बिलकुल उचित है उत्तर प्रदेश सरकार का दुकानों पर मालिक के नाम का बोर्ड लगाना

बिलकुल उचित है उत्तर प्रदेश सरकार का दुकानों पर मालिक के नाम का बोर्ड लगाना

देश के अलग अलग हिस्सों में छोटे व्यापारियों खासकर खाने पीने का सामान बेचने वाले दुकानदारों के बीच एक अलग ही ट्रेंड चल रहा है. कई दुकान अपना धर्म छुपा कर और दूसरे धर्म के देवी देवताओं और नाम की आड़ लेकर धंधा करने लगे हैं। कोई अपनी दुकान का नाम हिंदू देवी देवताओं के नाम पर रख लेता है तो कोई तिलक लगाकर और भगवा गमछा पहनकर यात्रियों को गुमराह करता है।

हिंदू देवी देवताओं के नाम पर दुकान का नाम रखकर यहाँ नॉन वेज परोसा जाता है। इसको लेकर लंबे समय से विवाद भी चल रहा है, खासकर ऐसे दुकानदारों से उन लोगों को तब ज्यादा समस्या होती है जब वह अपने धार्मिक आयोजनों जैसे कावड़ यात्रा पर निकालते हैं, जिस दौरान भक्त अपने खान पान का विशेष ध्यान रखते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें खाना खाने के बाद पता चलता है कि जिन देवी देवताओं के नाम पर दुकान चल रही थी, वह दूसरे धर्म या संप्रदाय का था।सावन का महीना शुरू होने वाला है। इसी दौरान शिव भक्त कावड़ लेकर प्रदेश की प्रसिद्ध नदियों का गंगाजल लेकर अपने क्षेत्रीय शिवालयों में चढ़ाने के लिए निकल पड़े हैं।

इसीलिए पहले उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में कांवड़ मार्गों पर खाने-पीने की दुकानों पर नेमप्लेट वाला नियम लागू किया गया था पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के अनुसार यह नियम अब पूरे प्रदेश में लागू होगा। प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर खाने-पीने की दुकानों के मालिकों को नेमप्लेट लगाने का आदेश जारी किया है।

आदेश में कहा गया है कि कांवड़ मार्गों पर खाद्य सामग्री बेचने वाले दुकानों पर संचालक मालिक का नाम और पहचान लिखना होगा। कांवड़ यात्रियों की आस्था की शुचिता बनाए रखने के लिए ये फैसला लिया गया है। हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर भी कार्रवाई की बात कही गई है।

वैसे 22 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा से पहले मुजफ्फरनगर जिले के सभी दुकानदारों, ढाबों, फल विक्रेताओं और चाय की दुकानों ने प्रशासन के निर्देशानुसार अपने प्रतिष्ठानों या वेंडिंग ठेलों पर मालिकों या कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है।

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि इस निर्देश का उद्देश्य धार्मिक यात्रा के दौरान भ्रम से बचना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है लेकिन प्रशासन के इस कदम से तुष्टिकरण के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन सहित लेफ्ट लिबरल गैंग को मिर्ची लग गई।

यहां तक कि इस पहल को विवाद बनाने में जावेद अख्तर जैसे बुद्धिजीवी भी कूद पड़े हैं। जावेद अख्तर ने इसकी तुलना जर्मनी के नाजी शासन से कर डाली और कहा कि नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे। इनका दोगलापन देखिए कि खुद के लिए ‘हलाल’ सिस्टम चाहिए लेकिन कांवड़ रूट पर ‘पहचान’ सिस्टम से भी परेशानी हो रही है।

दिलचस्प बात यह है कि हिंदू अगर हलाल सर्टिफिकेट का खाने को मना कर दे तो सेक्यूलरिज्म ख़तरे में हो जाता है। हिंदू अगर थूका हुआ खाने को मना कर दे तो भी सेक्यूलरिज्म ख़तरे में आ जाता है। यह समझ से परे है कि अपनी पहचान बताने में क्या हर्ज है?

क्या विपक्ष और लेफ्ट लिबरल कुतर्क की राजनीति नहीं कर रहे हैं? जब एक समुदाय के लोग कहते हैं कि हमें खाने पीने की चीजों पर हलाल मार्का चाहिए ताकि हमें पता चले कि हम जो खा रहे हैं क्या खा रहे हैं, किसके यहां का खा रहे हैं लेकिन जब यही बात दूसरे समुदाय के लोग करते हैं तब उनके पेट में मरोड़ उठने लगती है, यह दोगलापन है।

गौरतलब है उत्तरप्रदेश में कांवड़ यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जिले में कांवड़ियों की ओर से लिए जाने वाले मार्गों की कुल लंबाई करीब 240 किलोमीटर है। इन मार्गों पर स्थित सभी भोजनालयों पर मालिकों या कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित होना चाहिए।

प्रशासन के आदेशानुसार होटल हों, ढाबे हों या ठेले हों, जहां से कांवड़िए खाद्य सामग्री खरीदते हैं, उनके लिए आदेश जारी किया गया। अब उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड की धामी सरकार ने भी फैसला किया है कि कांवड़ के रास्ते में पड़ने वाले दुकानदारों को अपना असली नाम का बोर्ड लगाना होगा।

बताया जाता है कि पिछले वर्ष कावड़ यात्रा के समय मुजफ्फरनगर के बघरा में स्थित आश्रम के संचालक स्वामी यशवीर महाराज ने राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित होटल ढाबो के मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा हिंदू देवी देवताओं के नाम पर आधारित नाम रखने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की थी।

