आनंद कुमार अनंत
वैज्ञानिकों ने पूरी तरह यह सिद्ध कर दिया है कि दूध से कहीं अधिक लाभप्रद दही का सेवन होता है। दूध की चिकनाई कोलेस्ट्रोल बढ़ाती है, इसलिए हृदय रोगियों के लिए दही का नियमित सेवन जहां एक ओर अत्यंत लाभकारी माना जाता है वहीं दूसरी ओर दूध के सेवन से कोलेस्ट्रोल हृदय की ओर जाने वाली कोशिकाओं को अवरूद्ध करके हृदय रोगियों के लिए अनेक उपद्रव खड़ा कर देता है।
अमेरिका, कनाडा और डेनमार्क जैसे देशों में दही पर अनेक प्रयोग किये गये और परिणामों में यह पाया गया है कि दही हृदय रोगियों के लिए रामबाण के समान है। संग्रहणी जैसा असाध्य रोग भी दही के प्रयोग से ठीक किया जा सकता है। हमारी देश में अनादि काल से दही का प्रयोग हवन, यज्ञ, विवाह, मुंडन, जनेऊ आदि मांगलिक अवसरों पर भी किया जाता है।
विश्व के लगभग हर कोने में दही का सेवन अनेक रूपों में किया जाता है। अपने देश में लस्सी, रायता, कढ़ी, दही बड़े एवं चाट के रूप में दही का प्रयोग किया जाता है। रूस के जार्जिया एवं बुलगारिया आदि के लोग आज भी दही के नियमित सेवन के कारणों से एक सौ वर्ष से ज्यादा उम्र को पार कर जाते हैं। दूध की चिकनाई कोलेस्ट्रोल को बढ़ाती है जिसके कारण अधिक दूध पीने वालों को हृदय रोग होने की काफी संभावनाएं बनी रहती हैं।
दही के सम्बन्ध में शोध करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक डा. मान ने पाया कि दही का बैक्टीरिया एक ऐसे पदार्थ की रचना करता है जो लिवर (यकृत या जिगर) में कोलेस्ट्रोल का बनना रोक देता है फलतः दही के सेवन से शरीर में बनने वाली कोलेस्ट्रोल की रचना में गिरावट आ जाती है। यह ठीक है कि हृदय रोगों में तथा रक्तचाप बढ़ जाने पर दही के सेवन द्वारा रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम हो जाती है परन्तु इसके लिए अभी शोध जारी है कि कितना दही खाने से कितना कोलेस्ट्रोल कम होगा।
आयुर्वेद ग्रंथ चरक संहिता के अनुसार दही के सेवन के बारे में कुछ सावधानियां भी कही गयी हैं। उनका पालन न करने से अमृत तुुल्य दही का प्रभाव कम हो जाता है। दही अन्यान्य उपद्रवों को जन्म देने वाला भी होता है। फाइलेरिया के रोगियों को दही कदापि नहीं खाना चाहिए। बता दें कि दही को तांबे, पीतल, कांसे और अल्युमीनियम के बर्तनों में नहीं रखना चाहिए क्योंकि इन धातुओं के सम्पर्क से दही जहरीला हो जाता है। कांच, स्टील, मिट्टी के बर्तनों में ही दही को रखकर प्रयोग करना चाहिए।
त दही को रात में खाने से कफजनित रोग घेर लेते हैं। दही को अकेले नहीं खाना चाहिए तथा गर्म करके भी नहीं खाना चाहिए। इस नियम की अवहेलना करने से ज्वर, रक्तपित्त, कुष्ठ, पाण्डु, याददाश्त की कमी, बुद्धि की कमी, कामला जैसे रोग भी हो सकते हैं।
त दही को हमेशा ताजी अवस्था में प्रयोग कीजिए। अधिक दिनों के रखे खट्टे दही में पोषक तत्व कम हो जाते हैं जिससे वह हानिकारक हो जाता है। दही के सेवन के तुरन्त बाद संभोग नहीं करना चाहिए क्योंकि लैक्टिक एसिड के साथ वीर्य का संयोग होने पर गर्भ नहीं ठहर सकता, अतः मां बनने की इच्छुक महिलाएं दही खाकर संभोग से हमेशा दूर ही रहें तो अच्छा है।
दही में उपस्थित बैक्टीरिया आंतों में जमे गंदे, विषैले कीटाणुओं को नष्ट करके दूषित मल को बाहर कर देता है। नियमित दही सेवन करने वालों को अनिद्रा, अपच, कब्ज, दस्त एवं गैस की तकलीफें नहीं होती। भोजन के साथ दही लेने से भोजन शीघ्र पचता है एवं आंतों तथा आमाशय की गर्मी और खुश्की नष्ट होती है।
उदर रोगों में दही का सेवन भुने जीरे एवं सेंधा नमक के साथ करना चाहिए। शहद या चीनी के साथ मिलाकर दही को प्रातःकाल खाने से हृदय पुष्ट होता है, भूख बढ़ती है, रक्तशोधन करता है। दही हृदय एवं मस्तिक को शीतलता एवं शक्ति प्रदान करने वाला, स्निग्धकारी, यकृत की शक्ति बढ़ाने वाला, बलवान बनाने वाला, वायु-कफ नाशक होता है।
दही में समान भाग जैतून के तेल को मिलाकर अविकसित स्तनों पर प्रतिदिन 20 मिनट मलने पर स्तन उन्नत, कठोर व सुडौल (आकर्षक) बन जाते हैं। दही और मलाई को मिलाकर रोज रात में मुख पर मलने से झाई, कील, मुंहासे, दाग-धब्बे मिट जाते हैं। चेहरे पर इसे मलकर थोड़ी देर बाद धो लीजिए। सम्पूर्ण दिन मुख की कांति को यह बनाये रखता है।
बेसन में दही को मिलाकर शरीर पर उबटन लगाने से शरीर की बदबू दूर हो जाती है तथा सांवला रंग भी गोरा होने लगता है। ग्रीष्मकाल में दही की मलाई से सिर पर मालिश करने से अनिद्रा रोग दूर हो जाता है और अच्छी नींद आती है। तक्र अर्थात् छाछ का सेवन करने वाला कभी भी किसी रोग से ग्रसित नहीं होता। इसमें अपार रोग निरोधक शक्ति होती है। नित्य प्रति मट्ठे का सेवन करने वाला कभी भी तन-मन से बूढ़ा नहीं होता।
(स्वास्थ्य दर्पण)