आकार पटेल
कुछ ऐसी हैं जिन्हें मानवता ने ही मिलजुलकर पैदा की हैं और उन्हें मिलकर ही सुलझाना होगा। कुछ समस्याएं स्थानीय स्तर पर पैदा होती हैं। जलवायु परिवर्तन एक ऐसी ही समस्या है जिसका समाधान पूरी दुनिया को मिलकर करना है। अगर आधी दुनिया अपने उत्सर्जन को कम कर दे और दूसरी आधी दुनिया उसे बढ़ा दे, तो जलवायु परिवर्तन का समाधान नहीं होगा। पृथ्वी का वायुमंडल और महासागर मिलकर ही मानवता को बांधते हैं।
स्थानीय समस्याएं शक्ति या सत्ता के असंतुलन और परेशानी पैदा करने की इच्छा के कारण पैदा होती हैं। यूक्रेन ऐसा ही एक उदाहरण है और गाजा दूसरा। यह समझना मुश्किल है कि 2025 की दुनिया में रंगभेद, जातीय सफाया और वास्तव में नरसंहार क्यों स्वीकार्य हैं।
इसके अलावा ऐसी समस्याएं भी हैं जिन्हें शायद समस्या भी नहीं माना जाता लेकिन उनसे पैदा होने वाले ऐसे समाधान अभी भी दुनिया पर थोपे जा रहे हैं जो एक तरह की सजा हैं।। ऐसा ही एक समाधान जिससे हम निपट रहे हैं, वह है अमेरिका के व्यापार घाटे की समस्या और टैरिफ के माध्यम से इसे संतुलित करने की इच्छा। अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, ऐसा करना जरूरी है क्योंकि इससे अमेरिका के साथ नाइंसाफी हुई है और दूसरे देश उनके शब्दों में श्हमें लूट रहे हैंश्। क्या ट्रंप का ऐस कहना है सही है? अगर उन्होंने ऐसा किया है तो यह लूट ज्यादातर उनके लिए नुकसानदेह रही है।
विश्व बैंक के अनुसार दुनिया में प्रति व्यक्ति औसत जीडीपी 13,000 डॉलर है। अधिकांश देशों की जीडीपी इससे काफी कम है। इनमें भारत ($2500), इंडोनेशिया ($4800), ईरान ($4400), इराक ($5500), थाईलैंड ($7100) और वियतनाम ($4200) शामिल हैं। उप-सहारा अफ्रीका, जिसकी आबादी भारत से थोड़ी कम है, 1600 डॉलर पर है। हमारे साथी ब्रिक्स सदस्यों में, ब्राजील 10,200 डॉलर, रूस 13,800 डॉलर, दक्षिण अफ्रीका 6000 डॉलर और चीन 12,600 डॉलर पर है।
कुछ देशों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वैश्विक औसत से काफी अधिक है। यूरो क्षेत्र का औसत $45,000 है, जिसमें जर्मनी $54,000, फ्रांस $44,000 और इटली $39,000 है। ब्रिटेन भी फ्रांस जैसा ही है। अमेरिका में यह 82,000 डॉलर है, जिसका अर्थ है कि यह वैश्विक औसत से छह गुना अधिक है तथा भारत के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद से 30 गुना अधिक है।
अमेरिका अब तक का सबसे धनी बड़ा देश है। इसकी स्थिति ने डॉलर को दुनिया की आरक्षित मुद्रा बना दिया है, जिसका अर्थ है कि दुनिया भर में ज़्यादातर व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है, और यह दुनिया के टैलेंट के लिए सबसे ज्याका आकर्षक जगह है। ऐसे लोगों के आने से इसकी जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा मिला है और इसके कॉर्पाेरेट और एकेडमिक अभिजात वर्ग में वे लोग शामिल हैं जो विदेश में पैदा हुए थे। प्रतिभाओं की इस विशाल सेना के कारण इसका भविष्य सुनिश्चित है।
