डॉ घनश्याम बादल
यूं तो हर आदमी अपने आप को बुद्धिमान और सयाना कहलवाना पसंद करता है और यदि उसे कोई मूर्ख कह दे तो वह नाराज हो जाता है लेकिन एक दिन ऐसा भी आता है जब दुनिया भर के लोग मूर्ख बनने और बनाने में आनंद का अनुभव करते हैं और यह दिन है एक अप्रैल का दिन जिसे पूरी दुनिया में ‘फूल्स डे’ या मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है। हर साल पहली अप्रैल को दुनियाभर में‘मूर्ख दिवस मनाया जाता है। ‘फूल्स डे’ का जोर आनंदभाव है वही इसे लोकप्रिय बनाता है। इस दिन मजे लेने के लिए लोग कई दिन पहले ही तैयारी करने लगते हैं कि किसे और कैसे मूर्ख बनाना है ।
कब और कहां से आया ‘फूल्स डे’?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर यह मूर्ख दिवस वाला विचार आया कहां से। एक अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहले संबंध का विवरण चैसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में मिलता है। हालांकि अप्रैल फूल की शुरुआत 17वीं सदी से हुई मानी जाती है परन्तु पहली अप्रैल को ‘फूल्स डे’ के रूप मे मनाना और लोगो के साथ हंसी मजाक करने का सिलसिला सन् 1564 के बाद फ्राँस से शुरू हुआ। इस परंपरा की शुरुआत भी बड़ी मनोरंजक है। 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी देशों मे एक जैसा कैलेंडर प्रचलित था जिसमे हर नया वर्ष पहली अप्रैल से शुरू होता था।
उन दिनों पहली अप्रैल के दिन को लोग नववर्ष के प्रथम दिन की तरह ठीक इसी प्रकार मनाते थे, जैसे आज हम पहली जनवरी को मनाते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को नववर्ष के उपहार देते थे, शुभकामनाएँ भेजते थे और एक दूसरे के घर मिलने जाते थे। सन् 1564 मे वहाँ के राजा चार्ल्स नवम ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया। इस नए कैलेंडर मे 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया। अधिकतर लोगो ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया । वह पहली अप्रैल को ही वर्ष का पहला दिन मानते थे। ऐसे लोगो को मूर्ख समझकर लोगों ने पहली अप्रैल के दिन विचित्र प्रकार के मजाक करने शुरू कर दिए तभी से पहली अप्रैल को ‘फूल्स डे’ के रूप मे मनाने की परंपरा चल पड़ी।।
कैसे कैसे ‘अप्रैल फूल’
अप्रैल फूल दिवस पश्चिमी देशों में खास तौर पर मनाया जाता है। फ्रांस में ‘अप्रैल फूल’ के दिन मूर्खों, कवियों और व्यंग्यकारों का सात दिवसीय रोमांचक कार्यक्रम होता है। इस मनोरंजक कार्यक्रम में भाग लेने वाले युवक को युवती की ड्रेस पहननी पड़ती है। मूर्ख बने व्यक्ति को पुरस्कृत भी किया जाता है।
चीन में ‘अप्रैल फूल’ के दिन बैरंग पार्सल भेजने और मिठाई बांटने की परंपरा है। यहाँ के लोग जंगली जानवर के मुखौटे पहनकर आने-जाने वाले लोगों को डराते हैं। रोम में ‘अप्रैल फूल’ सात दिनों तक मनाया जाता है और चीन की भांति बैरंग पार्सल भेज कर मूर्ख बनाया जाता है। जापान में बच्चे पतंग पर इनामी घोषणा लिख कर उड़ाते हैं। पतंग पकड़ कर इनाम मांगने वाला ‘अप्रैल फूल’ बन जाता है। इंग्लैंड में ‘अप्रैल फूल’ के दिन कार्यक्रम में मूर्खता भरे गीत गाकर, मूर्ख बनाया जाता है तो स्कॉटलैंड में ‘मूर्ख दिवस’ को ‘हंटिंग द कूल’ के नाम से जाना जाता है। मुर्गा चुराना यहाँ की विशेष परंपरा है। मुर्गे का मालिक भी इसका बुरा नहीं मानता। किसी का मुर्गा चुराना यहाँ के लोगों का ‘अप्रैल फूल’ मनाने का तरीका है । पारंपरिक तौर न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक दोपहर तक ही किये जाते हैं, और अगर कोई दोपहर के बाद किसी तरह की कोशिश करता है तो उसे ‘अप्रैल फूल’ कहा जात हैं। रुस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है।
