साक्षत्कार/ अन्त्योदय ही हमारा मूलमंत्र है, इनके उत्थान के लिए लगातार प्रयास करता रहूंगा : कालीचरण सिंह

साक्षत्कार/ अन्त्योदय ही हमारा मूलमंत्र है, इनके उत्थान के लिए लगातार प्रयास करता रहूंगा : कालीचरण सिंह

सोमवार को ही योजना बनी। वकील साहब ने चतरा चलने को कहा। मैं भी खाली ही था, चतरा के लिए चल दिया। झारखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ट अधिवक्ता बिनोद सिंह की गाड़ी से ही हमलोग चतरा के लिए प्रस्थान किए। हमलोगों ने राजधानी रांची से शाम के करीब छः बजे से अपनी यात्रा प्रारंभ की। रांची से हजारीबाग का रास्ता तो व्यस्ता रहता है लेकिन हजारीबाग से चतरा जाने वाली सड़क बेहद सुनसान होती है। अंधेरी रात, जंगल का रास्ता, दूर-दूर तक कहीं कुछ भी नहीं। हालांकि रास्ता तो बहुत अच्छी बनी है लेकिन अभी भी इस रास्ते पर रात को एक्की-दुक्की गाड़ियां चलती है। जंगल में दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था। वकील साबह ने कहा, ‘‘अभी कुछ ही वर्ष पहले यह क्षेत्र माओवादी आतंकवाद से मुक्त हुआ है।’’ इस काम के लिए वकील साबह ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बड़ी भूमिका बतायी और कहा जब इस क्षेत्र में माओवादी आतंकवादियों का प्रभाव था तो किसी की हिम्मत नहीं होती थी छः बजे शाम के बाद चतरा की यात्रा करे।

खैर, हमलोग वही करीब साढ़े नौ बजे चतरा पहुंच गए। वकील साब ने कहा, सीधे काली बाबू के यहां ही चलना चाहिए। काली बाबू यानी काली चरण सिंह। काली चरण सिंह चतरा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी हैं। अब आप चतरा के सांसद हो गए। चतरा के उपायुक्त और आरक्षी अधीक्षक निवास के ठीक सामने कली बाबू का निवास है। हमलोग सीधे उनके आवास पर पहुंच गए। बाहर गाड़ी खड़ी कर जैसे ही काली बाबू के अहाते पहुंचा, लुंगी व गंजी पहने करीब 65 वर्ष के एक व्यक्ति ने हमलोगों का ठेठ मगहिया अंदाज में स्वागत किया। फिर वकील साबह ने परिचल कराते हुए कहा, यही काली बाबू हैं। काली बाबू हमलोगों को लेकर एक हॉल में दाखिल हुए। वहां अतीथियों को बैठने के लिए सोफा, कुर्सियां आदि लगी हुई थी। हालांकि सोफा और कुर्सियां बहुत व्यवस्थित नहीं थी और बेतरतीब तरीके से सजाया गया था लेकिन माहौल में सहजता साफ झलक रही थी। हॉल में एसी था और उपर बिजली का पंखा लगा हुआ था। एक खाट पर देहाती गद्दा लगा था। उसी पर काली बाबू बैठ गए। माहौल में कोई तामझाम नहीं, जैसे सहज काली बाबू वैसा ही सहज वहां का महौल। बैठते ही उत्तम किस्म की मिठाई आयी। काली बाबू ने जार देकर कहा पहले मिठाई खाइए। इसके बाद बात होगी। मैं कोई साक्षात्कार के मूड में भी नहीं था लेकिन उसी वक्त कोई स्थानीय पत्रकार उनसे सवाल-जबाव करने आ धमके। बात प्रारंभ हुई तो लंबी चली। सहजता के साथ काली बाबू ने उस पत्रकार के सारे प्रश्नों के जबाव दिए। मैंने तो महज कुछ सामान्य से प्रश्न ही पूछे जो गैर राजनीतिक थे लेकिन काली बाबू ने उसके भी मुकम्मल जबाव दिए।

मैं समझता हूं कि पत्रकारों के साथ हुई कुछ अनौपचारिक चर्चा को भी सकरात्मक तरीके से सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इस साक्षात्कार के लिए मैंने काली चरण सिंह से कोई स्वीकृति भी नहीं ली है लेकिन मुझे लगता है इसे हमारे पाठकों को जानना चाहिए। इसी चिंतन के तहत काली बाबू के साथ हुई इस आपसी वातचीत को मैं सार्वजनिक कर रहा हूं। मुझे लगता है हमारे सुधी पाठक इसकी सराहना करेंगे।

