भारत को डोनाल्ड ट्रम्प की दूसरी पारी से बहुत अपेक्षाएं

भारत को डोनाल्ड ट्रम्प की दूसरी पारी से बहुत अपेक्षाएं

एक शानदार जीत के बाद अब डोनाल्ड ट्रम्प आगामी 20 जनवरी 2025 को विश्व के सबसे शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करेंगे। अमेरिका सबसे शक्तिशाली देश होने के कारण दुनिया का चौधरी भी है, इसलिये सारे विश्व की नये राष्ट्रपति से कुछ अपेक्षाएं भी होंगी तो रूस और चीन जैसे कुछ देशों को उनसे आशंकाएं भी होनी स्वाभाविक ही है।

पिछले ट्रम्प प्रशासन (2017-2021) के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन कुल मिलाकर इसे भारत का मिलाजुला अनुभव कहा जा सकता है। उस समय ट्रम्प प्रशासन के दौरान भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों में कुछ अहम पहलुओं पर जोर दिया गया था। भारत को भी इस शक्तिशाली देश के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता से अवश्य ही कई अपेक्षाएं हैं। चूकि डोनाल्ड ट्रम्प से हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तिगत सम्बन्ध भी हैं इसलिये अगले ट्रम्प प्रशासन से हमारी कुछ ज्यादा ही अपेक्षाऐं होनी स्वाभाविक ही है।

पिछले ट्रम्प प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों में मजबूती आई थी। दोनों देशों ने विभिन्न रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए और सैन्य सहयोग बढ़ाया। ‘‘कम्बाइंड मिलिटरी एक्सरसाइज’’ और भारत को ‘‘मेजर डिफेंस पार्टनर’’ का दर्जा देने से रणनीतिक साझेदारी को प्रोत्साहन मिला। पिछले ट्रम्प प्रशासन (2017-2021) ने चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत को एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखा था। भारत और अमेरिका दोनों ही चीन के ’’आक्रामक’’ रवैये के खिलाफ मिलकर काम करने की ओर अग्रसर हुए।

भारत-चीन सीमा विवाद के दौरान अमेरिका ने भारत के पक्ष में कई बयान दिए, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को एक रणनीतिक दिशा मिली थी। अतः भारत और अमेरिका के बीच चीन के प्रभाव को चुनौती देने के लिए साझा रणनीतियाँ बनाने की उम्मीद की जा सकती है। ट्रम्प प्रशासन ने पहले भी भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार के रूप में देखा था। अगला ट्रम्प प्रशासन खास कर सीमा विवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा मामलों में भारत के प्रयासों का समर्थन कर सकता है। अब भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग में और विस्तार की संभावना है, जिससे भारत को अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों और तकनीकी सहयोग का लाभ मिल सकता है। इससे भारत की सैन्य ताकत बढ़ने के साथ-साथ दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी भी और मजबूत होगी।