2004 से अमेरिका में प्रति व्यक्ति जीडीपी दोगुना हो गयी है, जो कि पहले से ही बहुत ऊंचे आधार को देखते हुए अद्भुत है। यूरोप के लिए स्थिति ऐसी नहीं रही है और यूरो क्षेत्र की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2004 से स्थिर है। बेशक अमेरिका में असमानता की समस्या है, जैसा कि अन्य जगहों पर भी है, लेकिन यह अमेरिका के लिए आंतरिक रूप से हल करने का मुद्दा है, और इसे उस दुनिया पर नहीं थोपा जाना चाहिए जो औसत अमेरिकी से बहुत गरीब है।
इस सप्ताहांत, डोनाल्ड ट्रम्प ने हमारे बारे (भारत के) में कहा किरू ष्भारत हम पर भारी शुल्क लगाता है। भारी शुल्क। आप भारत में कुछ भी नहीं बेच सकते… वैसे, वे सहमत हो गए हैं; वे अब अपने शुल्कों में कटौती करना चाहते हैं, क्योंकि कोई तो आखिरकार उनके किए की पोल खोल रहा है।ष् मुक्त व्यापार पर किसी की कोई भी राय हो, लेकिन भारत और उसकी सरकार को अपने लोगों के हितों की रक्षा करने और अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए दोषी ठहराना मुश्किल है। ऐसे देश में जहां एक अरब लोग अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं खरीद सकते और उन्हें अपनी सारी कमाई जीवनयापन पर खर्च करनी पड़ती है, विकसित और उन्नत देशों से वे क्या ही खरीदेंगे?
अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि अमेरिकी व्यापार घाटा देश के बजट घाटे का प्रतिबिंब है। अमेरिकी सरकार अपनी आय से ज़्यादा खर्च करती है और इसलिए उसे उधार लेना पड़ता है। 2024 में, यह घाटा $1.8 ट्रिलियन था। इस उधार का मतलब है कि अमेरिका में पूंजी का प्रवाह, डॉलर की मांग को बढ़ाना और इसे मज़बूत बनाए रखना। मज़बूत डॉलर की वजह से अमेरिका के लिए अपने उत्पादों का निर्यात करना मुश्किल हो जाता है और आयात करना आसान हो जाता है, जो व्यापार संतुलन में घाटे का कारण बनता है। अगर अमेरिका अपने बजट को संतुलित रखता और कम उधार लेता, तो इस श्ट्विन डेफिसिटश् थ्योरी के अनुसार, उसका व्यापार घाटा इतना बड़ा नहीं होता। ऐसा नहीं होने वाला है, खासकर तब जब ट्रंप टैक्स कटौतियों को जारी रखने जा रहे हैं जिससे उनकी सरकार की आय कम हो जाएगी।
मेक्सिको में प्रति व्यक्ति जीडीपी 13,790 डॉलर है, जिसका मतलब है कि यह वैश्विक औसत के आसपास है। कनाडा में यह 53,000 डॉलर है, जिसका मतलब है कि अमेरिका की तुलना में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 30,000 डॉलर कम है। यह साबित करना आसान नहीं है कि ट्रम्प का यह कहना कितना सही है कि ये देश अमेरिका के साथ व्यापार में उसे लूट रहे हैं। अगर ऐसा होता तो प्रति व्यक्ति जीडीपी के आंकड़े ऐसे नहीं होते। यह अटपटी बात है कि कोई यह साबित करने पर तुला हुआ है कि ये देश अमेरिका को लूट रहे हैं।
दुनिया भर के बाज़ारों पर नज़र डालें तो हम पाएंगे कि एक शक्तिशाली देश में एक व्यक्ति द्वारा जानबूझकर अशांति पैदा की गई है। कुछ समस्याओं का हमें डटकर सामना करना होगा और उन्हें एक साथ मिलकर हल करना होगा, और ऐसी बहुत सी समस्याएं हैं, और ये इतनी कठिन हैं कि हमें इन पर पूरा ध्यान देने ही पड़ेगा। इसके अलावा ऐसी समस्याएं भी हैं जो बेवजह हम पर थोपी जा रही हैं, जो कुछ हफ़्ते या महीने पहले तक हमारे सामने नहीं थीं, लेकिन अब दुनिया के एक बड़े हिस्से में व्याप्त हैं।
यह आलेख नवजीवन के वेब अंक से लिया गया है। आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।