कलीमुल्ला खान
युवाओं में नशीली दवाओं की लत धार्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टि से खतरनाक है। यह एक गंभीर मामला है। नशीली दवाओं का दुरुपयोग न केवल मुस्लिम समुदाय के नैतिक ताने-बाने को नष्ट कर रहा है, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र पर दीर्घकालिक व हानिकारक प्रभाव भी डाल रहा है। नशीली दवाओं के सेवन में वृद्धि के कारण युवाओं में हिंसक प्रवृति का विकास हो रहा है। इसके कारण एकाएक असामाजिक गतिविधियों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यह लत एक व्यक्तिगत त्रासदी से कहीं अधिक है-यह एक सामूहिक संकट की तरह समाज को तहत-नहस कर रहा है। वैसे तो इस प्रकार प्रवृति देश के सभी समुदायों में देखने को मिल रहा है लेकिन इन दिनों मुस्लिम युवकों में यह बड़ी तेजी से फैल रहा है।
युवा मुसलमानों में नशीली दवाओं की लत न केवल उनके व्यक्तिगत भविष्य को खराब कर रहा है बल्कि उनके आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों को भी नष्ट कर रहा है। इस्लाम, एक धर्म के रूप में, नैतिक अखंडता को बनाए रखने और मन व आत्मा को धुंधला करने वाले पदार्थों से दूर रहने पर जोर देता है। जब कोई मुस्लिम युवा नशे की गिरफ्त में आ जाता है, तो वह खुद को धार्मिक शिक्षाओं से दूर कर लेता है। इसके कारण वह अनुशासन, आत्म-नियंत्रण और समाज के प्रति अपनी भूमिका के प्रति उदासीन हो जाता है। यह अलगाव न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक गिरावट का कारण बनता है, बल्कि उन्हें विनाशकारी व्यवहारों के प्रति भी संवेदनशील बना देता है। एक नशेड़ी अक्सर हिंसा का सहारा लेने के लिए प्रवृत्त होता है और उसे आसानी से असामाजिक गतिविधियों की ओर आकर्षित किया जा सकता है, जिससे वह उन लोगों के हाथों का उपकरण बन जाता है जो राष्ट्र और समाज को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।
कश्मीर और पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नशे की लत का बढ़ना विशेष रूप से चिंताजनक है। ये क्षेत्र सीमा पार से होने वाली हेराफेरी, राष्ट्र विरोधी और असामाजिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया है। एक विश्वस्त रिपोर्टों से पता चलता है कि पाकिस्तान हमारे युवाओं को भ्रष्ट करने के लिए ड्रग्स का इस्तेमाल कर रहा है। कश्मीर में, जहां राजनीतिक और सामाजिक स्थिति लगातार नाजुक रही है, ड्रग्स का प्रवाह संकट को और तीखा बना रहा है। नशे की लत में खोई एक पीढ़ी न केवल व्यक्तिगत बल्कि राष्ट्रीय क्षति भी है। युवाओं को शिक्षा, उत्पादकता और राष्ट्रवाद से दूर करके भारत को अस्थिर करने का यह जानबूझकर किया गया प्रयास खतरनाक व राष्ट्र विरोधी शक्तियों की रणनीति है। युवा, जिन्हें राष्ट्र के विकास में योगदान देना चाहिए, नशे और अपराध के दुष्चक्र में उलझते जा रहे हैं।
विश्वविद्यालय, जिन्हें कभी ज्ञान, तर्कसंगत वाद-विवाद और प्रगति का स्थान माना जाता था, अब वहां के वातावरण प्रदूषित होने लगे हैं। जैसे-जैसे ड्रग्स इन संस्थानों में घुसपैठ कर रहे हैं, राष्ट्र निर्माण, नवाचार और रचनात्मक बहस पर केंद्रित चर्चाओं की जगह नीरस, हिंसक माहौल ले रहा है। इसका एक उदाहरण भारत के कुछ विश्वविद्यालयों में हाल ही में हुई अशांति है, जहां ड्रग्स की मौजूदगी ने तनाव को बढ़ा दिया है। नशे की लत के शिकार हो रहे छात्रों की वजह से वे तर्कसंगत चर्चा करने और अपनी शिक्षा और समाज में सार्थक योगदान देने की क्षमता खो रहे हैं। यह सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय के लिए ही नुकसान नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए खतरनाक है।
मुस्लिम समाज अन्य समाजों अपेक्षा ज्यादा संगठित और अनुशासित है। अन्य समाजों की अपेक्षा यहां धार्मिक अनुशासन भी ज्यादा प्रभावशाली है। यही नहीं यहां आज भी मौलवियों की बात को बड़ी तसल्ली से सुनी जाती है। जुम्मे के खुतबे में इस विषय को उठाया जाना चाहिए। इसे एक आन्दोलन के रूप में लेना चाहिए। इस्लाम के अनुयायी होने के नाते मुसलमानों की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि वे खुद को आदर्श मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करें। इस्लामिक पवित्र ग्रंथों के अनुसार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैगम्बर मुहम्मद साहब ने अपनी शिक्षाओं में कई स्थानों पर जोर दिया कि किसी भी रूप में नशा व्यक्ति और समाज दोनों के लिए हानिकारक है। मुसलमानों के लिए यह आवश्यक है कि वे इस चेतावनी पर ध्यान दें और नशों के प्रति सावधान रहें।
यह महत्वपूर्ण है कि मुसलमान न केवल नशीली दवाओं के दुरुपयोग से दूर रहें बल्कि अपने समुदायों के भीतर इस खतरे के प्रसार का मुकाबला करने के लिए सक्रिय रूप से काम करें। ऐसा करके, वे अपने भविष्य की रक्षा कर सकते हैं और उन शत्रुतापूर्ण ताकतों की योजनाओं को विफल करने में योगदान दे सकते हैं जो अपने स्वयं के एजेंडे के लिए उनका औजार के रूप में उपयोग कर रहे हैं। नशीली दवाओं के खिलाफ लड़ाई केवल एक व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है – यह देश की अखंडता और भविष्य की लड़ाई है। आज मुस्लिम समुदाय के उपर इस बात की भी जिम्मेदाी आ गयी है कि वह केवल अपने समाज को ही नहीं अपितु दूसरी मान्यताओं के युवकों को भी इस गलत रास्ते से निकाले। मुसलमान इस काम के लिए अपने संगठित, व्यवस्थित और अनुशासित नेटवर्क का उपयोग कर सकते हैं। यह केवल भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए खतरनाक है। विश्व मानवता के लिए इसके खिलाफ जंग लड़ने की जरूरत है। यह ज़रूरी है कि मुसलमान नागरिक के रूप में और संयम, नैतिकता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले धर्म के अनुयायी के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी को स्वीकार करें। ऐसा करके, वे बाहरी ताकतों के दुर्भावनापूर्ण प्रयासों को विफल कर सकते हैं और सभी के लिए धार्मिकता का उदाहरण स्थापित कर सकते हैं।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)
बहुत ही प्रासंगिक लेख