उदासीन जनता, बेचैन भाजपा, यदि ऐसा ही रहा तो मोदी के परिवार का क्या होगा?

उदासीन जनता, बेचैन भाजपा, यदि ऐसा ही रहा तो मोदी के परिवार का क्या होगा?

विगत कुछ दिनों से संसदीय आम चुनाव 2024 का आकलन कर रहा हूं। वैसे 2014 और 2019 का भी आम चुनाव तसल्ली से देखा था। उन दोनों चुनाव में जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी आक्रामक तेबर के साथ चुनाव मैदान में डटी थी वह आक्रामकता इस बार देखने को नहीं मिल रही है। हो सकता है मेरा आकलन कमजोर हो लेकिन भाजपा के कई समर्थक इस चुनाव को लेकर आशंकित दिख रहे हैं। यदि भाजपा के नेताओं की बात करें तो उनमें इस चुनाव को लेकर घोर निराशा दिख रही है। 

विगत दो-तीन चुनाव में झारखंड प्रदेश भाजपा का खास प्रबंधन देखने वाले एक नेता ने तो यहां तक बताया कि पूरे प्रदेश से जो रिपोर्ट आ रही है वह भाजपा के हित में नहीं है। उन्होंने एक बात यह भी बताया कि चतरा लोकसभा सीट पर जिस राजधानी यादव ने वहां के प्रत्याशी कालीचरण सिंह का विरोध किया उसे ही वहां के कई मामलों का प्रभारी बना दिया गया है। इसका परिणाम यह है कि जिस काम की जिम्मेदारी राजधानी यादव को मिली है वह काम अभी तक प्रारंभ ही नहीं हो पाया है। मसलन, कालीचरण सिंह खुद की व्यवस्था नहीं किए होते तो उनका काम हो ही नहीं पाता और चुनाव हार भी सकते थे। प्रदेश की ओर से चतरा के प्रभारी राज्यसभा सांसद आदित्य साहू को बनाया गया है, जब इस संदर्भ में उन्हें बताया गया तो उन्होंने कहा कि मुख्यालय में गलत रिपोर्टिंग हुहै है। वहां किसी प्रकार की कोई समस्या ही नहीं है। कमोबेस सभी संसदीय क्षेत्र की यही स्थिति है। 

जानकार सूत्रों की मानें तो भाजपा अपनी ओर से सभी संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार सामग्री पहुंच चुकी है लेकिन उसे बांटने वाले नहीं मिल रहे हैं क्योंकि इस बार जो प्रदेश की चुनाव अभियान संचालन समिति का गठन किया गया है उसमें से अधिक अनुभवहीन और काम करने में सक्षम नहीं हैं। प्रदेश भाजपा के कुछ क्षद्मपंथी जिन्हें टिकट की आस थी और टिकट प्राप्त करने में असफल रहे वे महत्वपूर्ण दायित्व में हैं। रांची और चतरा उनके टागेट में हैं। उन्हें लगता है कि अगर इस बार प्रत्याशी चुनाव हार जाते हैं तो अगली बार उन्हें टिकट जरूर मिलेगा। इसलिए वे लगातार कन्नी काट रहे हैं। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि प्रदेश के संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह यहां के लिए नए हैं और उन्हें झारखंड के विषय में मुकम्मल जानकारी नहीं है। यही स्थिति प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी की भी है। सूत्रों से मिली खबर में बताया गया है कि विगत दिनों वाजपेयी ने चुनाव प्रबंधन को लेकर एक राज्यसभा सांसद को डांट भी पिलाई है। वैसे संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह ने प्रदेश कार्यालय मंत्री हेमंत दास को कई बार डांट चुके हैं लेकिन काम में किसी प्रकार का कोई फर्क देखने को नहीं मिल रहा है। इधर क्षेत्रीय संगठन मंत्री नागेन्द्र नाथ बिहार के चुनाव में व्यस्त हैं। 

