कांवड़ के दौरान हुई लड़ाई को साम्प्रदायिक रंग देना कितना जायज?

कांवड़ के दौरान हुई लड़ाई को साम्प्रदायिक रंग देना कितना जायज?

अनुभा खान

अभी कांवर के दौरान हरिद्वार में एक घटना घटी। दरअसल, कांवड़ यात्रा के दौरान, एक कार चालक के साथ कावड़ियों का विवाद हो गया। कार चालक का नाम प्रताप सिंह है। इस मामले में कुछ लोगों ने हिन्दू और मुसलमान का एंगल ढुंढ निकाला, इसका कारण बस यह था कि प्रताप की गाड़ी में जो महिला बैठी थी वह मुसलमान थी। बस, कुछ लोगों को साम्प्रदायिकता फैलाने मौका मिल गया। यही नहीं इस मामले को लेकर देश को बदनाम करने वालें भी सक्रिय हो गए। बाकायदा इस मामले को लेकर बीडियो बनाया गया और उसे सोशल मीडिया पर वाॅयरल गया गया। वीडियो के माध्यम से एक संप्रदाय विशेष को बताया गया कि कांवड़ियों ने एक खास संप्रदाय की महिला के साथ अन्याय किया है। वास्तविकता तो यह है कि इस घटना में ऐसा कुछ भी नहीं है।

मामला तूल पकड़ने लगा। देश तोड़क शक्तियों को तो मसाला चाहिए था। सो मसाला मिल गया। मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। घटना की वीडियो वायरल होने लगी। भारत में बैठ देश विरोधियों ने देश के बाहर की शक्तियों के साथ मानो समझौता कर लिया हो। इस प्रकार की घटना को रंग दिया जाने लगा। यहां तक कहा जाने लगा कि यह देश अब मुसलमानों के रहने लायक नहीं रहा। गोया, भारत के मुसलमान खतरे में हैं। विदेशी पैसों से संचालित कुछ समाचार माध्यमों ने तो मानों नैरेटिव भी गढ़ना प्रारंभ कर दिया हो। घटना को हिन्दू बनाम मुस्लिम में बदल दिया गया। साम्प्रदायिक अभियान चलाने वाले कुछ भारे के लोग सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार करने लगे, जबकि यह मामला सामान्य आपराधिक घटना भर था। इससे न तो किसी हिन्दू को कुछ लेना था और न ही मुसलमान को।

इस घटना की सच्चाई यह है कि प्रताप सिंह और कांवड़ियों के बीच हरिद्वार के मंगलोर थाने के गुड़मंडी के पास झड़प हुई थी। प्रतपा सिंह एक मुस्लिम महिला के साथ कहीं जा रहे थे। उनकी गाड़ी ने किसी कांवड़िये को हल्की टक्कर मार दी। आरोप है कि उस टक्कर से कांवड़िये का गंगाजल बिखर गया। जिसके बाद झड़प तेज हो गया और कांवड़िये के समूह ने प्रताप की गाड़ी पलट दी। इस घटना में उत्तराखंड पुलिस ने तत्काल संज्ञान लिया और बल प्रयोग कर कांवड़िये से प्रताप की गाड़ी मुक्त कराई। प्रताप और उसकी महिला मित्र को मुकम्मल सुरक्षा प्रदान किया। यही नहीं इस मामले में भूपेंन्द्र और संदीप नाम के कांवड़िये पर प्राथमीकी दर्ज की गयी है। दोनों आरोपित के खिलाफ कार्रवाई कर उनका चलान भी कर दिया गया है। अब इसमें सरकार की भूमिका किसी संप्रदाय विशेष के खिलाफ कहां नजर आती है?

अभी हाल ही में विश्व मुस्लिम लीग के महासचिव और सऊदी सरकार के पूर्व कानून मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल ईसा, छह दिवसीय भारत दौरे पर आए हुए थे। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि ‘‘भारत ने हिन्दू बाहुल्य राष्ट्र होने के बाद भी धर्मनिरपेक्ष संविधान अपनाया।’’ उन्होंने भारत के इतिहास और विविधता की सराहना करते हुए कहा कि विभिन्न संस्कृतियों में संवाद स्थापित करना समय की मांग है। यह तो एक उदाहरण है। अभी हाल का दूसरा उदाहरण भी है। भारत ने पाकिस्तान के उस प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में समर्थन किया है जिसमें स्वीडन समेत कई यूरोपीय देशों में कथित रूप से कुरान की बेअदबी करने की निंदा की गयी थी। बावजूद इसके भारत की छवि को बदनाम करने और एक साम्रदायिक देश के रूप में प्रचारित करने की चाल चलने वाले बाज नहीं आ रहे हैं।

भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है। इसकी नीति में ही विश्व शांति छुपी है। यह देश केवल संविधान से पंथनिरपेक्ष नहीं है। इसकी मूल भावना में यह तत्व है। भारत ही विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहां 80 प्रतिशत हिन्दू आबादी होने के बाद भी देश का संविधान पंथनिरपेक्ष है। दुनिया में ऐसा उदाहरण और देखने को नहीं मिलता है। यही नहीं दुनिया का एक मात्र देश भारत है जहां मुसलमानों के सभी फिरके फलफूल रहे हैं। यहूदी और पारसी भी यहां अमन और चैन से निवास करते हैं। यहां सभी धर्मों के लोगों को समान रूप से अधिकार प्राप्त है। निश्चित रूप से भारत सदियों से मानवीय मूल्यों के संरक्षण करने वाला देश रहा है।

भारत एक धर्मनिर्पेक्ष देश है। यहां का संविधान हर किसी को समान अवसर प्रदान करता है। यहां न तो लिंग के आधार पर भेद किया जाता है और नहीं किसी जाति, भाषा, क्षेत्र या धर्म के आधार पर। संविधान में जो दर्ज है उस मूल्य के लिए हमारी सरकार हर वक्त प्रयत्नशील रहती है। इसका असर साफ तौर पर देखने को मिलता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा से लेकर अन्य क्षेत्रों में जनसंख्या प्रतिशत के आधार पर प्रतिभागी उतीर्ण हो रहे हैं। यही नहीं अवसर भी समान रूप से प्रदान किया जा रहा है। हमारी सरकार अल्पसंख्यकों के लिए कई योजना अलग से चला रही है। अल्पसंख्यकों को संरक्षित करने के लिए संविधान में कई विधान हैं। हमारी न्याय प्रणाली भी अपने मूल्यों के लिए जानी जाती है। अभी हाल ही में उत्तराखंड के पुरोला की घटना पर माननीय उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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