समावेशी राष्ट्रवाद का प्रतीक इस्लामिया विवि महिलाओं को बना रहा  सशक्तिकरण

समावेशी राष्ट्रवाद का प्रतीक इस्लामिया विवि महिलाओं को बना रहा  सशक्तिकरण

गौतम चौधरी

दिल्ली स्थित जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय ने समावेशी राष्ट्रवाद के आधारभूत संरचना में अपनी भूमिका निभा रहा है। इन दिनों यह विश्वविद्यालय महिला सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन गया है। इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं। संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी, द्वारा हाल ही में घोषित लोकसेवा प्रतियोगिता के परिणामों का हाल ही में आंकड़े सामने आए हैं। इसे बदलाव के तौर पर देखा जाना चाहिए। आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष के पहले तीनों प्रतियोगी महिलाएं हैं। इस सम्मानित परीक्षा के आधार पर देश के अगले बैच की आईएएस, आईपीएस और अन्य प्रथम श्रेणी के अफसरों की नियुक्ति तय होगी। इन परिणामों को यह बात अनुठी बनाती है कि इस मुश्किल परीक्षाओं को पास करने वालों में से 23 प्रतियोगी नई दिल्ली स्थित ‘‘जामिया मिलिया इस्लामिया’’ विश्वविद्यरलय द्वारा चलाए जाने वाली आवासीये कोचिंग अकादमी, आरसीए में पढ़ रहे थे। प्रथम स्थान ग्रहण करने वाली श्रुति शर्मा भी जामिया मिलिया की इस अकादमी की छात्रा थी। इस अकादमी से सफल होने वाले अन्य प्रतियोगियों में अरीबा नोमान, मोहम्मद साकिब आलम, वंदना मीना, नाजिश उमर अंसारी, रामटेक सुधाकर, मोहम्मद कमरुद्दीन, तहसीन बानो द्विवेदी, प्रिया मीना तथा राजा रत्नम गोला इत्यादि शामिल हैं। जिन्होंने इस प्रतियोगिता में विभिन्न स्थान प्राप्त किए।

ये नतीजे जामिया मिलिया इस्लामिया की उस समर्पण भावना की ओर इशारा करता है, जो उसने अपने विद्यार्थियों के लिए किया है। अधिकारी कितने सफल होंगे यह तो उनकी कार्यशैली पर आधारित होगा लेकिन जामिया विवि ने अपने विद्यार्थियों के लिए जो किया वह एक समावेशी राष्ट्र निर्माण के लिए बेहद अहम है। इसे एक ईमानदार पहल कहा जाना चाहिए। जहां एक ओर पूरी दुनिया में भारत की छवि को खराब करने की कोशिश हो रही है वहीं भारत के अंदर का वास्तविक चित्र जामिया जैसे विवि में साफ-साफ देखने को मिल रहा है। यह विवि अपने निर्माण काल से ही देश के बौद्धिक आधारभूत निर्माण में अपनी क्षमता के अनुसार योगदान दे रहा है। विद्यार्थियों को ईमानदार और देश के प्रति वफादार बनाने की कोशिश में लगा है। जामिलया मिलिया इस्लामिया को एक ‘‘अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय’’ का दर्जा प्राप्त है, फिर भी इसकी संस्कृति, इसका ढ़ाचा, यहां के अध्यापक तथा इसका पाठ्यक्रम इस प्रकार से बनाए जाते हैं कि वे प्रत्येक पृष्ठाभूमि से आने वाले छात्रों को आत्मसात कर लेते हैं। जामिया एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, जो अपने छात्रो के लिए समग्र-संस्कृति व सर्वग्राह्य चिंतन को बढ़ावा देता है तथा उन्हें अपने यहां होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों व आयोजनों द्वारा एकजुट करता है। जामिया मिलिया इस्लामिया छात्रों के लिए सशक्तिकरण व इसको बढ़ावा देने वाले वातावरण के तौर पर भी जाना जाता है। इसकी वर्तमान उप-कुलपति प्रो. नजमा अख्तर हैं, जो इस पद को प्राप्त करने वाली यहां की पहली महिला है। इस विश्वविद्यालय से शिक्षित होने वाली कुछ लोकप्रिय महिलाओं में नामवर पत्रकार-बरखा दत्त, अरफा खानु शेरवानी तथा अंजना ओम कश्यप आदि हैं। इसके अलावा फिल्म निर्माता व निर्देशक किरण राय, अभिनेत्री मोनी राय तथा मशहूर मनोरंजक-निधि बिष्ट भी शामिल है। यह सूचि बताती है कि जामिया एक ठेठ अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं है बल्कि यह उन सबके लिए, खास तौर पर औरतों के लिए अपने दरवाजे खोलता है, जो यहां की सेवाएं लेने के लिए इच्छुक हैं। यह विश्वविद्यालय महिला सशक्तिकरण के अपने प्रयासों के प्रति भी संवेदनशील दिखता है। यह बात विश्वविद्यालय के दाखिला फार्म से भी झलकती है। जिसमें औरतों के लिए अलग से कोटे का प्रावधान किया हुआ है। इसी प्रकार का आरक्षण आरसीए में कोचिंग लेने वालों के लिए बनाए गए आवेदन पत्र में भी ऐसा देखने को मिलता है।