प्रदेश का चुनाव मीडिया सेंटर शहर के नामी शमशान घाट हरमू स्थित मारू कंप्लेक्श में सिफ्ट कर दिया गया है। ज्योतिष के जानकार एक पंडित ने बताया कि शमशान घाट पर कोई शुभ काम नहीं किया जाता है। वैसे भी मारू कंप्लेक्श को नकारात्मक ऊर्जा वाला माना जाता है। यही कारण है कि कंप्लेक्श अभी भी अधूरा पड़ा है। इस मामले को लेकर भी मीडिया के एक खास वर्ग में चर्चा आम है। विगत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी ओर से आरोज्ञ भवन, बरियातू में समन्वय की एक बैठक बुलायी थी। उस बैठक में संघ के विविध क्षेत्र के प्रभारी और नेता मौजूद थे। वहां इस बात पर चर्चा हुई की आखिर वोटरों को कैसे निकाला जाए। इसी विषय में से एक विषय यह भी निकल कर सामने आया कि आखिर वोटरों को निकालने में पैसे भी खर्च होते हैं। वह कहां से प्राप्त होगा। इस बात पर संघ के एक अधिकारी ने पैसे उपलब्ध कराने की बात तो कही लेकिन नीचे के स्वयंसेवकों में अभी तक उत्साह का संचार नहीं दिख रहा है। 

आम तौर पर देखने को मिल रहा है कि भाजपा वोटर के अंदर उदासीनता व्याप्त है। इसका सीधा कारण भावात्मक जुड़ाव की समाप्ति बताया जा रहा है। वो तमाम मुददे जिन पर भाजपा वोटर जोश से भर जाया करता था, वो पार्श्व में जा चुके हैं। धारा 370 हट चुका है, राम मंदिर बन चुका है, ट्रिपल तलाक का मुद्दा भी लगभग समाप्त है। अब क्या? भाजपा वोटर किस बात पर सीना चौड़ा करें, अब किसके लिए बाहर निकले? उसके मतलब के सारे काम तो हो लिए।

जहां तक समान नागरिक संहिता और एक देश एक चुनाव की बात है तो यह मुद्दा भाजपा को अपने वोटरों से जोड़ने के लिए काफी नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले राम और धर्म की बात करते थे लेकिन अब भ्रष्टाचार और जाति पर उतर आए हैं। इसी से साबित हो रहा है कि भाजपा सभी मोर्चों पर कमजोर पड़ने लगी है। सिलिंडर, आवास, राशन ठीक है लेकिन कब तक इस पर वोट लिया जा सकता है? भाजपा के नेता अब मुद्दों को लेकर परेशान हैं। 

दूसरी बात कि भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी का कट्टर समर्थक भी इन दिनों अंदर से डगमगाया हुआ लग रहा है। वह भी जानता है कि काला धन, रोजगार, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि के मुद्दे पर भाजपा ने केवल बातें ही की है उस पर अमल अभी तक नहीं हो पाया है। क्षेत्र में जनता के सामने समर्थकों को ही जवाब देना होता है। बहस भी उन्हें ही करनी होती है। इस मामले में वे निरुत्तर हो जाते हैं। यही नहीं बाहर से आयातित नेता ने भी भाजपा के समर्थक और रूट वाले नेताओं को परेशान किया है। झारखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। झारखंड में भाजपा 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 13 उम्मीदवारों में से केवल लोहरदगा के उम्मीदवार समीर उरांव भाजपा के स्वाभाविक नेता हैं। शेष बाहर से आयातित हैं। कई नेता तो ऐसे हैं, जिन्होंने भाजपा और उनके नेताओं को गाली देकर पार्टी छोड़ गए थे। पलामू संसदीय क्षेत्र के उम्मीदवार वीडी राम पहले पुलिस अधिकारी थे और भाजपा विचारधारा से दूर-दूर का रिश्ता नहीं था। वही हाल निशिकांत दूबे का भी है। निशिकांत पहले अन्य विचारधारा की राजनीति में सक्रिय थे और बाद में भाजपा का दामन पकड़ा। इस बात को लेकर स्थानीय और रूट के नेता व समर्थक बेहद परेशान हैं। उन्हें यह लगने लगा है कि ऐसे में तो उनका नंबर कभी आएगा ही नहीं। यह भाजपा समर्थकों को भी दिख रहा है कि 70 हजार करोड़ का भ्रष्टाचारी अजीत पवार जैसे ही भाजपा की गोद में बैठा पाक साफ हो गया। इसके कई उदाहरण हैं। कई नेता तो आज दूसरी पार्टी से आए और आज ही उन्हें राज्यसभा का टिकट दे दिया गया।

ये तमाम ऐसी बातें हैं जिसके कारण भाजपा समर्थकों में अवशाद है। नेताओं में घनघोर निराशा है और कार्यकर्ता घर बैठ गए हैं। हालांकि प्रतिपक्ष में भी वह दम नहीं है लेकिन यह भाजपा के हित में तो कतई नहीं है। आज नहीं तो कल इसका प्रतिफल भाजपा को भुगतना ही पड़ेगा। 

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