अविनाश कुमार सिंह
भारतीय धर्म चिंतन में सभी प्रकार के मानवीय आयाम और मूल्यों पर विस्तार से मिमांसा प्रस्तुत की गयी है। वह मिमांसा सूत्रों के माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत होता रहा है। पहले तो श्रुति में था और उस श्रुतियों को जानने वाले अधिक संख्या में होते थे क्योंकि भारतीय चिंतन की यह परंपरा बन गयी थी। बाद के कालखंड में ज्ञान की इस परंपरा पर उपाध्यायों ने कब्जा कर लिया और ज्ञान अभिजात्य वर्ग की संपत्ति बन कर रह गयी। हमारे युग में ज्ञान लेखन में है। उस ज्ञान को कोई भी पढ़ और समझ सकता है लेकिन वह ज्ञान बिना अनुभव से संभव नहीं है। हमने भारतीय ज्ञान परंपरा में से कुछ ज्ञान को आपके समक्ष लाने की कोशिश की है। इसमें हमें झारखंड सरकार के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अविनाश कुमार सिंह जी का सहयोग प्राप्त हो रहा है। निम्नलिखित ज्ञान और उसकी व्याख्या उन्हीं के माध्यम से प्रस्तुत हो रही है। यह क्रमशः और लगातार जारी रहेगा।
तो आइए हम भारतीय ज्ञान परंपरा पर कुछ जानने और उसे समझने की कोशिश करते हैं: –
आशाप्रतीक्षे संगतं सूनृतां च इष्टापूर्ते पुत्रपशूंश्च सर्वान्।
एतद् वृङ्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे।।८।।
भावार्थ: जिसके घर में ब्राह्मण यानी विद्वजन अतिथि बिना भोजन किए निवास करता है, उस मंदबुद्धि मनुष्य की नाना प्रकार की आशा और प्रतीक्षा, उनकी पूर्ति से होने वाले सब प्रकार के सुख, सुंदर भाषण के फल एवं यज्ञ, दान आदि शुभ कर्मों के फल तथा समस्त पुत्र और पशु आदि वैभव, इन सबको वह नष्ट कर देता है।।८।।
तिस्रो रात्रीर्यदवात्सीर्गृहे मे अनश्नन् ब्रह्मन्नतिथिर्नमस्यः।
नमस्तेऽतु ब्रह्मन् स्वस्ति मेऽस्तु तस्मात् प्रति त्रीन् वरान् वृणीष्व।।९।।
भावार्थ: पत्नी के वचन सुनकर यमराज नचिकेता के पास गए और उसका यथोचित सत्कार कर बोलेरू हे ब्राह्मण! आप अतिथि हैं। आपको नमस्कार हो। हे ब्राह्मण! मेरा कल्याण हो। आपने जो तीन रात्रियों तक मेरे घर पर बिना भोजन किए निवास किया है, इसलिए (आप मुझसे) प्रत्येक रात्रि के बदले (एक-एक करके) तीन वरदान मांग लीजिए।।९।।
क्रमशः ……………………….
(मंत्रों की व्याख्या लेखक के द्वारा की गयी है। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)