गौतम चौधरी
भारत, सांप्रदायिक एकीकरण और भाईचारे की भूमि है। जीवंत लोकतंत्र वाला एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां की सरकारें धार्मिक आधार पर अपने नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करती है। इसकी गंगा-जमुनी तहजीब ने हमेशा धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। भारतीय संविधान मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करने के अलावा अधिकारों और सुविधाओं की समानता की गारंटी देता है।
विगत 4 फरवरी, 2023 को कोझिकोड, केरल में सुन्नी स्टूडेंट्स फेडरेशन (SSF) के गोल्डन फिफ्टी कार्यक्रम में समस्त केरल जाम-ल्याथुल उलमा के सचिव और सुन्नियों के कांथापुरम गुट के नेता पोनमाला अब्दुल कादिर मुसलियार द्वारा इस पर प्रकाश डाला गया। सभा को संबोधित करते हुए, उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमानों को धार्मिक और साथ ही संगठनात्मक गतिविधियों में स्वतंत्रता का आनंद मिलता रहा है, जो किसी भी मुस्लिम या अरब देश में अनुभव नहीं किया जा सकता है। संयुक्त अरब अमीरात में अपने अनुभव को साझा करते हुए, मुसलियार ने कहा कि भारत में उनकी संगठनात्मक गतिविधियों के लिए कोई बाधा नहीं है लेकिन सऊदी अरब, कुवैत या बहरीन जैसे देशों में उनके संगठन की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित कर दिया गया। बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, मुस्लिम लीग केरल के अध्यक्ष, सदिककली शिहाब थंगल ने भारत में मुसलमानों द्वारा अनुभव की जाने वाली धार्मिक स्वतंत्रता के पीछे भारतीय संविधान की ताकत का जिक्र किया।
कार्यक्रम के दौरान, कांथापुरम ए पी अबुबकर मुसलियार (भारत के वर्तमान ग्रैंड मुफ्ती, जामिया मरकज के चांसलर और अखिल भारतीय सुन्नी जामियाथुल उलमा के महासचिव के रूप में भी जाने जाते हैं) ने युवाओं से देश में सकारात्मक माहौल बनाने के लिए काम करने को कहा। लोगों को देश की शांति और प्रगति के लिए धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने का सुझाव देते हुए, उन्होंने कहा कि सुन्नी आदर्श आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ है, क्योंकि आतंकवाद और उग्रवाद किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। इसके अलावा, केरल हज कमेटी के अध्यक्ष सी मुहम्मद फैजी ने मुस्लिम समुदाय से सरकार या किसी अन्य संगठन की आलोचना नहीं करने का आग्रह किया, जिसके लिए समुदाय स्वयं जिम्मेदार है। इस मामले में उन्होंने कहा कि जहां भी आवश्यक हो, खुद को सही करें।
उन्होंने कहा कि भारत में मुसलमान धार्मिक स्वतंत्रता के उत्तराधिकारी हैं। यहां हर मुसलमान बमबारी/गोलीबारी की आशंका के बिना नमाज/इबादत अदा करता है जैसा कि कई इस्लामिक देशों में होता है। चरमपंथियों और आतंकवादियों द्वारा नफरत और विभाजन का दुष्प्रचार मुसलमानों और उनके नेताओं के बीच एकता के कारण, अक्सर विफल हो जाता है। भारत के मुस्लिम और मुस्लिम संगठनों ने हमेशा अपने साथी नागरिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश के लिए संघर्ष किया। यह समन्वयवादी संस्कृति, सहिष्णुता और सौहार्द से जुड़े लोकतंत्र में भारतीय मुसलमानों के दृढ़ विश्वास को दर्शाता है। इस तरह की अंतर-धार्मिक एकता देश की नींव को मजबूत करने और उसके बाद के विकास के लिए एक सिद्ध आधार है।
इस बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इस प्रकार के प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं के बयान इस बात की गारंटी है कि भारत में जो भी असहिष्णुता की बात करता है वह राजनीति से ओतप्रोत है। लोकतंत्र में सरकारें बदलती रहती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। स्वतंत्रता के बाद से लेकर अबतक भारत में कई पार्टियों की सरकार आ चुकी है। हालांकि लंबे समय तक कांग्रेस ने शासन किया है। साम्प्रदायिक हिंसा और दंगे प्रत्येक पार्टियों की सरकारों में होती रही है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार में भी यह जारी है लेकिन मुसलमान और हिन्दुओं की समझ में परिपक्वता और लोकतंत्र की मजबूती ने यह साबित किया है कि साम्प्रदायिक हिंसा धार्मिक नहीं राजनीतिक है। इसे कम किया जा सकता है। हालांकि हिन्दू और मुसलमान में सैद्धांतिक मतभेद है। दोनों की मान्यता भिन्न है बावजूद इसके दोनों कुछ मूलभूत सिद्धांतों पर एकमत होते रहे हैं। भारत में लंबे समय तक सूफीवाद और भक्ति आन्दोलन का प्रभाव रहा। इस दौरान मुस्लिम राजाओं ने शासन किया लेकिन उनके कारिंदे हिन्दू हुआ करते थे। भारत का संविधान हर नागरिक को समान अधिकार प्रदान करता है। जब तक भारत का संविधान सुरक्षित है तब तक हमारा अधिकार सुरक्षित है। हिन्दू हो या मुसलमान दोनों के पंथ और धर्म भले अलग हों लेकिन संस्कृति तो दोनों की एक जैसी है। यह कभी नहीं बदल सकती है। इसलिए उक्त उलेमाओं ने साफ शब्दों में कहा भारत धार्मिक स्वतंत्रता की धरती है।