राजेश कुमार पासी
चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर फिल्म अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत पर एक सीआईएसएफ महिला कांस्टेबल ने हमला किया है। कंगना के अनुसार उसने उन्हें थप्पड़ मारा और उनके साथ गाली गलौच किया। महिला कांस्टेबल के खिलाफ पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज कर ली गई है और सीआईएसएफ के द्वारा उसके खिलाफ जांच शुरू कर दी गई है। इस मामले पर राजनीति शुरू हो गई है। महिला कांस्टेबल जिसका नाम कुलविंदर कौर है, एक किसान परिवार से संबंध रखती है। इसलिए विपक्ष इस मामले में कूद पड़ा है हालांकि बड़े नेताओं द्वारा इस मामले पर बयान देने से बचा जा रहा है।
सोशल मीडिया में बैठे विपक्ष के समर्थक कुलविंदर कौर के पक्ष में खड़े हो गए हैं। उसे पंजाब की शेरनी और असली झांसी की रानी बताया जा रहा है। पंजाब में बड़े पैमाने पर कुलविंदर कौर के पक्ष में लोग निकल आए हैं। कई लोगों ने उसके लिए नकद इनाम की घोषणा की है और कई तरीकों से मदद करने का दावा सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है। किसान संगठनों ने उसकी मां को उसके घर जाकर सम्मानित किया है। उसके कारनामे में उन्हें कुछ भी गलत नजर नहीं आ रहा है। कंगना रनौत ने किसान आंदोलन के दौरान किसानों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की थी, जिसको लेकर आज भी किसानों के मन में गुस्सा है, इसलिए किसानों द्वारा कुलविंदर कौर का समर्थन करना समझ आता है लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में अन्य लोगों द्वारा उसका समर्थन किया जाना समझ से परे है।
कोई भी मामले की गंभीरता को समझने को तैयार नहीं है क्योंकि मोदी के अंधे विरोध ने लोगों के दिमाग को कुंद कर दिया है। ये बात किसी को समझ नहीं आ रही है कि इस घटना की आरोपी भारत के अर्ध सैनिक बल सीआईएसएफ की एक जिम्मेदार महिला कांस्टेबल है। अर्ध सैनिक बलों को भारत में बहुत सम्मान प्राप्त है क्योंकि इसके कर्मचारी और अधिकारी धर्म, जाति, समुदाय और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर देश की सेवा करते हैं। देश में इनका सम्मान भारतीय सेना से किसी भी प्रकार से कम नहीं है। वो अगर एक साधारण महिला होती तो इस घटना को जनता का गुस्सा मानकर आगे बढ़ा जा सकता था और कंगना को अपने बयानों पर अंकुश रखने की बात कही जा सकती थी। आम जनता में नेताओं के प्रति गुस्सा कई बार देखने को मिलता रहता है और इसके लिए नेताओं को ही जिम्मेदार माना जाता है।
कुलविंदर कौर ने देश की जनता की रक्षा करने के लिए भारतीय संविधान द्वारा दी गई वर्दी पहनी हुई थी। वर्दी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिस व्यक्ति को अपने समाज, धर्म या समुदाय के लिए कुछ करना है, उसे यह वर्दी नहीं पहननी चाहिए। वर्दी देश का काम करने के लिए दी जाती है और देश की गरीब जनता का पैसा इस वर्दी पहनने वाले को वेतन और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए खर्च किया जाता है। देश का संविधान वर्दी के साथ कई तरह के अधिकार भी देता है। अगर उस महिला ने वर्दी नहीं पहनी होती तो उसके लिए कंगना पर हमला करना इतना आसान नहीं होता। वर्दी द्वारा दिए गए अधिकार के कारण ही वो कंगना इतना नजदीक पहुंच सकी। उसने वर्दी द्वारा दिए गए अधिकार का दुरुपयोग किया है। शंभू बॉर्डर पर किसानों के दिल्ली जाने पर रोक लगा दी गई है और किसानों को रोकने वाले भी वर्दी वाले लोग ही हैं। उनमें से ज्यादातर किसानों के ही बच्चे हैं लेकिन शरीर पर पहनी हुई वर्दी के कारण वो अपना संवैधानिक काम कर रहे हैं। अगर वो यह कह कर पीछे हट जाएं कि हम किसानों के बच्चे हैं और किसानों का रास्ता नहीं रोक सकते तो देश अराजकता के दौर में चला जायेगा। वास्तव में वो लोग जानते हैं कि उन्होंने वर्दी पहनी हुई है और वो एक सिपाही हैं जिन्हें देश की व्यवस्था चलानी है।
यह सही है कि कंगना ने किसानों का अपमान किया था लेकिन ऐसा अपमान बहुत लोगों द्वारा किया गया है। किसानों ने भी बहुत लोगों का अपमान किया है। किसान आंदोलन के दौरान कैसे-कैसे नारे लगाए गए हैं, हम सभी को पता है। यह एक सच है कि देश में कई ऐसे नेता हैं जो अपने उल्टे सीधे बयानों से रोज किसी न किसी का अपमान करते रहते हैं। कंगना का बयान भी गलत था लेकिन उस गलती के लिए एक वर्दीधारी को उस पर हमला नहीं करना चाहिए था। उसके ऊपर तो उसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी थी और उसने ही हमला कर दिया, यही इस मामले में सबसे गंभीर बात है। सुरक्षा बलों के लिए अनुशासन बहुत जरूरी है, अनुशासनहीनता किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं की जा सकती। अगर सुरक्षा बलों में अनुशासन खत्म हो गया तो कल्पना करिए कि देश किस तरफ चला जायेगा।