पिछले ट्रम्प प्रशासन के दौरान व्यापार विवादों में वृद्धि हुई। अमेरिका ने भारत पर अपने व्यापार घाटे को कम करने के लिए दबाव डाला था। इसके अलावा ट्रम्प ने भारत की उच्च टैरिफ और ड्यूटी जैसे कुछ व्यापारिक निर्णयों को लेकर आलोचना की थी। हालांकि उस दौर में रक्षा उपकरणों की बिक्री जैसे कुछ महत्वपूर्ण समझौते भी हुए थे जो दोनों देशों के आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने में सहायक थे। अगला ट्रम्प प्रशासन इन मुद्दों को फिर से उठा सकता है। हालांकि यदि दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते मजबूत होते हैं, तो भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों में कुछ लचीलापन और बेहतर साझेदारी की उम्मीद हो सकती है। भारत को उम्मीद हो सकती है कि अगला ट्रम्प प्रशासन व्यापारिक फैसलों में ‘‘अमेरिका फर्स्ट’’ दृष्टिकोण अपनाएगा, लेकिन वह भारत से अपने व्यापार घाटे इस बार भारत को अमेरिका से मित्रतापूर्ण बीजा नीति की अपेक्षा रहेगी। पिछली बार ट्रम्प प्रशासन की वीजा नीति, विशेष रूप से एच-1बी वीजा को लेकर भारतीय पेशेवरों के लिए अनुकूल नहीं थी। ट्रम्प के प्रशासन ने प्रवासी नीति को सख्त किया था जिससे भारतीय प्रवासियों और पेशेवरों, खासकर एच-1बी वीजा धारकों के लिए कुछ चुनौतियां उत्पन्न हुईं। ट्रम्प की ‘‘अमेरिका फर्स्ट’’ नीति ने वीजा आवेदनों पर प्रतिबंध और अन्य नियमों में कड़ाई लाने का प्रयास किया था। अब भारत को उम्मीद हो सकती है कि ट्रम्प प्रशासन अपने ‘‘अमेरिका फर्स्ट’’ दृष्टिकोण के तहत प्रवासी नीति को सख्त रखे लेकिन यदि कोई सुधार होता है तो भारतीय पेशेवरों को वीजा प्रक्रिया में राहत मिले। भारतीयों के अमेरिका में योगदान को लेकर ट्रम्प प्रशासन की नीतियों में कुछ सकारात्मक संकेत भी हो सकते हैं, जैसे भारतीय समुदाय के लिए विशेष योजनाएं और सम्मान।

ट्रम्प प्रशासन ने 2017 में पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया था और यह निर्णय भारत सहित कई देशों के लिए चिंताजनक था। ट्रम्प के पुनः राष्ट्रपति बनने पर भारत को यह चिंता हो सकती है कि वह फिर से इस समझौते से बाहर हो सकता है, जिससे वैश्विक जलवायु प्रयासों को नुकसान पहुंचेगा। हालांकि, भारत की अपेक्षा हो सकती है कि ट्रम्प प्रशासन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी रणनीति को पुनः प्राथमिकता दे, भले ही पेरिस समझौते में शामिल होने की संभावना कम हो। पिछले ट्रम्प प्रशासन के दौरान, अमेरिका ने विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वित्तीय सहायता कम करने की कोशिश की थी। भारत, एक विकासशील देश होने के नाते, अपनी आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारियों का संतुलन बनाए रखने का प्रयास कर रहा है। ट्रम्प प्रशासन से भारत यह अपेक्षाएँ कर सकता है कि वह विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के वित्तीय और तकनीकी समर्थन में सहायता प्रदान करेगा, खासकर हरित ऊर्जा और स्वच्छ प्रौद्योगिकी में निवेश को बढ़ावा देने के मामले में।

ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच व्यक्तिगत संबंधों को काफी महत्व दिया गया। मोदी-ट्रम्प की मुलाकातों को भारत में एक सकारात्मक कदम माना गया और उस समय ट्रम्प ने मोदी की सार्वजनिक रूप से सराहना भी की, खासकर ‘‘हाउडी मोदी’’ और ‘‘नमस्ते ट्रम्प’’ जैसे आयोजनों हुये थे। हालांकि उस दौरान ट्रम्प की प्रशासनिक शैली और कूटनीति में एक निश्चित अस्थिरता और अप्रत्याशितता थी, फिर भी भारत और अमेरिका के बीच सहयोग और संबंधों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इसलिये भारत को उम्मीद हो सकती है कि ट्रम्प के अगले कार्यकाल में ये संबंध और मजबूत होंगे। दोनों नेताओं के बीच की दोस्ती भारत के लिए राजनीतिक और कूटनीतिक लाभकारी हो सकती है, जो व्यापार और रणनीतिक साझेदारी को प्रभावित कर सकती है। भारत एशिया में सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में ट्रम्प प्रशासन से अपनी वैश्विक भूमिका को और बढ़ाने की उम्मीद कर सकता है। विशेषकर भारतीय अर्थव्यवस्था, लोकतांत्रिक मूल्य और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर ट्रम्प प्रशासन से सहमति और समर्थन मिल सकता है।

(लेखक के विचार निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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