गौतम चौधरी
जिस काल में भारत में औरंगजेब का, फ्रांस में लुईस चैदह का शासन था, ठीक उसी समय स्पेन में चार्ल्स द्वितीय शासन कर रहे थे। मात्र तीन वर्ष की आयु में राजा बनने वाला चार्ल्स बचपन से हीं अनेक बीमारियों से पीड़ित और ग्रसित थे। इतिहासकार लिखते हैं – ‘‘चार्ल्स ऐसा राजा था जिसकी शुरुआत ही उसका अंत था, जिसके जन्म से ही लोग उसकी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे।’’ ऐसा क्यों हुआ? बड़ा सवाल है।
चार्ल्स, हब्सबर्ग कुल का अंतिम चिराग था, जिसके साथ ही वह कुल समाप्त हो गया। चार्ल्स की तमाम बीमारियां आनुवंशिक रूप से उत्पन्न हुई थी। सात सौ साल तक चले हब्सबर्ग कुल की एक खास बात यह थी कि उस कुनबे में कभी विवाह बाहर नहीं होते थे। अंदर रिश्तों में ही राजा, राजकुमार, राजकुमारियां आदि आपस में विवाह करते थे। चार्ल्स के पिता ने अपनी भतीजी से विवाह किया था। चार्ल्स की मां उसकी रिश्ते में बहन थी। इस कुल में अनेक लोग आनुवंशिक बीमारियों से ग्रसित थे, किंतु चार्ल्स ने इसकी बड़ी कीमत चुकाई।
इस कुल के मर्दों का एक खास तरह का जबड़ा होता था। चार्ल्स का जबड़ा कुछ ज्यादा बड़ा था। उसका ऊपरी जबड़ा निचले के तुलना में छोटा था। दोनों जबड़े आपस में मिलते नहीं थे। इसके कारण उसे भोजन चबाने में बड़ी दिकत होती थी। दोनों जबड़ा कभी मिलता ही नहीं था। नतीजा वो खाना ढंग से नहीं खा पाता था। वह मानसिक रूप से कमजोर भी था। चार्ल्स किशोरअवस्था तक ढंग से खड़ा भी नहीं हो पाता था। बचपन से लेकर मृत्यु तक वो हमेशा बीमार रहा। सब तरह की बीमारियों ने उसे हमेशा अपने चंगुल में दबोचे रखा। यही कारण था कि उसके तरफ से उसकी मां और बहन ने राजकाज संभालती थी।
कुल के लहू की शुद्धता बरकरार रखने के लिए चार्ल्स के दो विवाह हुए। दोनों कुनबे में ही लेकिन बच्चा नहीं हुआ। नामर्दी से लेके तमाम कारण बताये गये किंतु कन्फर्म कुछ नहीं। चार्ल्स के राज्य में स्पेन दो-एक बार दिवालिया भी हुआ। इस काल में स्पेन अमेरिका में खनिज स्वर्ण आदि के दोहन शोषण से पनपा।
सांस की बीमारी, तपेदिक, मानसिक रूप से कमजोर, हमेशा दस्त लगे रहने वाला चार्ल्स जब मरा तब उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बड़ी सनसनीखेज थी। जेनेटिक डिसऑर्डर में चार्ल्स का नाम सबसे बड़ा एग्जाम्पल है। गोत्र वाला सिस्टम भारतीय परंपरा का अद्वितीय वैज्ञानिक व्यवस्था है।
यह तो एक उदाहरण है। ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह साबित करने के लिए काफी है कि नजदीक के खून संबंधों में शादी अनुवांशिक बीमारी को आमंत्रित करता है। यही कारण है कि सनातनी हिन्दुओं में सगोत्री शादी पर प्रतिबंध लगाया गया है।
यह विधान केवल सनातनी हिन्दुओं में ही नहीं है। इस मान्यता को आप आदिवासी समाज में भी देख सकते हैं। मेजर ट्राइब हैं, उसमें तो इस नियम का कड़ाई से पालन किया जाता है। गोंड, संथाल, उरांव, हो, मुंडा के साथ ही अन्य आदिवासी समाज भी इस मान्यता में विश्वास करता है और सगोत्री शादी नहीं करता है।
गोत्र की परंपरा भारत में उत्पन्न लगभग सभी जातियों में देखने को मिलता है। कई जातियां प्रभावशाली जानवरों से अपने आपको जोड़ते हैं जो कई प्रभावशाली वृक्ष से अपनी परंपराओं को जोड़ कर रखे हुए हैं। इसी के आधार पर उनका गोत्र भी चिंहित है। मानव विज्ञान में इसकी व्यापक व्याख्या की गयी है। मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि आज जो सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति का स्वरूप है वह आदिवासी समाज की देन है। उसका आधार आदिवासी संस्कृति और धर्म चिंतन है।
बाहरी लोग चाहे जिस किसी कारण से भारत में आए उन्होंने अपना धर्म भी यहां स्थापित किया लेकिन मूल आदिवासी चिंतन को रिप्लेश नहीं कर पाए। गोत्र और शादी-ब्याह की परंपरा आदिवासी मूल परंपरा का ही अवशेष है। इसलिए यह विशुद्ध रूप से भारतीय चिंतन है और लाखों वर्षों का अनुभाव इसके साथ जुड़ा हुआ है।