प्रश्न : काली बाबू आप राजनीति में कैसे आए?
उत्तर : मैंने अपने जीवन में कोई काम योजना बनाकर नहीं किया। मेरी उच्च शिक्षा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से हुई। मैं अति साधारण किसान परिवार का हूं। वैसे मैं आपको बता दूं कि मेरे पिता जी भी शिक्षक थे। जब पढ़ाई समाप्त की तो मैंने भी उच्च विद्यालय में शिक्षक की नौकरी मिल गयी। हालांकि वर्ष 1981 में मैंने दारोगा की बहाली के लिए प्रयास किया था लेकिन सारी अहर्ताएं एवं स्पर्धएं पास करने के बाद मौखिक परीक्षा में असफल हो गया। मुझे ऐसा लगा कि इसमे मेरे साथ कोई षड्यंत्र हुआ है। खैर दारोगा गनने का सपना पूरा नहीं हो पाया। हालांकि भगवान जो करते हैं वह ठीक ही करते हैं। अब देखिए मैं चतरा का सांसद बनने जा रहा हूं। हालांकि मैंने कई वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया लेकिन वहां भी मैं फिट नहीं हो पाया और मैंने त्यागपत्र देकर राजनीति करने की ठान ली। संघर्ष के दिन थे। लेकिन संघर्ष करता रहा।

प्रश्न : भाजपा के साथ कैसे जुड़े?
उत्तर : देखिए चूंकि मैं बीएचयू का छात्र रहा इसलिए भाजपा के प्रति मेरा रूझाने छात्र जीवन से ही था। भाजपा को मैं सबसे अच्छी पार्टी मानता हूं। हालांकि बाबूलाल जी के साथ प्रगाढ़ता ने मुझे लंबे समय तक भाजपा से अलग रहने के लिए बाध्य कर दिया लेकिन फिर मैं भाजपा का दामन थाम लिया। मैंने जब भाजपा छोड़ी थी तो राष्ट्रीय पदाधिकारी था। ऐसे ही मैं नेता नहीं बन गया। इसे पीछे लंबा संघर्ष और मेहनत है। मैं भारतीय जनता युवा मोर्चा प्रखंड अध्यक्ष से राजनीतिक प्रारंभ की। लंबा प्रशिक्षण हुआ और तब जाकर मेरा व्यक्तित्व आपलोगों के सामने है।

प्रश्न : पार्टी के लिए कभी कोई छोटा-मोटा काम ………… ?
उत्तर : बात बीच में ही रोक कर काली बाबू बोल पड़े, दरी बिछाने से लेकर दीबाल लेखन तक का काम किया। पार्टी ने जो भी दायित्व दिया उसे पूरी करने की कोशिश की।

प्रश्न : भारतीय जनता पार्टी क्यों छोड़ी?
उत्तर : ऐसा कुछ भी नहीं था। मैंने तो बाबूलाल जी के कारण भाजपा छोड़ी। और कोई कारण नहीं था।

प्रश्न : विरोधियों के लिए आप क्या कहेंगे?
उत्तर : देखिए मैं अपना संस्कार नहीं छोड़ सकता। इसलिए किसी के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। हालांकि कांग्रेस के प्रत्याशी ने मेरे खिलाफ व्यक्तिगत और बेहद नकारात्मक टिप्पणी की। मैं बस अपनी बात करूंगा। मेरी शिक्षा भी अच्छी ही हुई है। मैं त्रिपाठी जी से वरिष्ठ हूं। इसलिए उन्हें अपनी मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिए। उन्होंने मर्यादा को लांघने का काम किया। त्रिपाठी जी कई बार मेरे घर पर आए हैं और मैंने उनका सम्मान किया। हमारे लिए वे आज भी सम्माननीय हैं। मैं किसी का निरादन नहीं करता हूं लेकिन त्रिपाठी जी को व्यक्तिगत टिप्पणी से बचनी चाहिए थी। उन्हें भी राजनीति करनी है और मैं भी राजनीति में हूं। जीत और हार लगी रहती है लेकिन अपना संस्कार भी हमें नहीं छोड़ना चाहिए।

प्रश्न : जीत के बाद प्रथम प्रथमिकता?
उत्तर : हमारे नेता आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी बराबर अन्त्योदय की बात करते हैं। मैं जीवन प्रयंत इसके लिए काम करता रहूंगा। मेरे लिए यह कार्य सबसे उपर रहेगा। शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए मैं लगातार प्रयास करता रहूंगा।

प्रश्न : कोई संदेश?
उत्तर : संदेश बस इतना है कि मुझे पूरा विश्वास है कि मैं कल दो लाख से अधिक मतों से विजयी होउंगा। मुझे पूरे क्षेत्र के मतदाताओं ने अपना बहुमूल्य मत दिया है। मैं पूरे लोकसभा क्षेत्र का सांसद हूं। जिन्होंने मुझे वोट नहीं दिया वे भी हमारे अपने हैं। इसलिए मैं उनकी भी तल्लीनता के साथ सेवा करूंगा। मेरे घर पर कभी भी कोई भी आ सकता है। किसी के लिए हमारा द्वार खुला रहेगा। जीवन में मैंने संघर्ष किया है। आगे भी संघर्ष करता रहूंगा। मैं आपके माध्यम से अपनी जनता को और पूरे देश की जनता को यही संदेश देना चाहूंगा कि भाजपा उनके लिए और वे भाजपा के लिए।

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