गौतम चौधरी
भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर नेपाल और अफगानिस्तान तक की धरती गितत एक महीने से डोल रही है। यह आसन्न बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। इस डर से कराके की ठंड में भी नेपाल और अफगानिस्तान के लोग खुले आसमान के नीचे रात बिताने को अभिशप्त हैं। लगातार धरती के डोलने से हजारों लोगों की जान चली गयी है और लाखों परिवारों का आशियाना बिखड़ गया है। लेकिन हम युद्ध में व्यस्त हैं। दूरदर्शन की विभिन्न वाहिनियां क्रिकेट मैच की तरह इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध का लाइव दिखा रही है। दुनिया भर के देशों में कहीं फिलिस्तीन तो कहीं इजरायल के समर्थन में रैलियां निकाली जा रही है। मुस्लिम देश फिलिस्तीन के पक्ष में खड़े हो रहे हैं लेकिन अफगानिस्तान को कोई देखने वाला नहीं है। उलटे इस्लाम के नाम पर दुनिया भर में अपनी धाक जमाने की कोशिश करने वाला पाकिस्तान की सेना अपने देश में बसे लाखों अफगान शनार्थियों को खदेर कर स्वदेश लौटा रही है। ऐसी परिस्थिति में भारत और चीन ने दुनिया को रास्ता दिखाया है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने अफगानियों को नकद सहायता भेजी है। इधर भारत ने भी नेपाल को सहायता उपलब्ध कराई है। यही नहीं इन दोनों देशों ने युद्ध से तबाह हो रहे फिलिस्तीन को भी मानवीय सहायता उपलब्ध कराई है। इससे दुनिया के देशों को सीख लेनी चाहिए।
विगत एक महीने से पर्वतराज हिमालय अप्रत्याशित तरीके से संवेदनशील हैं। कभी अफगानिस्तान तो कभी नेपाल में रह-रह कर भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं। हालिया भूकंप के कारण जहां एक ओर अफगानिस्तान में चार हजार से ज्यादा लोगों की जान गयी है वहीं नेपाल में मरने वालों की संख्या 400 से अधिक बताई जा रही है। नेपाल और अफगानिस्तान दोनों पहारी मुल्क है और दोनों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। सर्दियां बढ़ने के साथ ही, अफगानिस्तान में आए भूकंप के बाद बेघर हुए लोगों में निराशा घर कर रही है। अफगानिस्तान में रात के वक्त ठंड बढ़ रही है। भूकंप के बाद तंबुओं वाला जो कैंप बनाया गया है, उसमें भीड़भाड़ की वजह से छूत की बीमारियां फैलने का खतरा भी बढ़ गया है। इन कैंपों में लोग मानवीय सहायता की आस लगाए बैठे हैं लेकिन पूरा इस्लामी जगत इजरायल और फिलिस्तीन के युद्ध पर धरना व प्रदर्शन में व्यस्त है। शेष दुनिया भी इस क्रूर तमाशे में शामिल है।
मानवीय सहायता से जुड़े मामलों पर काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय का कहना है कि अफगानिस्तान में अक्टूबर की शुरुआत में आए भूकंपों की वजह से, हेरात इलाके में 1,54,000 से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। स्थानीय मीडिया में छपी खबरें बताती हैं कि इस आपदा में 4,000 से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप के कारण घायलों को, जिनमें बहुत सी महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, उन्हें मेडिकल सहायता की जरूरत है। यहां बहुत सारे घर पूरी तरह तबाह हो गए हैं। आटे और पानी जैसी आवश्यकता की चीजों का यहां घोर अभाव है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के शुरुआती मूल्यांकन में पता चला कि इस आपदा में 40 से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्र ध्वस्त हो गए और इस क्षेत्र में लगातार हो रहे भूस्खलनों के कारण बाकियों के ढहने का संकट लगातार बना हुआ है, जिससे मरीजों की देखभाल मुश्किल हो रही है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अफगानिस्तान के 1,14,000 लोगों को तुरंत मेडिकल सहायता की जरूरत है। इसमें से 7,500 गर्भवती महिलाएं हैं, जिनमें से कई औरतों के परिवार वाले हादसे में मारे गए। भूकंप के वक्त बहुत सारी महिलाएं घर पर थीं, जबकि पुरुष खेतों में या जानवरों की देखभाल के लिए बाहर थे। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, भूकंप के प्रभावितों में 90 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं। यूनिसेफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान के हालात बिगड़ रहे हैं।
इधर देश पर अभी हाल ही में कब्जा करने वाले तालिबान लड़ाकों ने भूकंप से आयी तबाही को अपने हित में उपयोग करने के फिराक में हैं। इस मामले में कई विदेशी एजेंसियों ने दावा किया है कि भूकंप से प्रभावित लोगों की सहायता करने के लिए जो पैसे अफगानिस्तान भेजे जा रहे हैं उससे तालिबान सरकार बड़े पैमाने पर हथियार खरीदने की फिराक में है। इस पैसे से अफगानिस्तान ने ईरान और रूस से घातक हथियार मगाने की योजना बना रहा है। हालांकि, भूकंप की तबाही पर तालिबान के सदस्य और प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि तालिबान ने सहायता देने के लिए एक कमिशन गठित किया है, ताकि सभी को बराबरी से मदद दी जा सके। इस कमिशन की जिम्मेदारी है कि मदद बांटने में भ्रष्टाचार न हो और हर जरूरतमंद तक सहायता पहुंचे। अफगानिस्तान के भीतर और बाहर मदद में लगे कार्यकर्ताओं को शक है कि इस्लामिक कट्टरपंथी गुट तालिबान इस संकट का सामना करने में अक्षम है। देश से बाहर रहने वाले अफगान नागरिक अपने संबंधियों और दोस्तों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें डर है कि उनके द्वारा प्रदत्त मदद की राशि कहीं कट्टरपंथियों के हाथ न लग जाए, जिससे वे मानवीय सहायता के बदले हथियार खरीद लें और मानवता के समक्ष खतरा पैदा करें। तालिबान के राज में मानवाधिकार हनन के चलते न सिर्फ अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, बल्कि देश को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन की व्यवस्था, स्विफ्ट से भी बाहर कर दिया गया है। ऐसे में अफगानिस्तान में मानवता की सहायता करने वाला न तो पश्चिमी देश है और न ही इस्लाम के नाम पर दुनिया को एक करने वाले धनी इस्लामिक देश।
जो हाल अफगानिस्तान का है कमोबेस नेपाल का भी वही हाल है। नेपाल भी विगत कई दशकों से गृहयुद्ध और राजनीतिक अस्थिरता का शिकार है। विगत दिनों पश्चिमोत्तर नेपाल में भूकंप ने भारी तबाही मचाई। हालिया भूकंप के कारण नेपाल में कम से कम 400 लोगों की मौत हो गयी है। कई हजार परिवारों का आशियाना ध्वस्त हो गया है। नेपाल में भी मानवीय सहायता पहुंचाने वाली एजेंसियां सकते में है। यहां भ्रष्टाचार के कारण परेशानियां उत्पन्न हो रही है।
कुल मिलाकर हालिया भूकंप के कारण हजारों लोगों की मौत हो गयी और लाखों का आसियाना बिखड़ गया है बावजूद इसके दुनिया की मीडिया इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध पर अपनी नजर बनाए हुए है। इस क्षेत्र में मानवीय सहायता के नाम पर भारत और चीन ने अपना कदम बढ़ाया है जो न तो इस्लामिक देश है और मानवता की दुहाई के लिए अपनी पीठ थपथपाने वाला पश्चिमी जगत। जिस प्रकार जलवायु में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं और धरती अशांत हो रही है, वैसे में आने वाला समय मानवता के लिए घातक साबित होगा। इस प्रकार की प्राकृतिक आपदा से हमें निवटने के लिए आपसी वैमनस्यता को भुलाकर मानवता के कल्याण के लिए काम करने की जरूरत है।