डॉ. रमेश ठाकुर
बाढ़-बारिश के रोद्र रूप ने मानव जीवन को डरा दिया है। हिंदुस्तान के विभिन्न हिस्सों में व्याप्त प्रलयकारी बाढ़ से अब तक अनुमानित 600 करोड़ रूपए के नुकसान का आकंलन हुआ है। बढ़ने की और संभावनाएं हैं, आर्थिक नुकसान के अलावा जानमाल की भी क्षति लगातार हो रही है। करीब 300 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। बाढ़ की विभीषिका से निपटने के लिए समाज आगे आया हुआ है लेकिन बाढ़ से मचे हाहाकार को देखकर ‘भारतीय आपदा प्रबंधन’ ने पूरी तरह से पत्ते डाले हुए हैं। उनकी कोशिशें और राहत-बचाव के प्रयास घटना स्थलों पर हांफ रहे हैं। भयंकर बाढ़ ने चारों ओर कहर बरपाया हुआ है। जमीन का भूभाग पानी-पानी हुआ पड़ा है। आपदा प्रबंधन से तो कहीं अच्छा कार्य इस वक्त स्थानीय प्रशासन जैसे एसडीएम, तहसीलदार, जिला कर्मचारियों के अलावा ग्राम प्रधान और राजनैतिक कार्यकर्ता करते दिख रहे हैं। सभी ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मोर्चा संभाला हुआ है। उनसे जो कुछ भी बन पड़ रहा है, ईमानदारी से कर रहे हैं। ऐसे में आपदा प्रबंधन अमला सफेद हाथी साबित बना हुआ है।
आपदा प्रबंधन की हमेशा की तरह इस बार भी मानसून की पहली बारिश ने पोल खोली है जबकि रैली सीजन का वक्त अभी शेष है। अभी आगे इससे भी ज्यादा बारिश और होने की संभावनाएं जताई जा रही हैं लेकिन फिलहाल इतनी ही बारिश में पूरे हिंदुस्तान को जलमग्न कर दिया है। आपदा प्रबंधन के पास तैयारियों का लंबा वक्त होता है। ईमानदारी से अपना दायित्व निभाएं तो ऐसी स्थितियों से काफी हद तक निपटा जा सके। विभागीय अधिकारी-कर्मचारी तैयारियां कितनी करते हैं और कितनी गंभीरता से करते हैं? उसकी तस्वीर बाढ़ आने पर दिखती हैं। भारतीय आपदा प्रबंधन को अच्छे से ज्ञात होता है कि हिंदुस्तान अपनी अनूठी भू-जलवायु स्थितियों के कारण प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है। बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप और भूस्खलन बार-बार होने वाली घटनाएं स्वाभाविक होती हैं। लगभग 60 फीसदी भू-भाग विभिन्न तीव्रता के भूकंपों के लिए है, 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र बाढ़ के लिए है, 8 फीसदी चक्रवातों के लिए और 68 प्रतिशत क्षेत्र सूखे के लिए अतिसंवेदनशील माना जाता है। ऐसे में इन जगहों पर पूर्व में की जाने वाले तैयारियां विकट समस्याओं में विफल क्यों होती हैं? इसका जवाब आपदा प्रबंधन को ऐसे वक्त देना चाहिए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मानसून के दो-ढाई महीने ऐसे होते हैं जो आपदा प्रबंधन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होते हैं। मानसून से पूर्व करीब 10 महीनों का प्रर्याप्त समय उनके पास तैयारियों का होता है। चाहे केंद्र सरकार हो, या राज्यों की हुकूमतें, प्रबंधन विभाग को धन से लेकर जरूरत की तमाम वस्तुएं मुहैया करवाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती ताकि बाढ़ आपदा से उनका आपदा प्रबंधन विंग अच्छे से निपट सके पर अफसोस, विभाग उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाता। मानसून