डॉ. रमेश ठाकुर
पंजाबी भाषा को ऑस्ट्रेलियाई हुकूमत ने सरकारी मान्यता प्रदान कर दी है। अपने स्कूली पाठ्यक्रमों में भी जोड़ लिया है। जोड़ना इसलिए पड़ा क्योंकि पंजाबी भाषा वहां तेज़ी से बढ़ रही है। ऑस्ट्रेलिया की 13वीं आम भाषा पंजाबी जुबान बन गई है। पंजाबी बोलने-लिखने वालों की तादाद वहां दिनों-दिन बढ़ रही है। जनगणना-2021 के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में 2,39,000 लोग अपने घर में पंजाबी बोलते हैं। बीते एक दशक में इसमें 80 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पंजाबी भाषा ने अपने बढ़ते प्रभाव का डंका ऐसा बजाया है कि वहां की हुकूमत को अपने स्कूली पाठ्यक्रमों में पहले से निर्धारित सब्जेक्टों में पंजाबी को भी शामिल करने पर विवश होना पड़ा। जनगणना-2011 और 2021 में अगर तुलना करें, तो ऑस्ट्रेलिया में सिखों की आबादी अब पहले से डबल हो गई है। भाषाई आधार पर बंग्लादेश में जिस तरह से हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं, उसके मद्देनजर निश्चित रूप ऑस्ट्रेलिया सरकार का ये कदम ऐसे देशों को संबल देगा जहां-जहां भारतीयों की आबादी तेजी से बढ़ रही है।
नेपाल, श्रीलंका, फिजी, मॉरीशस, थाइलैंड, अमेरिका, इंग्लैंड के अलावा भी तमाम ऐसे कई मुल्क हैं जहां हिंदुस्तानी बेधड़क हिंदी-पंजाबी बोलते हैं और उनके देखादेखी दूसरे लोगों में भी हमारी भाषा बोलने, सीखने और समझने की ललक तेजी से बढ़ने लगी है। ऑस्ट्रेलिया के अलावा अब इस कतार में और भी कई ऐसे देश हैं जिनमें हिंदी-पंजाबी को अपने पाठ्यक्रम में शामिल कराने की मांग जोरों पर है। कनाड़ा में तो आधे से ज्यादा लोग पंजाबी ही बोलते हैं। निःसंदेह भाषाई जुबान का बढ़ता प्रभाव, बहती हवाओं व उड़ते परिंदों सरीखा होता है जिसे रोक पाना समाज क्या, सरकार के लिए भी मुश्किल होता है। फिलहाल, ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अपने सभी निजी व सरकारी स्कूलों में नई शिक्षा के तहत पाठ्यक्रमों में पंजाबी को पढ़ाने का फैसला इस सेशन से किया है। प्री-प्राइमरी से लेकर 12वीं तक के पाठ्यक्रमों में अब पंजाबी पढ़ाई जानी आरंभ हो गई है।
विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड ऐसे प्रांत हैं जहां पंजाबियों की बहुतायत है। इसके अलावा समूचे ऑस्ट्रेलिया में करीब दस फीसदी आबादी इन्हीं से सुशोभित है। ये समुदाय बीते कई वर्षों से वहां पंजाबी भाषा को स्कूली कक्षाओं में पढ़ाने की मांग करता आया है जिस पर सरकार ने पिछले वर्ष 2023-अगस्त में आबादी के लिहास से जांच-पड़ताल कराई, एक कमेटी बनाई और पिछली जनगणना के आधार पर आंकलन हुआ, जिसमें पाया कि ये भाषा वास्तव में अन्य भाषाओं के मुकाबले तेजी से बढ़ी है, इसलिए इसे सरकारी मान्यता दी जानी चाहिए। कमेटी की फाइनल रिपार्ट जैसे ही सरकार के पास पहुंची, तुरंत निर्णय हुआ और जोड़ दिया अपने राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों की कक्षाओं में।
आंकड़ों पर गौर करे तो बीते दो दशकों में इस महादीप में भारतीयों ने बेहताशा पलायन किया। भारत में ये मुद्दा गर्माया भी। तभी, पिछले वर्ष संसद के शीत सत्र में देश छोड़ने वालों का आंकड़ा केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तुत भी किया जिसमें ऑस्ट्रेलिया जाने वालों भारतीय पांचवें स्थान पर बताए गए। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया में पंजाबी जुबान तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा हिंदी भी ऑस्ट्रेलिया में बोली जाने वाली शीर्ष 10 भाषाओं में जगह बना चुकी है। हालांकि, हिंदी को अभी तक पाठ्यक्रमों में नहीं जोड़ा गया। हो सकता है देर-सबेर उसे भी जोड़ लिया लाए। सबसे अच्छी बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया में जाति-समुदाय और भाषा के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। जो भी जायज मांगे जनता की तरफ से उठती हैं उन पर सरकार गंभीरता से विचार करती है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई वैचारिक सरोकार नहीं है।)