गौतम चौधरी
आगामी 2024 के संसदीय आम चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी अब नई रणनीति पर काम कर रही है। यदि सबकुछ ठीक रहा और भाजपा की रणनीति सफल रही, तो इंडिया गठबंधन में फूट तय है। यही नहीं आम चुनाव के बाद विपक्षी एकता के नाम पर एकत्र हुए दल अपने-अपने हितों के लिए भाजपा के साथ समझौता कर लेंगे। एक बार फिर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनेगी और उसके घटक दलों में तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और भारत राष्ट्र समिति शामिल होंगे। भाजपा के रणनीतिकार इस योजना पर लगातार काम कर रहे हैं। इसके लक्षण भी दिखने लगे हैं। हालांकि इन पार्टियों को यह भी डर है कि यदि वे भाजपा के साथ जाते हैं तो उनके साथ जो भाजपा विरोधी मुस्लिम या अल्पसंख्यकों का वोट है वह कट जाएगा। इसलिए चुनाव से पहले ये तमाम पार्टियां भाजपा के साथ समझौता नहीं करेगी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल भी नहीं होगी लेकिन चुनाव के बाद जैसे ही सरकार बनाने की बात होगी ये पार्टियां प्रत्यक्ष या फिर परोक्ष रूप से भाजपा का समर्थन कर देगी।
विगत दिनों भाजपा के एक केंद्रीय नेता ने इस संदर्भ में कुछ गंभीर बातें बताई। उन्होंने स्पष्ट तौर पर तो यह नहीं बताया कि उनकी पार्टी आम चुनाव बाद क्या रणनीति अपनाने बाली है लेकिन इशारों में ऐसा कुछ कहा जो राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हमारी पार्टी कांग्रेस की तरह अधिनायकवाद में विश्वास नहीं करती है। साथ ही क्षेत्रीय दलों के अहमियत को भी समझती है। देश के कई समाजवादी धरे वाले क्षेत्रीय दलों के साथ हमारा पुराना रिश्ता रहा है। उन्होंने बताया कि वैसे तो इस बार भी बहुमत हमारी ही होगी। राजनीति का कुछ कहा नहीं जा सकता है। विपरीत परिस्थिति बनी और सरकार बनाने के लिए यदि कुछ सांसद कम पड़ गए तो हम नए दोस्त भी बना सकते हैं। हालांकि उन्होंने नए दोस्तों में किसी दल का नाम नहीं लिया लेकिन बार-बार प्रवर्तन निदेशालय के समन जारी होने के बाद भी झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होना, लालू प्रसाद यादव परिवार पर केन्द्र सरकार की विशेष कृपा, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों में ढील और भारत राष्ट्र समिति प्रमुख एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव की बेटी कल्वाकुंतला कविता के दो खास सहयोगियों की गिरफ्तारी के बाद भी उसके उपर कोई कार्रवाई नहीं होना, यह साबित करता है कि भाजपा और इन क्षेत्रीय दलों के बीच कोई खास प्रकार की राजनीतिक खिचड़ी पक रही है।
बता दें कि इस बार भाजपा विशेष संकट में है। इस बार केवल विपक्षी दलों से ही भाजपा को चुनौती नहीं मिल रही है अपितु अपने संगठन परिवार के सहयोगी भी भाजपा से कन्नी काट रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच शीत युद्ध जारी है। इसके कई प्रमाण सामने आ चुके हैं। इसके कारण मोदी-शाह के संरक्षण और डाॅ. जगत प्रकाश नड्डा के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी लगातार दबाव महसूस कर रही है। इसका असर अभी हाल ही में संपन्न कुछ राज्य के चुनाव में भी देखने को मिला। खास कर कर्नाटक एवं हिमाचल प्रदेश की हार को भाजपा पचा नहीं पा रही है। अभी चल रहे पांच राज्यों के चुनाव में भी भाजपा कांटे की टक्कर में फंसी हुई है। तेलंगाना, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान का चुनाव 2024 के संसदीय आम चुनाव का लिटमसपत्र टेस्ट है। यदि इन राज्यों में भाजपा की स्थिति कमजोर हुई तो न केवल मोदी के नेतृत्व पर प्रश्न खड़ा होगा अपितु आगामी संसदीय चुनाव के लिए प्रधानमंत्री का चेहरे पर भी विवाद खड़ा होगा। ऐसी परिस्थिति में मोदी को खुद के बल पर आगामी चुनाव और सरकार दोनों को संभालना पड़ेगा।
जानकारी में रहे कि लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में भाजपा की बड़ी भूमिका थी। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी तो बिहार में कभी राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाली सरकार को अस्थिर नहीं किया गया। यही नहीं कई मौके पर प्रधानमंत्री वाजपेयी ने लालू यादव को सहयोग भी किया। नीतीश के बगावत के बाद भाजपा बिहार में लालू यादव पर लगातार डोरे डाल रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ तो झारखंड में भाजपा सरकार तक चला चुकी है। उसी प्रकार तृणमूल कांग्रेस कभी भाजपा की सहयोगी पार्टी रह चुकी है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के साथ भी भाजपा के मधुर संबंध रहे हैं।
इस प्रकार भाजपा अब अच्छी तरह समझ गयी है कि एकला चलो से काम चलने वाला नहीं है। यदि केन्द्र में फिर से सत्ता प्राप्त करना है तो इसके लिए सबसे पहले इंडिया गठबंधन में अविश्वास पैदा करना होगा। इस रणनीति में भाजपा कामयाब होती दिख रही है। समाजवादी पार्टी एवं जनता दल यूनाइटेड कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी पर उतर आए हैं। लोकसभा चुनाव आते-आते इंडिया गठबंधन का दरार और बढ़ेगा। भाजपा इसका पूरा फायदा उठाना चाहेगी। साथ ही रणनीति के तहत काम हुआ तो इंडिया गठबंधन के कई साथी नरेन्द्र मोदी की तिहरी ताजपोशी में सहयोगी भूमिका निभाएंगे।