इस बार भी स्वामी यशवीर महाराज ने प्रशासनिक अधिकारियों से बात कर मुस्लिम होटल संचलको के नाम मोटे अक्षरों में अंकित करने की मांग की थी। हाल ही में मुजफ्फरनगर के विधायक और उत्तरप्रदेश के मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने एक जिला स्तरीय बैठक में कहा कि मुसलमानों को किसी भी विवाद से बचने के लिए हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर अपनी दुकानों का नाम नहीं रखना चाहिए। जिला प्रशासन ने मंत्री की चिंता पर ध्यान दिया और पुलिस को कुछ शिकायतें भी मिली थीं। इसी को मद्देनजर रखते हुए निर्देश जारी किए।

ध्यान देने योग्य यह बात है कि सहारनपुर में जनता वैष्णो ढाबा, आगरा-मथुरा रोड पर खाटू श्याम ढाबा, बरेली में चौधरी स्वीट्स, हरिद्वार रोड पर न्यू गणपति टूरिस्ट ढाबा नंबर-1, मुजफ्फरनगर में ओम शिव वैष्णो ये सभी दुकान पहचान बदलकर खोले गए हैं। इनके मालिक मुसलमान हैं।

बिहार में उजियार आलम ने अपना नाम अर्जुन सिंह बताकर दुकान खोली और हिंदू लड़कियों को काम पर रखने लगा। उसका मकसद लड़कियों को लव जिहाद में फंसाकर धर्मांतरण करना बताया जाता है। इस काम के लिए उसे जरूर कहीं से पैसे मिलते होंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

आखिर इन पर लोग कैसे विश्वास करे। आजकल सोशल मीडिया अलग-अलग शहरों के अनेक वीडियो वायरल हो रहे होते हैं जहां इस समुदाय के लोग थूक जिहाद कर रहे होते हैं। फलों में थूक लगाकर पैक करते हैं। सैलून में थूक मिलाकर फेस मसाज करते हैं।

गंदी नालियों में सब्जियों को धोते हैं। समोसे में गाय मांस मिलाकर बेचते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण वीडियो प्रमाण के साथ सोशल मीडिया पर घूमा करते हैं। ऐसे में हिंदुओं को यह जानने का अधिकार है कि जिस दुकान से वे अपने व्रत के लिए फल खरीद रहे हैं वह दुकान कौन चला रहा है।

सोशल मीडिया पर एक यूजर मो. आसिफ खान ने लिखा- मुस्लिम बहुल देशों में लाखों हिंदू रह रहे हैं। वे अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं और अपने देश को धन भेज रहे हैं। अगर उन देशों में मुसलमान ऐसी हरकतें करने लगें तो क्या होगा? इसका जवाब देते हुए कश्मीरी हिंदू नामक यूजर ने कहा- ये है दुबई में रेस्टोरेंट “इंड्या बाय विनीत”।

हिंदू आप लोगों की तरह अपनी पहचान नहीं छिपाते। दुबई के इस रेस्टोरेंट में गणेश जी मूर्ति भी लगी हुई है। अब जिसको खाना है, आकर खाए, जिसको नहीं खाना वो न आए। कम से कम वो पहचान तो नहीं छिपा रहे लेकिन भारत में तो पहचान छिपाकर गलत हरकतें की जा रही हैं।

भारत में खाने पीने के सामान का प्रमाणन करने वाला एफएसएसएआई हलाल सर्टिफिकेट नहीं देता है। भारत में हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र (जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट जैसे कुछ संगठन कोई उत्पाद हलाल है नहीं, इसका प्रमाण पत्र जारी करते हैं।

हलाल मुस्लिमों के खाने-पीने के सामान और विशेष कर मांस से सम्बन्धित है, यानी जो हलाल उत्पाद हैं, उन्हें मुस्लिम खा सकते हैं। मांस का हलाल होना इस बात का प्रमाणन है कि वह उसी तरीके से काटा गया है, जैसा इस्लामी किताबों में बताया गया है। हलाल सर्टिफिकेट यूं तो मुसलमानों के लिए होता है लेकिन इसे हिंदुओं पर भी थोपा जाता है।

किसी कंपनी का सामान अगर हिंदू खरीदते हैं और उस पर हलाल सर्टिफेकेट है तो इसका मतलब है कि यह हिंदुओं पर थोपा गया है क्योंकि हिंदुओं को हलाल से कोई मतलब नहीं है। यानी 18 प्रतिशत मुसलमानों के लिए जो हलाल सर्टिफिकेट लगाया गया है, वह 80 प्रतिशत हिंदुओं पर भी थोप दिया गया।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट हलाल इकोसिस्टम में आने वाली एक कम्पनी से 60,000 रुपये रजिस्ट्रेशन और फिर 1500 रुपये प्रति उत्पाद हलाल प्रमाणन के लिए लेती है। इसके ऊपर से ळैज् भी लगता है। अगर कोई कंपनी 10 उत्पाद बनाती है और उसको हलाल प्रमाणन की आवश्यकता है तो उसे 75,000 रुपये $ जीएसटी देना होगा।

यह धनराशि सिर्फ तीन साल के लिए है, इसके बाद दोबारा फीस देनी होती है। कंपनियां इस सर्टिफिकेट को लेने के लिए जो खर्च करती हैं, वह पैसे भी उत्पाद की लागत पर जोड़ देती हैं। इस तरह 80 प्रतिशत हिंदू जब भी हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पाद खरीदते हैं तो वे इसके लिए भी पैसा चुकाते हैं।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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