गौतम चौधरी
संयुक्त राज्य अमेरिका में जब से जो बिडेन की सरकार आयी है अमेरिकी विदेशी नीति बेहद बुरी तरीके से यूटर्न ली है। दुनिया में इस्लामिक फंडामेंटलिजम के उभार और इस्लाम का पश्चिमी ताकतों पर हमलों के बाद अमेरिका की नीति में व्यापक बदलाव आया था और उस बदलाव के कारण अमेरिकी कूटनीति भारत के निकट दिख रही थी लेकिन जो बिडिन के राष्ट्रपति बनते अमेरिका की कूटनीति में व्यापक बदलाव देखने को मिल रहा है। उसका प्रभाव भारत पर भी पड़ने लगा है। अमेरिकी कूटनीति के अध्येताओं का मानना है कि अमेरिकी रणनीतिकार अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी रणनीति का हिस्सा नहीं बनाना चाहते हैं। वैसे भी अमेरिका को दुनिया में कोई ताकतवर राष्ट्राध्यक्ष नहीं चाहिए। उन्हें तो उनकी नीतियों को अपने देश में लागू करने वाला कमजोर नेतृत्व चाहिए। नरेन्द्र मोदी प्रशासन ने हाल के दिनों में कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जो अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है। इन फैसलों में रूस के साथ द्विपक्षीय व्यापार और ब्रिक्स देशों के संबंधों में गर्माहट बेहद महत्वपूर्ण है। इस प्रकार के फैसलों से अमेरिका अपने आप को आहत महसूस कर रहा है। इस पर से नरेन्द्र मोदी ने रूस-यूक्रेन गतिरोध में तटस्थ रहकर अमेरिका को और ज्यादा असहज कर दिया है। इसके कारण अमेरिका अपने तरीके से मोदी प्रशासन पर नकेल कसने की रणनीति को अंजाम देना प्रारंभ कर दिया है।
अमेरिका की कूटनीतिक बदलाव का भारत में दो तरह से प्रभाव पड़ रहा है। एक भारत के अंदर जो अमेरिकी लाॅबी है वह नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दो-दो हाथ करने के लिए सज्ज होने लगे हैं। यही नहीं किसी जमाने में अमेरिका ने जिस आतंकवादी संगठनों को भारत के खिलाफ खड़ा किया उसे फिर से वह सहयोग करना प्रारंभ कर दिया है। दूसरा अमेरिका अपने यहां फल-फूल रहे कथित मानवाधिकार संगठनों को भारत के खिलाफ प्रचार करने का मंच प्रदान करना प्रारंभ कर दिया है। ऐसे ही संगठनों में से एक भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम परिषद आईएएमसी है। इस संगठन का अमेरिका में बसने वाले भारतीय मुसलमानों के हित से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह संगठन केवल और केवल अमेरिकी हितों को ध्यान में रखकर अपनी गतिविधि को अंजाम देता है। यही नहीं इस संगठन के जानने वालों का तो यहां तक कहना है कि इस संगठन की नींव 2002 के गुजरात दंगे के बाद पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस यानी आईएसआई ने अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए के सहयोग से करवाई थी। इस संस्था का काम ही दुनिया में भारत के खिलाफ प्रचार करना है। विगत कई वर्षों तक यह संस्था बेहद कमजोर परी थी लेकिन विगत दो वर्षों से यह एकाएक सक्रिय हो गयी है। इसके पीछे के होतु को भी समझना चाहिए।
अभी बीते वर्ष यानी 2022 में इस संस्था की ओर से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गयी। भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम परिषद आईएएमसी ने अगस्त-सितंबर 2022 में एस्लिंग लिंच केली की एक ऑनलाइन रिपोर्ट ‘‘स्टेट ऑफ रिलिजेंस माइनॉरिटी इन इंडिया’’ को प्रकाशित किया। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में ईसाई एवं मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा और हिंसा की प्रवृत्ति बुरी तरह बढ़ती रही है। लेखक ने, अपने दावे को सही ठहराने के लिए भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में ईसाइयों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की चिंताओं के बीच कर्नाटक राज्य के धार्मिंतरण विरोधी कानून का उल्लेख किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे कानून बहुसंख्यक हिन्दू और अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के बीच तनाव को बढ़ाएगा। रिपोर्ट में आगे एक घटना का उल्लेख किया गया है। बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में 6 दलित ईसाई महिलाओं को जबरन धार्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जो एक हिन्दूवादी संगठन विश्व हिन्दू परिषद के के आरोप पर की गयी कार्रवाई है। दाखिल आरोप पत्र में बताया गया है कि वे महिलाएं एक जन्मदिन की पार्टी के दौरान लोगों को जबरन धार्मिंतरित कर रही थी। इसी तरह, लेखक ने यूनाइटेड क्रिश्चन फोरम यूसीएफ का हवाला देते हुए बताया है कि जनवरी से जुलाई 2022 तक ईसाइयों पर 300 से अधिक हमले हुए, जो कि तथ्यों की जांच किए बिना, झूठे, मनगढंत और अतिरंजित आख्यानों पर आधारित है।
इस सब को देखकर यह प्रतीत होता है कि आईएएमसी द्वारा फैलाई गयी यह धारणा, भारत को बदनाम करने की सूनियोजित चाल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को धूमिल करने का षडयंत्र है। इस संगठन ने भारत में ईसाइयों के उत्पीड़ण के बारे में अपने दवों का समर्थन करने के लिए अतिरंजित एवं अतिशयोक्तिक आकड़ों का उपयोग किया है। जहां तक कर्नाटक में धार्मंतरण विरोधी कानून की बात है तो यह कानून ईसाई मिशनरियों द्वारा प्रलोभन, जबर्दस्ती, अनुचित प्रभाव और धोखाधरी के माध्यम से बढ़ती धर्मांतरण गतिविधियों को रोकने के लिए शासन द्वारा अधिनियमित किया गया है। आईएएमसी ने अपनी रिपोर्ट में बिना किसी वैध आधार के सरकार की आलोचना की। संभवतः ईसाइयों को यह आशंका हो सकती है कि धर्मांतरण विरोधी कानून, विशेष रूप से उनके समुदाय को निशाना बनाने के लिए बनाया गया है लेकिन यह अवधारणा ही गलत है। सत्य तो यह है कि यह कानून जितना हिन्दुओं या मुसलमानों के हित में है उतना ही ईसाइयों के हित में भी है। यदि कोई हिन्दू नेता या संगठन किसी ईसाई को छल-बल से हिन्दू बनाने की कोशिश करेगा तो उसके खिलाफ भी वही कार्रवाई होगी जो ईसाई मिशनरियों के खिलाफ होगी। रिपोर्ट में इस तथ्य को जानबूझ कर छिपाया गया है कि पुलिस उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए हिन्दुओं सहित दोषियों के खिलाफ मामले दर्ज किए।
जिला आजमगढ़ में इसी तरह के एक और घटनाक्रम के संबंध में, पुलिस पीएस महाराजगंज ने धारा तीन और पांच 1 के तहत 6 ईसाइयों के खिलाफ गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 के अंतर्गत मामला दर्ज किया, जो न केवल धर्मांतरण गतिविधियों में शामिल पाए गए बल्कि हिन्दू धर्म एवं हिन्दू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे। एस्लिंच केली की रिपोर्ट, आईएएमसी के निरंतर भारत को दोषी ठहराने के इरादों पर सवालिया निशान लगाती है। आईएएमसी को अपने और पाकिस्तान के बीच कनेक्शन से छुटकारा पाने की जरूरत है और संगठन को वैश्विक स्वीकार्यता चाहिए तो कुछ विश्वसनीयता हासिल करनी होगी। ऐसे में संगठन को भारत को बदनाम करने से बचना चाहिए। इसके लगातार प्रयासों के बावजूद भी यह भारत की छवि को धूमिल नहीं कर पाया है। भारत, अपनी धर्मनिर्पेक्ष साख के लिए विश्व भर में जाना जाता है। भारत का अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय विशेष रूप से अल्पयंख्यकों के हितों को ध्यान में रखते हुए कई कल्याणकारी योजनाओं को अंजाम दे रहा है, जो भारत के धर्मनिर्पेक्ष एवं कल्याणकारी होने का सबूत देते हैं। यही नहीं यह आईएएमसी के द्वारा गढ़े गए अल्पसंख्यक विरोधी आख्यानों को पूरी तरह से खारिज भी करता है।