मूर्ख दिवस के मजेदार किस्से
32 मार्च को सगाई
बहुत पहले मजाक के तौर पर इंग्लैण्ड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च घोषित कर दी गई जिसे वहां की जनता ने सच मान लिया और मूर्ख बन बैठे। तब से 32 मार्च यानी 1 अप्रैल को अप्रैल फूल डे के रूप में मनाया जाता है।
साधू की जलती दाढ़ी
एक अन्य किस्से के अनुसार बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक एक संत थे जिनकी दाढ़ी जमीन तक लम्बी थी। एक दिन उनकी दाढ़ी में अचानक आग लग गई तो वे बचाओ-बचाओ कह कर उछलने लगे। उन्हें इस तरह उछलते देख कर बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। तभी संत ने कहा, मैं तो मर रहा हूं और तुम हँस रहे हो. यह मूर्खता है मगर हँसना बहुत अच्छा है, इसलिए तुम आज से पहली अप्रैल के दिन खूब हंसोगे, वह भी मूर्खतापूर्ण कार्य करके या देखकर। इतना कह कर उन्होंने तो प्राण त्याग दिए और चीन में मूर्ख दिवस माने की परंपरा शुरु हो गई ।
‘लड़की का सबसे सच्चा झूठ’
स्पेन के राजा माउन्टो बेर ने एक दिन घोषणा करवाई कि जो सबसे सच ‘झूठ’ लिख कर लाएगा, उसे इनाम दिया जाएगा। प्रतियोगिता के दिन राजा के पास ‘सच झूठ’ के हजारों खत पहुंचे, लेकिन राजा किसी के खत से संतुष्ट नहीं थे, अंत में एक लड़की ने आकर कहा ‘महाराज मैं गूंगी और अंधी हूं’। सुन कर राजा चकराया और पूछा ‘क्या सबूत है कि तुम सचमुच अंधी हो, तब तेज-तर्रार किशोरी बोली महल के सामने जो पेड़ लगा है, वह आपको तो दिखाई दे रहा है, लेकिन मुझे नहीं।’ इस पर राजा खूब हंसा। उसने किशोरी को इनाम दिया तभी से स्पेन भी फूल्स डे की परम्परा चल पड़ी ।
चन्द्रमा और सूरज धरती पर
एक बार हास्य प्रेमी कवि व लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बनारस में ढिंढोरा पिटवा दिया कि अमुक वैज्ञानिक अमुक समय पर धरती पर सूरज और चांद उतार कर दिखायेंगे। नियत समय पर लोगों की भीड़ इस अद्भुत करिश्मे को देखने को जमा हो गई। घंटों लोग इंतजार में बैठे रहे परन्तु वहाँ कोई वैज्ञानिक नहीं दिखाई दिया उस दिन एक अप्रैल था, लोग तो मूर्ख बन के वापस आ गए पर बनारस में पहली अप्रैल मूर्ख पर दिवस बन गया मनाने की परंपरा चल पड़ी।
रोके नहीं रुकी मूर्ख दिवस परंपरा
एक अप्रैल के मूर्ख दिवस को रोकने के लिए यूरोप मे समय-समय पर अनेक कोशिशें हुई पर विरोध के बावजूद यह दिवस मनाया रहा है। मूर्ख दिवस मनाने वालों का कहना है कि इसे वे इसलिए मनाते हैं क्योंकि मूर्खता मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है और वर्ष में एक बार सबका जम कर हंसना मन मस्तक में सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है ।
न करें भद्दी मजाक
पर एक बात का घ्यान जरुर रखें कि मूर्ख बनाने के लिए किसी से भद्दा मजाक न करें किसी की भावनाएं आहत न करें । मूर्ख बनाएं या बनें पर आपसी प्रेम पर आंच न आए । मूर्ख बनने या बनाने का संबंध थोडा-सा आनंद पाने से है जिसके लिये हर व्यक्ति जीवन में दिन-रात जूझता है। एक अप्रैल को किसी भी मित्र को मूर्ख बनाने का अपना अलग ही मजा है पर पर जरा सावधानी से, कहीं आप मूर्ख बनाने के चक्कर में खुद ही मूर्ख न बन जाएं ।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)