उचित नहीं है लैंगिक आधार पर प्रताड़ना का रेखांकन

उचित नहीं है लैंगिक आधार पर प्रताड़ना का रेखांकन

प्रताड़ना चाहे स्त्री की हो अथवा पुरुष की, दोनों के लिए सहन करना बहुत कठिन होता है। स्त्री-पुरुष को लैंगिक आधार पर विभाजित करना वास्तव में सोचे-समझे षडयन्त्र का एक हिस्सा है। आर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम न होने के कारण युवा पुरुष अपने घर-परिवार में अस्वभाविक रूप से पीडित होते हैं। जब किशोरवर्ग उत्साहपूर्वक अपना जीवन आरम्भ करता है तब उसे आटे-दाल का भाव मालूम होता है।

कहते हैं सपन्न व्यक्ति के पास हर ताले की चाबी होती है, फिर भी वह प्रताड़ित हो सकता यदि अपने जीते जी बच्चों को अपना सब कुछ सौंप देता है। कुछ लोग अपने प्रति हो रहे अत्याचार को चुपचाप सहन करते हैं, वे सोचते हैं कि लोग क्या सोचेंगे? बच्चों का क्या होगा? आज अस्सी प्रतिशत पुरुष पत्नी से आतंकित होकर सोचने को मजबूर हैं।

घर पर बोलने या कुछ कहने के विषय में पुरुषों की हालत तो जग जाहिर है। पत्नी उसे अपनी माँ का पल्लू पकड़कर चलने वाला बताती है। उधर माता-पिता उसे जोरू का गुलाम कहकर धिक्कारते हैं। भारतीय पुरुष अपने परिवार की सुख-सुविधा के लिए अपना सर्वस्व न्योछवर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। इसके बावजूद एक आयु के पश्चात वृद्ध पुरुषों की दुर्दशा होती है। वे सबसे अधिक उपेक्षित होते हैं। उन्हें समय पर न भोजन मिलता है और न ही किसी का प्यार। उन्हें तिरस्कृत एवं घृणा का सामना करना पड़ता है। इससे उनके आत्मसम्मान को ठेस लगती है और उन्हें मानसिक तनाव झेलना पड़ता है। इससे उनका चोट खाया हुआ अहं अवसादग्रस्त हो जाता है। कुछ पुरुष अपनी जीवन लीला तक समाप्त कर देते हैं। यही कारण है कि पुरुषों का आत्महत्या करने का आँकड़ा कहीं अधिक है।

पुरुष परिवार में अधिक शोषण का शिकार होता है। कार्यक्षेत्र में उसकी योग्यता और क्षमता को अनदेखा किया जाता है। महिला सहकर्मियों द्वारा पुरुष प्रताड़ना के मामलों में लोगों की स्वभाविक हमदर्दी महिलाओं से होती है। कार्यालय, समाज, राजनीति धर्म इत्यादि में पुरुष केवल अपनी क्षमता तथा योग्यता के बल पर आगे आता है। उन स्थानों पर लाभ या कुछ बेहतर स्थान पाने के लिए महिलाएँ पुरुषों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करती हैं।

पुरुष की खिचाई प्रायरू दोस्तों और परिवारी जनों में पतिपत्नी के रिश्तों को लेकर होती है। यहाँ पुरुष बेचारा और सहानुभूति का का पात्र होता है। स्त्री हो या पुरुष दोनों की संवेदनाएँ, जरूरतें, दुख-सुख, शोषण और प्रताड़नाएँ एक-सी होती हैं। उनमें अन्तर बस यही होता है कि पुरुष का रेप नहीं होता। पुरुष को नंगा करके घुमाया नहीं जाता और उसका वेश्याकरण भी नहीं किया जाता। यदि किसी अवस्था में उसके साथ कुकर्म होता है तो वह उसकी शिकायत नहीं कर सकता। यह अलग बात है कि आज कुछ युवा जुगालो या स्ट्रिप्टी बनकर पैसा कमा रहे हैं।

विवाह के बाद माता, पिता और बीवी के बीच वह फुटबाल की तरह बन जाता है। परिवार की या माता-पिता की आर्थिक सहायता न कर पाने के कारण उनकी प्रताड़ना झेलता है और उनकी सहायता करने के कारण बीवी की प्रताड़ना झेलता है। दफ्तर में बॉस से अपमानित होता है। पुरुष की सहन शक्ति बहुत कमाल की है। वह न किसी से कुछ कह पाता है और न ही खुल कर रो पाता है। स्त्रियों की तरह त्रियाचरित्र भी नहीं दिखाता।

पुरुष का सहज आकर्षण, आपदाओं से भागने की प्रवृत्ति, मनमौजीपन, स्वतन्त्रता प्रियता और वहशीपन जैसी कमियाँ उसे निरंकुश और स्वछन्द बना देती हैं। परिणाम की चिन्ता किए बिना एक विवेकी व शक्तिशाली पुरुष अपराधी बन जाता है। उसका बॉस और उसकी पत्नी उसे मानसिक प्रताड़ना देते हैं।

पत्रिका न्यूज नेटवर्क ने कुछ समय पूर्व प्रकाशित किया था कि घरेलू हिंसा में पतियों के जुल्म की दास्तान सुर्खियाँ बटोरती है। वहीं श्यू एनश् के अध्ययन में पतियों पर हुए घरेलू हिंसा में होने वाले के आँकडों का खुलासा किया है। उसके अनुसार इजिप्ट में घरेलू हिंसा के तहत पुरुष सबसे अधिक पीटे जाते हैं। इस श्रेणी में दूसरे नम्बर पर यू. के. है और भारत तीसरे नम्बर पर है। यह अध्ययन सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रहा है। अध्ययन से पता चलता है कि पतियों को मारने के लिए पत्नियाँ बेलन, बेल्ट, जूते व किचन के अन्य सामानों का इस्तेमाल करती हैं।

विडम्बना यह कि पुरुष को यह सब अकेले ही सहन करना पड़ता है. किसी के समक्ष वह इसे प्रकट नहीं कर सकता। यदि किसी के सामने अपना दुखड़ा सुनाने का यत्न करेगा तो लोग उसका उपहास करेंगे। पुलिस भी उसकी बात को सीरियसली नहीं लेती। एक भुक्तभोगी ही यह व्यथा-कथा समझ सकता है। आजकल पुरुष भी पत्नी के अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने के लिए संगठन बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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