गुलाम शाहिद
झारखंड में अब तक वक्फ बोर्ड, उर्दू अकादमी, मदरसा बोर्ड का गठन नहीं किया जा सका है। सरकार की कथनी और करनी में बहुत अंतर देखने को मिल रहा है। विकास से वर्तमान सरकार को कोई मतलब नहीं है। राज्य में लूट, खसोट चल रही है। सरकार को आम जनता की परेशानी और सुविधा उप्लब्ध कराने की चिंता बिल्कुल भी नहीं है। अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कोई भी बड़े निर्णय नहीं लिए गए हैं। महागठबंधन सरकार में सबसे बड़े दल के रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) है और राज्य के मुख्यमंत्री झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। झामुमो ने झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के घोषणा पत्र में बिहार के तर्ज पर राज्य में मदरसा बोर्ड, उर्दू अकादमी आदि के गठन की बात कही थी लेकिन अब सरकार के कार्यकाल पूरे होने वाले हैं परंतु अबतक अल्पसंख्यकों को कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यह भी वादा किया था कि राज्य में जब उनकी सरकार बनेगी तो वे सच्चर कमेटी की अनुशंसाओं को पूरी तरह लागू करेंगे लेकिन साडे तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस दिशा में सरकार की कोई पहल दिखाई नहीं दे रही है। उधर, पिछले करीब तीन साल से झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग और झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड का पुनगर्ठन नहीं हो पाने से दोनों निकाये निष्क्रिय हैं। सरकार के तीन साल पूरे होने के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 28 दिसंबर को अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत में माना कि अल्पसंख्यकों से जुड़े कई बोर्डों का गठन नहीं हो पाया है। 2008 में झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था। नियम के मुताबिक पांच साल बाद यानी 2013 में पुनर्गठन हो जाना चाहिए था, लेकिन डेढ़ साल की देरी से इसका 2014 में पुनर्गठन हुआ और पांच साल तक बोर्ड बिना अध्यक्ष के संचालित होता रहा। इसके बाद 2019 में बोर्ड का दूसरी बार पुनर्गठन होना था जो कि आज तक नहीं हो पाया और अब जबकि 2024 में चुनाव होना है, हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार कुछ भी करने को तैयार नहीं दिखती है। लगता है झामुमो और कांग्रेस को जनता की परेशानी और सुविधा उप्लब्ध कराने की चिंता बिल्कुल भी नहीं है। इससे तो यही लगता है कि वर्तमान सरकार में शामिल पार्टियों को केवल अल्पसंख्यकों का वोट चाहिए। दूसरी ओर प्रदेश में बड़ी तेजी से भ्रष्टाचार बढ़ा है। सरकार के कई नुमाइंदों पर गंभीर आरोप है। सरकार के मुखिया लगातार यह कहते हैं कि केन्द्र की भाजपा सरकार उसे परेशान कर रही है लेकिन आम जनता तो यह देख रही है कि पूर्ववर्ती रघुवर सरकार से की तुलना में यह और ज्यादा भ्रष्ट हो गयी है। यदि रघुवर सरकार की तुलना हेमंत सरकार से की जाए तो कई मामलों में यह सरकार उससे बदतर है। इन्हीं तमाम विषयों को लेकर आज कुछ अल्पसंख्यक नेताओं ने एक सेमिनार का भी आयोजन किया था। इस आयोजन में आम राय यह बनी है कि सरकार पर दबाव बनाया जाए कि वह अल्पसंख्यकों के हितों को लेकर मुखरा हो और संविधान में जो अधिकर अल्पसंख्यकों को प्राप्त है उसे अपलब्ध कराया जाए।
दावे के साथ यह कहा जा सकता है कि हेमंत सरकार अगर इस दिशा में पहल नहीं करती है तो अल्पसंख्यकों को मजबूर होना होगा और अपने नये विकल्प की तलाश करनी होगी। फिलहाल रामगढ़ का उपचुनाव इसका उदाहरण है। रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव में महागठबन्धन उमिदवार की हार से हेमंत सोरेन सरकार को सबक लेनी चाहिए। अगर वहां अल्पसंख्यक खासकर मुसलमान मुखर होकर महागठबंधन के पक्ष में खड़े होते तो कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवार नहीं हारता। इस हार को अल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। अल्पसंख्यक परेशान हैं और विकल्प ढुंढ रहे हैं। यदि हेमंत और महागठबंधन के नेता नहीं चेते तो आने वाले समय में बड़ी हानि झेलनी होगी। डपोरशंखी घोषणाओं और भाजपा का डर दिखाकर अब अल्पसंख्यकों का वोट नहीं लिया जा सकता है। अल्पसंख्यक नाराज हैं और उन्हें अपना संविधान सम्मत हक चाहिए।
(लेखक उर्दू दैनिक फारूखी तंजीम के स्थानीय संपादक हैं। इनके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)