ए. पी. भारती
विश्व विख्यात वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का जन्म सन 1809 में ब्रिटेन में हुआ था। उनको उनके ’विकासवाद के सिद्धांत‘ के कारण जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे ’सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट‘ कहा गया। उन्होंने जीव-जन्तुओं इत्यादि का लंबे समय तक गहन अध्ययन किया था। इसके लिए ’बीगल‘ नाम से एक समुद्री जहाज से तमाम स्थानों की यात्राएं की थीं।
प्रशांत महासागर के एक द्वीप ’गालापैगोस‘ पर वे लंबे समय तक जीवों का अध्ययन करते रहे। उन्होंने अपने अध्ययन में बताया कि मनुष्य, जानवर, जलचर, कीट-पतंगे, रेंगने वाले अर्थात हर तरह के जीव अपने विकासक्रम में लगातार संघर्ष करते हैं। कभी वे परिस्थिति से हारकर उससे समझौता करते हैं तो कभी प्रयासकर उस पर अधिकार करते हैं। तभी परिस्थिति और अपने शरीर के बीच संतुलन बनाकर जीवित रह पाते हैं। उन्होंने बताया कि जीवों को आज हम जिस रूप में देख रहे हैं, वे हजारों वर्ष पहले ऐसे नहीं थे। संघर्ष से उनका रूप और रंग तथा आकार बदला है। यह कोई दैवीय (ईश्वर की) करामात नहीं बल्कि क्रमिक विकास का नतीजा है।
’गालापैगोस‘ का अर्थ है ’विशाल कछुआ।‘ यह स्पेनी भाषा का शब्द है। गालापैगोस द्वीप पर अजब-अनोखे जीव पाए जाते हैं। यहां विश्व के सबसे भारी भरकम कछुए पाए जाते हैं जिनमें से कुछ का वजन डेढ़ क्विंटल तक पाया गया है। संभवतः इसी कारण इस द्वीप का नाम ’गालापैगोस‘ (भारी कछुआ) पड़ा।
यहां समुद्री शेर होते हैं तो ’मैरीन इगुआना‘ नामक छिपकली भी। यह छिपकली 40 फुट गहरे पानी में उतरकर अंदर आधा घंटे तक रह सकती है। यह देखने में भयानक मगर स्वभाव से शांत और भोली होती है।
गालापैगोस पर सुंदर चिड़िया ’फ्रिगेट‘ और पेंग्विन भी रहते है। ये सभी ठंडी प्रकृति के जीव हैं और यह द्वीप काफी ठंडा है क्योंकि द्वीप के चारों ओर विशाल समुद्र है। आने-जाने का थल मार्ग नहीं है। सिर्फ नाव या जहाज से पहुंचा जा सकता है। चाल्स डार्विन इस द्वीप पर लंबे समय तक यहां रहकर जीवों का सूक्ष्म अध्ययन करते रहे। इसलिए इसे ’डार्विन का द्वीप‘ भी कहते हैं। यहां कुछ जीव तो ऐसे बताए जाते हैं जो संसार में अन्यत्र कहीं नहीं मिलते।
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(उर्वशी)