भारत सरकार से लेकर किसी भी राजनीतिक पार्टियों ने हमास के खिलाफ खुले तौर पर निंदा प्रस्ताव पारित नहीं किया है, जबकि भारत के कुछ मुस्लिम संगठनों ने हमास के समर्थन में रैलियां निकाली है। यहां तक कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी या फिर सरकार ने भी हमास के खिलाफ कड़े शब्दों में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है। इससे पुरातनपंथी इस्लामिक ताकतों को बल मिलेगा, जो एक बार फिर भारत को इस्लामिक आतंकवाद के जद में लाकर खड़ा कर सकता है।
बता दें कि भारत किसी भी प्रकार के आतंकवाद का विरोध करता रहा है। यह भारतीय विदेश नीति का अंग है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कई बार कई मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ भारत की प्रतिबद्धता दोहराई है। बावजूद इसके हमास द्वारा इजरायल के आम लोगों पर किए गए हमले की निंदा भारत सरकार ने नहीं की है। यह कहीं न कहीं भारत में पनप रहे इस्लामिक चरमपंथियों को बल प्रदान कर रहा है। यही नहीं इस मामले में कांग्रेस का मौन भी बेहद खतरनाक है। सबसे ज्यादा खतरनाक तो वामदलों के द्वारा फिलिस्तीन के समर्थन में रैलियां निकालना है। निःसंदेह फिलिस्तीन में इजरायल जो कर रहा है वह अमानवीय है लेकिन हमास ने जो किया उसे किस तर्क से सही ठहराया जा सकता है? जो लोग फिलिस्तीन के समर्थन में रैलियां निकाल रहे हैं, उन्हें उन्हीं रैलियों में सबसे पहले हमास की निंदा करनी चाहिए फिर इजरायल के खिलाफ भाषण प्रारंभ करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। बिना हमास की निंदा किए रैलियां हो रही है। इससे भारत के अंदर पल रहे इस्लामिक चरमपंथियों में गलत संदेश जा रहा है, जो न तो भारतीय राष्ट्रवाद के हित में है और न ही देश के लोकतांत्रिक ढ़ाचे को सूट करता है।
इस मामले में वामदल की तुलना में भूमिगत वाम संगठनों की सोच ज्यादा सकारात्मक और परिपक्व दिख रहा है। उन्होंने निःसंदेह फिलिस्तीन का समर्थन किया है लेकिन हमास की कृत्य पर भी वे संजीदा हैं। उनका साफ तौर पर कहना है कि वे फिलिस्तीनी जनता के साथ हैं लेकिन हमास के द्वारा आम इजरायलियों पर किया गया हमला कतई उचित नहीं है।
भारत विगत लंबे समय से इस्लामिक आतंकवाद की जद में रहा है। यहां कई आतंकी हमले हो चुके हैं। यहां तक कि भारतीय लोकतंत्र के हृदय स्थल संसद भवन पर भी इस्लामिक आतंकवादी हमला कर चुके हैं। ऐसे में भारत के राजनेताओं या फिर बुद्धिजीवियों को ऐसा कोई भी मौका नहीं देना चाहिए जिससे इस्लामिक चरमपंथी मजबूत हों और पाकिस्तान व ईरान की तरह देश की सत्ता को अपनी उंगलियों पर नचाए।
यहां इस बात का जिक्र कर दें कि वर्ष 1924 में जब तुर्की के खलीफा को बर्तानियां सल्तनत के द्वारा अपदस्त किया गया तो विश्वव्यापी खिलाफत आन्दोलन प्रारंभ हुआ। उस आन्दोलन में भारतीय मुसलमानों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। अपने तात्कालिक राष्ट्रीय हितों को देखते हुए भारत के कुछ स्वतंत्रता सैनानियों ने भी उस इस्लामिक आन्दोलन का समर्थन किया था। यह सच है कि भारत के विभाजन के लिए कई अन्य कारक भी जिम्मेदार थे लेकिन बिना कुछ सोचे समझे खिलाफत आन्दोलन में भारतीय नेताओं का कूद जाना भी देश के विभाजन का एक प्रमुख कारण बना। दो राष्ट्र के सिद्धांत पर पाकिस्तान बनाने की इस्लामिक पुरातन पंथियों का साथ देने वाले आज न तो पश्चिमी पाकिस्तान में दिख रहे हैं और न ही बांग्लादेश में उनका कोई नामोनिशान बचा है। इसलिए क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए फिलिस्तीन के बहाने हमास का समर्थन ठीक नहीं है।
इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध को लेकर दुनिया का हर मुल्क अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख, अपनी रणनीति बनायी है। यहां तक कि मुस्लिम देशों ने भी खुले तौर पर हमास का समर्थन नहीं किया है। कई इस्लामिक देशों ने तो हमास की निंदा भी की है। ऐसे में हमे भी अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर संवेदनशील होना चाहिए। इस युद्ध को लेकर भारत सरकार ने जो रणनीति अपनाई है वह हमारे देश के लिए हितकर है। वहीं इस देश के हर एक राजनीतिक दल और राजनेता की रणनीति होनी चाहिए। इस मामले में हमारी सरकार को भी थोड़ा कठोर होना पड़ेगा। उसे हमास के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करना चाहिए। साथ ही इजरायल द्वारा आम फिलिस्तीनियों पर अमानवीय हमलों का खुलकर विरोध करना चाहिए।