गांधी जयंती पर विशेष/ गांधी जन्म तिथि कोलाहल और गांधी जी

गांधी जयंती पर विशेष/ गांधी जन्म तिथि कोलाहल और गांधी जी

सत्य नारायण भटनागर

हमारा देश अवकाश प्रधान देश है। जब भी कोई सामान्य कारण दिखे, हम अवकाश मनाने लगते हैं। दुनियां में सर्वाधिक अवकाश वैधानिक रूप से हमारे देश में मनाए जाते हैं। राज्य सरकारें भी अवकाश घोषित करने में बड़ी उदार हैं। सामान्य अवकाश तो हैं ही, एच्छिक अवकाश भी हैं। फिर कुछ स्थानीय अवकाश भी हैं। इन सबके बाद कोई मर गया तो अवकाश घोषित। हड़तालें बंद तो अपनी जगह हैं।

इसके अतिरिक्त हर कर्मचारी, अधिकारी अपने हक के अवकाश प्राप्त करता है। सब मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत को अवकाश प्रधान देश माना जा सकता है। यहां कार्य दिवस कम हैं, अवकाश दिवस अधिक हैं। जब अवकाश नहीं होता, तब भी कार्यालयों में कितना काम होता है और कितना विश्राम, यह भी या तो खोज का विषय है या किसी व्यंग्य आलेख का।

गांधी जी कर्मयोगी थे। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण देश व मानवता को समर्पित था। वे काम को पूजा मानते थे। ऐसे व्यक्ति का जन्म दिवस अवकाश मनाकर उत्सव करना गांधी भावना के विरूद्ध है और यह कार्य संस्कृति के विरूद्ध है।

गांधी जी देश के पूज्य थे। वे बापू थे। वे राष्ट्र पिता हैं। वे महात्मा गांधी हैं। उनके जीवन काल में उनके करोड़ों अनुयायी थे। जन्म दिन आए किंतु गांधी जी ने कभी काम रोक कर अपना जन्म दिन नहीं मनाने दिया। व्यर्थ के आडंबर को रोका। सादगी से प्रतिदिन की तरह प्रार्थना-भजन कर इस दिन का आनंद लिया। कोई सजावट नहीं, कोई फूल माला नहीं।

इस जन्मदिन का वर्णन साने गुरूजी ने किया है। वे लिखते हैं कि इस दिन एक ऊंचे स्थान पर दीये की बाती धीमे-धीमे जल रही थी। गांधी जी ने पूछा-‘यह दीया किसने जलाया?’

कस्तूरबा ने कहा – ‘मैंने’

गांधी जी बोलने लगे – ‘आज के दिन सबसे खराब बात कोई हुई है तो वह यह है कि बा ने आश्रम में दीया जलाया। आज मेरा जन्मदिन है, क्या इसलिए दीया जलाया गया। अपने आसपास के देहातों में जाने पर मैं देखता हूं कि गांववालों को रोटी पर लगाने के लिए तेल नहीं मिला और आज मेरे आश्रम में घी जलाया जा रहा है।’

फिर बा को संबांधित करते हुए बोले – ‘इतने साल साथ रहते हुए तुमने यही सीखा। गांववालों को जो चीज नहीं मिली, उसका उपभोग हमें नहीं करना चाहिए। मेरा जन्मदिन है तो क्या हुआ? जयंती के दिन तो सत्कार्य करना होता है, पाप नहीं।’

अपने आश्रम में 2 अक्टूबर 1919 को उन्होंने अपने जन्म दिन पर उन्होंने कहा था कि ‘जीवन और मरण दोनों मंगलमय हैं और ये माला और ये हार, मुझे इनमें रूचि नहीं हैं।’

महादेव भाई देसाई की डायरी पढ़ लीजिए या आगा खां महल की डायरी का अध्ययन कीजिए। उनके जन्म उत्सव पर कोई आडंबर, दिखावा नहीं हुआ। कोई उत्सव नहीं हुआ। क्यों नहीं हुआ, उसका कारण ऊपर वर्णित घटना की भावना है।

गांधी जी व्यक्ति नहीं एक विचार थे। वे भारत की आत्मा के डाक्टर थे। उन्होंने अपने व्यवहार व आचरण से यह सिद्ध कर दिया था कि भारत की गरीबी का कारण भोगवाद है। जब तक देश में हिंदू मुस्लिम एक्य नहीं होता, जब तक भारत में छूआछूत का अंत नहीं होता और जब तक सबसे पिछड़े व्यक्ति तक हमारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचता, गांधी जी के मत में स्वराज आया ही नहीं।

(आलेख में व्यक्त लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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