सोशल मीडिया में समर्थन करने वाले इस बात का जवाब दें कि अगर कुलविंदर कौर सही है तो इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले कैसे गलत थे। अगर मोदी विरोध में उस कांस्टेबल का समर्थन कर रहे हो तो उनका भी समर्थन करने के लिए तैयार हो जाओ क्योंकि वजह तो इंदिरा गांधी की हत्या करने वालों के पास भी थी। इंदिरा जी की हत्या करने वालों का भी पंजाब के बड़े समुदाय द्वारा समर्थन किया गया था क्योंकि हरिमंदिर साहिब में की गई सैनिक कार्यवाही से उनकी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंची थी। सवाल तब भी यही था कि जिन लोगों पर इंदिरा जी की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, उन्होंने ही उनकी हत्या कर दी थी। ऐसे ही श्रीलंका में राजीव गांधी पर एक सुरक्षा कर्मचारी ने बंदूक की बट से हमला कर दिया था क्योंकि भारतीय शांति सेना द्वारा की गई कार्यवाही से वो दुखी था। जो लोग कुलविंदर कौर का समर्थन कर रहे हैं, क्या वो उसे श्रीलंकाई सैनिक का भी समर्थन करेंगे। वो सैनिक भी बाद में चुनाव लड़कर अपने देश का सांसद बन गया था क्योंकि उसे भी देश की जनता का समर्थन मिला था।
विपक्ष के कई नेताओं ने राम मंदिर का विरोध किया है, अगर कोई हिंदू सुरक्षा कर्मचारी किसी ऐसे नेता पर हमला कर दे तो क्या विपक्ष के लोग उसका समर्थन करेंगे। तब शोर मचाया जाएगा कि भाजपा देश को कहां ले आई है, जो सुरक्षा कर्मचारी विपक्ष के नेताओं पर हमला कर रहे हैं। तब कहा जाएगा कि देश में लोकतंत्र खत्म हो गया है, संविधान खतरे में हैं। हिंदू कट्टरवाद बढ़ाने का विमर्श चलाने की कोशिश की जाएगी। इन चुनावों में कितने ही विपक्ष के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से हिंदू धर्म को गाली दी है जिसके कारण बहुत लोगों के मन में गुस्सा भरा हुआ होगा, अगर इस गुस्से में सुरक्षा कर्मचारी हमला करना शुरू कर दें तो विपक्षी नेताओं के लिए घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा। हम जब कहीं जाते हैं तो सुरक्षा कर्मचारी को देखकर हमें विश्वास हो जाता है कि ये हमारी सुरक्षा के लिए है, अगर हम पर कोई खतरा आया तो ये व्यक्ति हमारी सुरक्षा करेगा। जब हमें पता चलेगा कि हमारे किसी बयान या कार्यवाही के कारण ये हमारे लिए खतरा बन सकता है तो हमें उससे भी डर लगने लगेगा। तब देश के क्या हालात होंगे ये बात कांस्टेबल का समर्थन करने वालों को समझना होगा।
ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों को बढ़ावा देना पूरे देश के लिए घातक है। कुलविंदर कौर को वित्तीय मदद देना और उसको सम्मानित करना ऐसी घटनाओं को बढ़ाने का काम करेगा। इसके कारण आगे चलकर और भी सुरक्षा कर्मचारी ऐसी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं। दूसरी तरफ सुरक्षा बलों को अपनी भर्ती प्रक्रिया को भी बदलना पड़ सकता है। भर्ती के समय उम्मीदवार की शारीरिक क्षमता और शिक्षा को देखा जाता है, अगर ऐसी घटनाएं बढ़ती हैं तो भर्ती करने वाले अधिकारी उम्मीदवार की विचारधारा, सोच और मानसिकता का भी परीक्षण करना शुरू कर सकते हैं और तैनाती में भी भेदभाव आ सकता है।
अगर ऐसी घटनाओं को नहीं रोका जाता है तो जो लोग आज सोशल मीडिया में बैठकर महिला सिपाही को समर्थन कर रहे हैं, वही लोग हर जगह जाने से डरने लगेंगे क्योंकि उनकी ही पोस्ट के कारण उन पर भी हमला होना शुरू हो सकता है। सुरक्षाबलों से जुड़े लोगों की ऐसी कार्यवाही का समर्थन करने में कितने खतरे जुड़े हुए हैं, ये आभासी दुनिया के लोग नहीं जानते। पंजाब में समर्थन समझ आता है क्योंकि वहां किसानों का मुद्दा बहुत संवेदनशील बन चुका है, इसलिए कोई भी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर बोलने को तैयार नहीं है। कंगना का समर्थन कोई नहीं कर रहा है लेकिन एक अनुशासित सुरक्षा बल की सिपाही की इस कार्यवाही का समर्थन करना देश के लिए घातक साबित हो सकता है, ये बात लोगों को जरूर समझनी चाहिए।
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