इस्लामिक चिंतन के खिलाफ है धर्म के आधार पर पड़ोसियों की व्याख्या करना 

इस्लामिक चिंतन के खिलाफ है धर्म के आधार पर पड़ोसियों की व्याख्या करना 

हसन जमालपुरी

हाल की कुछ घटनाओं ने शांतिपूर्ण पड़ोस की अवधारणा ठेस पहुंचाया है। इन घटनाओं को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। दरअसल, आप जिसके पड़ोस में रहते हैं वहीं आपका सबसे पहला हितचिंतक होता है। आपका कोई संबंधी आपके आस-पास न हो लो पड़ोसी ही आपके सुख और दुख का साथी बनता है। इसलिए कहा गया है कि कुछ भी बदल लो लेकिन पड़ोसी नहीं बदल सकते। साथ ही मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य की प्रगति में सामूहिकता का बड़ा योगदान है। जाहिर-सी बात है कि अगर पड़ोसी शुभचिंतक नहीं है तो हम अपने आप को किसी कीमत पर सुरक्षित नहीं समझ सकते हैं। इस मामले पर विचार इसलिए भी जरूरी हो गया है कि हाल की कुछ छिटपुट घटनाओं ने पूर्व की इस अवधारणा में गतिरोध उत्पन्न करने की कोशिश की है। इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, मुसलमानों को अपने पड़ोसियों के साथ, उनके धर्म की परवाह किए बिना, दया, करुणा और सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए। इस्लाम यह भी कहता है कि परोड़ में निवास करने वालों के प्रति हर वक्त सहयोगी भूमिका निभानी चाहिए। यह अवधारणा पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं से उत्पन्न हुई है। उन्होंने अपनी शिक्षाओं में पड़ोसियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने जबर्दस्त तरीके से जोड़ दिया है। 

सच पूछिए तो इस्लाम में पड़ोस की अवधारणा व्यापक है। यह न केवल अगली पंक्ति में बैठे लोगों या समाज का नेतृत्व करने वालों के लिए है अपितु पूरे समुदाय के लिए जरूरी है। इस्लाम की अवधारणा के अनुसार एक मुसलमान को धार्मिक आदेश होता है कि वह अपने पड़ोस में रहने वाले परिवार के साथ हर वक्त बढ़िया व्यवहार करे। इस्लामी संस्कृति में, विशेष अवसरों पर पड़ोसियों के साथ भोजन और उपहार बांटने तथा उत्सव या शोक के समय उनसे मिलने की प्रथा है। इस्लाम के आधारभूत ग्रंथ, पवित्र कुरान एवं हदीस दोनों में इस बात की चर्चा की गयी है कि इमान वाले अपने धर्म व जातीयता की परवाह किए बिना पड़ोसियों के साथ दया और सम्मान का व्यवहार करें। इस्लाम का सामाजिक पहलू सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है और मुसलमानों को उन समुदायों के भीतर मजबूत बंधन बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिनमें वे रहते हैं।  यह जानना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है कि इस्लाम में, पड़ोसी का महत्व केवल पारस्परिक संबंधों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज तक फैला हुआ है। मुसलमानों को अपने समुदायों की बेहतरी के लिए काम करने और हमेशा सामाजिक कल्याण के लिए प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

इस्लाम के पवित्र ग्रंथों में बताया गया है कि ‘‘माता-पिता, रिश्तेदारों, अनाथों, जरूरतमंदों, निकट पड़ोसी, दूर के पड़ोसी, अपने साथी, यात्रियों और उन लोगों के लिए अच्छा करो जो तुम्हारे दाहिने हाथ के पास हैं। मुसलमान अपने पड़ोसियों के साथ बिना दखलअंदाजी के उन पर नजर रखकर और उनके पास जाकर या बीमार होने या जरूरत पड़ने पर खाना छोड़ कर अपने रिश्तों को बेहतर बना सकते हैं। इस प्रथा का उदाहरण पैगंबर के एक यहूदी पड़ोसी के बेटे की घटना से लिया जा सकता है। दरअसल, वह उनकी सेवा करता था, एक बार अस्वस्थ हो गया, तो साहब खुद उससे मिलने पहुंच गए। 

इसके अतिरिक्त, अपने पड़ोसियों के अधिकारों की उपेक्षा करना इस्लाम में एक गंभीर पाप माना जाता है। इस्लाम पड़ोसियों के प्रति मददगार होने के साथ-साथ दया, करुणा और सम्मान से व्यवहार करने पर जोर देता है। पैगंबर ने सुरक्षा की भावना और पड़ोसियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण विचार पर जोर दिया है। उन्होंने अपने संदेशों में यहां तक कहा है कि सभी को शांति और सुरक्षा का अधिकार है, इसलिए इसे किसी के द्वारा परेशान नहीं किया जाना चाहिए। इस्लामिक शिक्षा के कई सारभौम तत्वों में एक तत्व यह भी है कि यदि कोई इमान वाला अपने पड़ोसियों की सुरक्षा को खतरे में डालता है तो वह पक्का मुसलमान नहीं हो सकता है। कुरान एक मुसलमान को अपने जीवन और संपत्ति सहित अपने पड़ोसी का संरक्षक बनने का आदेश देता है। इस्लाम अपने अनुयायियों को यह भी आदेश देता है कि किसी को उनकी अनुपस्थिति में उनकी तलाश करने और उनकी भलाई के लिए पूछने की आज्ञा दी जाती है। किसी को उनकी खामियों या दोषों का पीछा किए बिना निस्वार्थ रूप से जरूरत के समय उनका समर्थन करना चाहिए। वास्तव में, कुरान एक मुसलमान को विशेष रूप से आदेश देता है कि यदि उसे अपने पड़ोसी में कोई दोष या कमियां नजर आती हैं, तो उसे उन्हें छुपाना चाहिए और हर वक्त उसके साथ खड़े रहना चाहिए। हालांकि गैरकानूनी और गैरजरूरी कामों मे ंतो ऐसा नहीं हो सकता लेकिन जायज काम में पड़ोसियों के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाने का आदेश इस्लामिक शिक्षा में जरूर दी जाती है। 

आज मुट्ठी भर लोग अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए भारत को आंतरिक रूप से अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में वे देश की सद्भावना के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पड़ोसियों के आपस के सद्भाव व संबंधों को बिगाड़ने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए ऐसी शिक्षाओं को पुनर्जीवित करने की जरूरत है जो इस्लाम हमें सिखाता है।  उपर्युक्त कर्तव्यों के संयुक्त अभ्यास के लिए एक उच्च आवश्यकता है ताकि असहिष्णुता को जड़ से खत्म किया जा सके और साझी संस्कृति पर आंच न आवे। भारत के विभिन्न धार्मिक और पांथिक समूहों के बीच सौहार्द बना रहे। वास्तव में सरकार को ऐसे मोहल्लों को बढ़ावा देना चाहिए जहां धर्मनिरपेक्षता का भाव हो। आज सामाजिक संतुलन की जरूरत आ पड़ी है। हमें आज के संदर्भ में सामुदायिक जीवन को अराजनीतिक और पड़ोसी जीवन की प्रथाओं को सामान्य बनाने की अधिक आवश्यकता है। अंत में एक बात और बता दें पड़ोसियों के प्रति बढ़िया व्यवहार के कारण ही इस्लाम पूरी दुनिया में फैला है। यदि तलवार के बदौलत फैलता तो इसका अस्तित्व कब का मिट गया होता। 

(लेखक इस्लामिक मामले के चिंतक हैं। इनके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना देना नहीं है।)

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