जामिया मिलिया इस्लामिया का जन्म असहयोग आन्दोलन के गर्भ से हुआ था। विश्वविद्यालय परिसर के अंदर अपनी रचनात्मकता व प्रयोगधर्मी शिक्षा के माध्यम से यहां के गैर शैक्षणिक कर्मचारी, विषयों के प्राध्यापक तथा विद्यार्थी ऐसी स्वतंत्रता भूमि तैयार करते हैं, जो सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए सार्थक है। अपने इस प्रयास के द्वारा मुसलमानों ने भी यहां स्वयं को अलग-थलग भारतीय न कहलाने के लिए दूसरों को बाध्य किया है, जो एक समावेशी राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग दे रहे हैं। आज इस संस्था के निर्माताओं का सपना पूरा होता दिख रहा है क्योंकि जामिया उन सभी के लिए अच्छी शिक्षा और अच्छे माहौल को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासरत है, जो अपने सपनो को पूरा करना चाहते हैं और बिना जाति, रंग या लिंग भेद के सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य को पाने की इच्छा रखते हैं।

जामिया मिलिया इस्लामिया में सीएए विरोधी प्रदर्शनों से संबंधित घटी हिंसक घटनाओं का अंधकार भरा अध्याय अब समाप्त हो चुका है। इसके कही निक्षेप भी नहीं दिखाई दे रहे हैं। हालांकि शैक्षणिक परिसर अध्ययन और अध्यापन का केन्द्र होता है लेकिन कुछ राजनीतिक सोच वाले इसे अपने उपयोग के लिए भी प्रयोग में लाते रहते हैं। किसी राष्ट्र को तोड़ने वाली शक्ति भी सबसे पहले शैक्षणिक परिसर को ही अपना निशाना बनाती है। यहां भी यह होता है लेकिन जामिया का अनुभवी परिसार अपने अतीत के प्रभाव तथा संस्थापकों की दूरदर्शिता को संजोए हुए भविष्य की प्रयोगधर्मी बुलंद इमारतों को चाकचैबंद करने में लगा हुआ है। यहां से बहती यमुना नदी में बहुत-सा पानी बह चुका है। संघ लोकसेवा आयोग जैसी सबसे कठिन परीक्षाओं में लगातार सकारात्मक परीक्षा परिणामों द्वारा जामिया ने यह साबित कर दिया है कि वह अब आगे बढ़ चुका है और अब उसका ध्यान औरतों व अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाना है। इसने यह भी दिखा दिया है कि अपने सकारात्मक प्रयासों के द्वारा, किसी भी कठिनाई से वह न केवल मुठभेड़ कर सकता है अपितु उस जंग को जीतने की भी ताकत रखता है। एक अल्पसंख्यक संस्थान होने के नाते जहां महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान है, वहीं कठोर परिश्रम करने वाले व योग्य अल्पसंख्यक लड़के और लड़कियां, इस विश्वविद्यालय में मौजूद ढ़ाचे का इस्तेमाल कर अपने भविष्य को सवार सकते हैं। यह उनके व देश के प्रकाशमयी व उन्नत भविष्य को सुनिश्चित करेगा। जैसा पिछली बातों से सीखा है कि प्रदर्शन करने की संस्कृति सिर्फ और सिर्फ तबाही ही लाती है।

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