की पहली ही बारिश में उनके तमाम कागजी प्रयासों की पोल खुल जाती है। स्थिति बिगड़ने पर बचाव-राहत कार्य में तो उनके लोग जुटते हैं पर सिंगल व्यक्ति की भी रक्षा अपने तकनीकों के जरिए नहीं कर पाते। आपदा प्रबंधन को सरकारें मुंह मांगा बजट आवंटित करती हैं लेकिन बावजूद इसके बाढ़ से प्रभावित लोगों को बचाने के लिए सेना, एयरफोर्स, सीआरपीफ की टुकड़ियां लगानी पड़ती हैं। सरकार के अन्य विभागों के कर्मचारियों को मोर्चा संभालना पड़ता है।
आपदा प्रबधंन को रिफार्म करने की दरकार है। विभाग को आधुनिक करके नई तकनीकों को अपनाना होगा। करीब 33 लाख वर्ग किमी क्षेत्र के भौगोलिक विस्तार एवं 140 से ज्यादा आबादी वाले भारत में शायद ही इस वक्त कोई ऐसा भाग बचा हो जहां बाढ़ या बारिश आपदा की स्थिति न उत्पन्न हुई हो। नेपाल ने बारिश का अपना सारा पानी भारत की ओर मोड़ दिया है जिससे भारत का तराई क्षेत्र और आसपास सटे जिले और गांव-कस्बे पानी से लबालब भरे हैं। उनसे निपटना जल आपदा प्रबंधन के बस का नहीं? पूर्वी बिहार में बहने वाली कोसी नदी उफान पर है। दर्जन भर जिलों को सड़क मार्ग पूरी तरह से कट गया है। बाढ़ पीड़ित लोग बमुश्किल सुरक्षित जगहों पर पनाह ले पा रहे हैं। तराई क्षेत्र के जिले पीलीभीत, लखीमपुर, बलरामपुर, बहराईच आदि जिलों के लोग जहां-तहां भाग रहे हैं। पीलीभीत में अभी हाल में बिछाया गया नया रेल ट्रैक भी पानी से बह गया। इस बार मानसून अच्छा है। तभी, तकरीबन समूचे हिंदुस्तान में इस वक्त मूसलाधार बर्षा हो रही है जिससे उत्पन्न स्थिति ने प्रलयकारी बाढ़ में तब्दील कर दिया है जिसने इंसानी जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।
बाढ़ से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की कमजोर तैयारियां निश्चित रूप से सोचने पर मजबूर करती हैं। असम, उत्तराखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, हिमालच, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे 9 राज्य ऐसे हैं जो ज्यादा प्रभावित हैं। इन समस्याओं से निपटने की पहली जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन पर होती है लेकिन ऐसे में वहां सिर्फ कमियां ही दिख रही हैं। उनमें आपसी समन्वय में कमी, अपर्याप्त फंडिंग का रोना, सीमित सार्वजनिक भागीदारी और अपर्याप्त संसाधनों की दुहाई दे रहे हैं। आपदा एक अचानक, विपत्ति पूर्ण घटना है, जो जीवन और संपत्ति को भारी क्षति, हानि, विनाश और तबाही में बदलती है। आपदाओं से होने वाला नुकसान अथाह है और प्रभावित क्षेत्र की मानसिक, सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति को भी प्रभावित करता है। आपदाएं ऐसी घटनाएं हैं जो बहुत अधिक क्षति, विनाश और मानवीय पीड़ा पहुंचाती हैं पर, ये आधुनिक विकसित भारत है जिसमें हम चांद पर भी पहुंच चुके हैं। पर, अफसोस इस बात का है कि बाढ़ जैसी समस्यायों से निपटने में हम अभी भी असक्षम हैं। केंद्रीय हुकूमत को गंभीरता इस मसले पर मनन-मंथन करना होगा ताकि, भविष्य में ऐसे समस्याओं से सफल मुकाबला किया जा सके।
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